डा शारिक़ अहमद ख़ान
चलै फगुनहट उड़ैं धुरंधर.लखनऊ की राजा की ठंडाई विश्वप्रसिद्ध है.लखनऊ के चौक पर स्थित दुकान पर हट्टे-कट्टे,गोरे-चिट्टे और लंबे-चौड़े राजा पंडित जी टीका लगाकर शिखा बांधे हुए शान से बैठते हैं.इनके पूर्वज राजा नाम के पंडित जी ने सन् 1936 में ठंडाई की यह दुकान खोली थी,ये भी राजा के नाम से मशहूर हैं,जो मेरे बगल में तस्वीर में हैं.यहाँ लस्सी भी मिलती है और शर्बत भी मिलता है,लेकिन मशहूर है यहाँ की ठंडाई.ठंडाई दो तरह की होती है.
एक सादी ठंडाई और दूसरी भांग वाली ठंडाई.अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ से सांसद रहे,अब तक जितने प्रधानमंत्री हुए उनमें से सबसे ज़्यादा खाने-पीने के शौक़ीन अटल जी ही रहे.अटल जी को राजा की ठंडाई बहुत पसंद थी,जब भी आते,यहीं से ठंडाई मंगाते,कभी-कभार ख़ुद भी राजा के यहाँ ठंडाई पीने पहुंच जाते.लेखक अमृत लाल नागर भी राजा की ठंडाई के मुरीद थे,वो ज़्यादातर भांग वाली ठंडाई ही पिया करते.बहरहाल,आज शाम हम भी राजा की ठंडाई की दुकान पहुंचे और बिना भांग की राजा की ठंडाई पी,हमें भी राजा की ठंडाई पसंद है.भांग हमें सूट नहीं करती इसलिए भंग की ठंडाई नहीं पी,वैसे भांग और भंग की ठंडाई बरसों पहले हमने पी है,भांग के साथ प्रसाद में मिला धतूरा भी खाया है,भंग पीकर बौरा गए थे,तब से कान पकड़े,इस बारे में पहले फ़ेसबुक पर विस्तार से लिखा भी था.ख़ैर,अब फागुन आ गया,ठंडाई का दौर चालू हो गया.फागुन के ठंडाई के प्रेमियों के बारे में कहा गया है कि
'चलै फगुनहट उड़ैं धुरंधर,लप दे ऐहर,लप दे ओहर
दिन-दिन भर ना खाएं धुरंधर,ठंडइयै पर रह जाएं धुरंधर'
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