बुंदेलखंड में हर गांव की पहचान एक तालाब हुआ करता था

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बुंदेलखंड में हर गांव की पहचान एक तालाब हुआ करता था

संदीप पौराणिक  
भोपाल . बुंदेलखंड की शान हुआ करते थे कभी ताल, तलैया और चौपरा, मगर अब इनमें से अधिकांश जलस्रोत गुम गए हैं, हाल तो यह है कि तालाबों की समाधि पर ही उत्सव भी होते हैं.बुंदेलखंड में कभी हर गांव की पहचान एक तालाब हुआ करता था. चंदेला और बुंदेला राजाओं ने इस इलाके को जल समृद्धि का केंद्र बना दिया था, वक्त गुजरने के साथ यह तालाब भी गुमते गए कहीं सीमेंट के जंगल खड़े हो गए हैं तो कहीं आयोजन स्थल में बदल चुके हैं. 

आइए हम बताते हैं आपको मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल खजुराहो की कहानी, यहां एक पाहिल वाटिका है. जिसमें बीचो-बीच छोटा तालाब था और चारों तरफ फूलों की बगिया हुआ करती थी. इसका पर्यटक भरपूर आनंद लिया करते थे, परंतु पिछले कुछ सालों में इस वाटिका के तालाब को ही मैदान में बदल दिया गया और इस पर तरह तरह के आयोजन होने लगे . खजुराहो फिल्म महोत्सव भी इसी तालाब की समाधि पर हुआ करता है. अब तो खजुराहो में शिवरात्रि के मौके पर लगने वाले मेले के सांस्कृतिक आयोजन भी इसी स्थान पर हो रहे हैं. 

खजुराहो के मंदिर दुनिया में पर्यटकों को लुभाते हैं और यहां का प्राकृतिक नजारा भी कम नहीं होता था, अब स्थितियां बदल गई हैं. तालाब बदसूरत हो चले हैं, जगह जगह अतिक्रमण हो रहे हैं, नगर पंचायत के मुख्य नगरपालिका अधिकारी बसंत चतुर्वेदी कहते हैं कि, खजुराहो के अधिकांश तालाब आर्केयोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया के अधीन आते हैं. वहीं जहां तक पाहिल वाटिका के तालाब की बात है तो इसकी विस्तृत जानकारी नहीं है, क्योंकि मुझे एक माह पहले ही यहां का अतिरिक्त प्रभार मिला है. 

बुंदेलखंड के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र व्यास का कहना है कि, खजुराहो की सिर्फ पाहिल वाटिका ही नहीं बल्कि बुंदेलखंड के अधिकांश तालाबों को एक सुनियोजित साजिश के तहत मैदान में बदला गया है. कहीं विवाह घर बन गए हैं तो कहीं लोगों ने मकान बना लिए हैं. इतना ही नहीं माफियाओं ने तो तालाबों का स्वरूप ही बदल दिया है. इस इलाके का दुर्भाग्य है कि यहां ऐसा प्रशासनिक अमला आता है जिसकी कभी भी तालाबों के संरक्षण में अभिरुचि नहीं रही है. लगभग यही हाल स्थानीय जनप्रतिनिधियों का भी रहा है, अगर कोई जनप्रतिनिधि पहल करे तो न जाने कितने बड़े लोगों के चेहरे पर से नकाब हट जाएगा. 

बुंदेलखंड में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सात-सात जिले आते हैं, कुल मिलाकर देखें तो 14 जिले हैं इस क्षेत्र में. स्थानीय लोग बताते हैं कि इस इलाके में कभी 10 हजार से ज्यादा जल स्त्रोत हुआ करते थे. सरकारों और विभिन्न संगठनों ने भी हजारों तालाब बनाए हैं, यह सरकारी कागजात बताते हैं. इस तरह अगर सारे तालाब जीवित होते तो यह आंकड़ा 15 हजार के आसपास होता, मगर हकीकत में ऐसा नहीं है. यही कारण है कि यह इलाका हर साल गर्मी में पानी के संकट से जूझता है, सरकार हो, प्रशासन हो और तमाम तथाकथित समाजसेवी सभी इस मसले को खूब हवा देते हैं, वादे होते हैं, नारे लगते हैं, समस्याओं का रोना रोया जाता है, मगर हालात नहीं सुधरते. 
 

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