कैसे बना होगा दिनमान का दबदबा

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कैसे बना होगा दिनमान का दबदबा

चंचल  
सर्वेश्वर जी ( सर्वेश्वर दयाल सक्सेना )  व्यक्ति पूजक नही  थे ,लेकिन रिश्तों का निर्वहन पूरी शिद्दत के साथ करते थे . बंगाली मार्केट में रहते थे . हम अक्सर घर पहुंच जाते . उनकी दोनो बेटियां विभा और शुभा  हमारा खयाल रखती थी . पहुंचते ही ' दाना पानी ' टटके चुटकुले के साथ मिल जाता था .  
एक दिन हम पहुंचे तो देखा सर्वेश्वर जी के साथ अज्ञेय जी भी बैठे बतिया रहे हैं . हम वापस मुड़ने को हुए तो सर्वेश्वर जी ने बुला लिया - आओ पंडित ! कोई गोपनीय बात नही हो रही . अज्ञेय जी से  मुलाकात हो चुकी थी , हम तो उन्हें जानते ही थे , वे भी थोड़ा थोड़ा याद रखने लगे थे . छूटते ही अज्ञेय जी आहिस्ता आहिस्ता बोलना शुरू किए , जैसा कि उनकी आदत थी  
   - चंचल जी आपने लाला भगवानदीन की जो किताब बनाई है अच्छी लगी . सबसे अच्छा लगा उस किताब की साइज . जैनेन्द्र जी बहुत खुश थे .  ( जैनेन्द्र जी के सुपुत्र  भाई प्रदीप हमारे मित्र हैं , प्रकाशन चलाते हैं , ज्यादातर किताबे अपने पिता जी जैनेन्द्र कुमार की छापते हैं बाद बाकी पुराने लोंगो को उठाते हैं . उन्ही में से एक प्रसिद्ध लेखक लाला भगवानदीन की किताब भी वहीं से छपी है , उसी का जिक्र अज्ञेय जी कर रहे थे )  
     - लेकिन शुरू में यह साइज उन्हें पसंद नही थी , बाद में हमने बहुत जिद करके बनाया . बात चल रही थी इतने में विभा ने आवाज दिया - पापा . और सर्वेश्वर जी बगैर कुछ बोले उठ कर दूसरे कमरे में चले गए . अज्ञेय जी रुक रुक कर बोल रहे थे , हम सुन रहे थे . उस दिन लगा कि अज्ञेय जी क्या हैं ? किताब की साइज , कलर , बाइंडिंग , लेआउट एक नया नजरिया दे रहे थे . उस पर लिखूंगा . अज्ञेय जी ने बताया कि जब अंग्रेजी ने पांव फैलाना शुरू किया तो केवल भाषा और विज्ञान ही नही दिया , हमारे बाचन की मुद्रा बदल दी . किताब बैठ कर पढ़ना हहै या लेट कर ,और फिर बैठना किस पर है , जमीन पर या टेबुल पर ? यह किताब की साइज बताती है . वगैरह वग़ैरत . अब हम दिनमान समझ रहे थे . कैसे बना होगा दिनमान का दबदबा .  
   काफी वक्त रहे , लेकिन सर्वेश्वर जी अपने कमरे से बाहर नही निकले . अज्ञेय जी कहा अब चलता हूँ . हमने कहा - बुला दूँ सर्वेश्वर जी को ? बोले - नही ! उनके दोस्त की फ़िल्म आ रही है , देखने दीजिये हम चलते हैं . हम अज्ञेय जी के साथ नीचे तक आये और उन्हें बंगाली मार्केट तक पहुंचा कर वापस चला गया . दूसरे दिन हमने कहा - आपने अज्ञेय जी को विदा नही  किया ? सर्वेश्वर जी मुस्कुराए - रेणु की फ़िल्म  आ रही  थी 'तीसरी कसम'  . और बात खत्म हो गयी . सर्वेश्वर जी के बैठके में एक तस्वीर लटकी रहती थी . विजयदेव नारायण साही, बीच मे फणीश्वर नाथ रेणु और तीसरे सर्वेश्वर दयाल सक्सेना .

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