शहतूत का पेड़ और संत

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शहतूत का पेड़ और संत

डा शारिक़ अहमद ख़ान 
आज मॉर्निंग वॉक के दौरान लखनऊ के रूमी दरवाज़े के पास शहतूत बिकते देखे तो ले लिए.शहतूत से हमें एक वयोवृद्ध संत की याद आ गई,संत हमारे मित्र थे.उनके पास कोई ऐसी दुनियावी चीज़ नहीं थी जिसे लक्ज़री कहा जाए,उन्हें मिलता बहुत कुछ लेकिन वो अपने पास कुछ रखते ही नहीं,सब ग़रीबों में बाँट देते,कुटिया में रहते.उनके पास दो देसी गाय थीं और एक कुत्ता भी था.कई शिष्य भी थे जो वहीं आश्रम में रहते और संत जी से पढ़ते.आश्रम में रहवासी शिष्य वो लावारिस बच्चों को ही बनाते थे,उन्हें पालकर बड़ा करते,शिक्षा देते.उनके परिसर में कई फलों के पेड़ों के अलावा चार शहतूत के पेड़ भी थे,जो संत जी ने नहीं लगाए थे.अपने आप उग आए थे.क्योंकि हम सच्चे संतों का बहुत आदर करते हैं लिहाज़ा उन संत जी से मिलने भी कभी-कभार जाते.कभी वो ख़ुद भी मेरे पास आ जाते.जब शहतूत का मौसम आता तो संत जी का संदेसा मेरे पास आ जाता कि शहतूत के फल पक गए हैं,आप आ जाइये. 
हम जाते तो कुछ फल हाथ से तोड़ते,बाकी फलों को पेड़ से गिराने के लिए संत जी पेड़ को पकड़कर हिलाया करते,इतनी तेज़ पेड़ को झकझोरते कि शहतूत के फल नीचे गिर जाते,फिर वो उसे ख़ुद बीन लेते,धोकर लाते और काला नमक डालकर हमें खाने के लिए देते.इस काम के लिए वो अपने किसी शिष्य की मदद नहीं लेते,मेरे लिए वो ख़ुद पेड़ हिलाया करते,ये मेरे लिए बहुत सम्मान का विषय था.एक बार हमने अपने सामने अचानक आयी कोई कठिन समस्या संत जी को बताई.संत जी ने उसका समाधान बता दिया जो आम लोगों की नज़र में थोड़ा टेढ़ा था.हमने जाकर अपने एक दोस्त के कान में बताया कि संत जी ने ये एक समाधान बताया है.दोस्त संत जी के बताए समाधान को सुन आपे से बाहर हो गए,उन्होंने संत जी को बहुत गालियाँ दीं,कहने लगे कि ढोंगी है वो,संत नहीं है.संत जी ने हमें एक धागे में गूँथकर कुछ मनके दिए थे,दोस्त ने मनके तोड़ दिए और क्रोध में संत जी के आश्रम की तरफ़ लपके.हमने भी गाड़ी से उनका पीछा किया.दोस्त ने आश्रम में प्रवेश किया तो संत जी को गाय के बछड़े को दुलारते पाया.संत जी ने दोस्त के ऊपर एक नज़र डाली,उनका सब क्रोध भस्म हो गया,उन्होंने जाकर संत जी के पैर छूने चाहे,संत जी ने हाथ पकड़ लिया,कहा पैर छुवाने में मेरा विश्वास नहीं है,आप इस बछड़े को नहलाइये,मैं अभी आता हूँ. 
दोस्त बछड़े को नहलाने लगे,तब तक हम भी पहुँच गए.हमने नज़ारा देखा तो ख़ामोश हो गए.तब तक संत जी आ गए,उन्होंने हमें देखा तो हमने बताया कि ये हमारे दोस्त हैं.संत जी ने अब शहतूत का पेड़ हिलाया,शहतूत के फल लाकर खिलाए.जब हम लोग वापस हुए तो दोस्त ने कहा कि संत जी का बताया रास्ता सही है,उसी से समाधान होगा,फिर समाधान हो गया.संत जी अब इस दुनिया में नहीं हैं,लेकिन उनके शहतूत के पेड़ होंगे,इधर कई बरसों से तो हम आश्रम गए ही नहीं. 
 

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