यूनिफार्म सिविल कोड का शोशा फिर उछाला

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यूनिफार्म सिविल कोड का शोशा फिर उछाला

हिसाम सिद्दीकी 
लखनऊ. चार रियासतों मगरिबी बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडू और एक यूनियन टेरिटरी पुद्दुचेरी के असम्बली इंतखाबात में हार के खौफ से परेशान वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर यूनिफार्म सिविल कोड का शोशा उछाला है.इन्हीं पांच असम्बलियों के अलावा अगले साल जनवरी-फरवरी में होने वाले चार प्रदेशों के एलक्शन में भी बीजेपी के जीतने की उम्मीद नहीं है.डिफेंस मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने पन्द्रह मार्च को लखनऊ में बीजेपी की प्रदेश एक्जीक्यूटिव कमेटी में बोलते हुए कहा कि हमारी सरकार ने राम मंदिर की तामीर और कश्मीर से दफा-370 खत्म करने का अपना वादा पूरा कर दिया.अब नम्बर हमारे तीसरे वादे यानी यूनिफार्म सिविल कोड का है वह वादा भी हम पूरा करेंगे.उन्होने कहा कि हमने जितने वादे किए थे, उनमें से यकसां सिविल कोड का ही वादा पूरा नहीं हुआ है.वह भी जल्द हो जाएगा.राजनाथ सिंह ने कहा कि यह यूनिफार्म सिविल कोड किसी भी मजहबी ‘आस्था’ के खिलाफ नहीं होगा.यह हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सबके लिए एक जैसे बर्ताव करने के लिए होगा.यूनिफार्म सिविल कोड आरएसएस का मुसलमानों को डराने के लिए पुराना हथियार है.मोदी हुकूमत कभी भी आरएसएस का बनाया हुआ कानून पार्लियामेंट में लाकर दफा-370 हटाने और किसान कानून की तरह उसे जबरदस्ती पास करवा सकती है.क्योकि अभी तक हुकूमत ने इंतेहाई हस्सास (संवेदनशील) मुद्दा होने के बावजूद उसका कोई ड्राफ्ट बनाकर देश के सामने पेश नहीं किया है. 
यूनिफार्म सिविल कोड पर देश में किसी को एतराज नहीं हो सकता.मुसलमानों को बीजेपी के जरिए लाए गए कोड पर एतराज होना फितरी (स्वाभाविक) है.मुसलमान चाहता है कि विरासत, शादी और तलाक, मरने के बाद की रसूमात और कुरआन व उनके इबादत के तौर-तरीके में कोई दखल न दिया जाए.यूनिफार्म सिविल कोड में अगर इन मामलात में भी दखल अंदाजी की गई तो उसे वह बर्दाश्त नहीं करेंगे.आरएसएस इन मुद्दों में दखल देने की कोशिश करता है.उसकी कोशिश का नतीजा है कि गुजिश्ता दिनों लखनऊ के शैतान सिफत शख्स वसीम रिजवी के जरिए कुरआन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक रिट दायर कराकर मतालबा किया गया कि अदालत कुरआन की छब्बीस (26) आयात को हटाने का आर्डर करे.क्योकि उन आयात के जरिए जेहाद कट्टरपंथ और हिंसा को बढावा मिलता है. 
यूनिफार्म सिविल कोड लाए जाने की बात संविधान में भी कही गई है, उसी का सहारा लेकर आरएसएस और बीजेपी के लोग बार-बार यह मुद्दा उठाते हैं.हालांकि संविधान में जो अहम काम करने की बातें की गई हैं उनमें सबको तालीम, मकान, रोजगार, सेहत खिदमात और इंसानी हुकूक फराहम करना बुनियादी बातें हैं.फिर यह काम जब हो जाएं तो यूनिफार्म सिविल कोड जैसे मामलात भी देखे जाएं.लेकिन बीजेपी और आरएसएस उन बुनियादी मुद्दों को पीछे छोड़ कर सीधे यूनिफार्म सिविल कोड लाने पर जोर देता है.उनकी यह नहीं समझ में आता है कि अगर सीढी के पहले चार डंडे छोड़कर सीधे पांचवें डंडे पर कोई पैर रखने की कोशिश करेगा तो उसका औंधे मुंह गिरना यकीनी है.यूनिफार्म सिविल कोड की मुखालिफत मुसलमानों से ज्यादा आदिवासियों और हिन्दुओं के कई तबकों के जरिए हो सकती है क्योंकि वह अपनी जिंदगी देश के कानून के बजाए अपने रीति-रिवाजों के मुताबिक बसर करते हैं.मसलन आदिवासियों में कुछ शादियां तो होती हैं लेकिन शादी का उनके यहां कोई मजहबी या कानूनी मसला नहीं है.वह बगैर शादी किए भी साथ रहकर जिंदगी गुजार लेते हैं.ऐसा ही उन हिन्दू तबकों में भी है जो शादी करने के बजाए लिव इन रिलेशन में रहना पसंद करते हैं.पूरी कोकण बेल्ट में भांजी (बहन की बेटी) के साथ शादी को बेहतरीन रिश्ता माना जाता है.लेकिन बाकी हिन्दुस्तान में अगर कोई भांजी से शादी करने की बात करे तो उसकी पिटाई हो जाएगी. 
संविधान बनाने वालों ने जब यूनिफार्म सिविल कोड की बात की थी तब यह भी कहा गया था कि देश में जितने मजहब माने जाते हैं उन सबकी अच्छी बातें लेकर सबके लिए यकसां सिविल कोड बनाया जाएगा.क्या मोदी हुकूमत ऐसा करने के लिए तैयार है.जवाब है कि हरगिज नहीं.क्योकि अभी तक मोदी सरकार ने जितने भी कानून बनाए हैं उन्हें बनाते वक्त न तो अपोजीशन से कोई राय ली गई और न ही पार्लियामेंट में उनपर मुनासिब चर्चा हुई.यूनिफार्म सिविल कोड में भी ऐसा ही होने का खतरा है. 
अगर मोदी सरकार ने आरएसएस के दबाव में यनिफार्म सिविल कोड के नाम पर देश के तमाम मजाहिब मानने वाले तबकों से राय लिए बगैर कोई कानून मुल्क पर थोपने की कोशिश की तो सिर्फ मुसलमानों की तरफ से नहीं, आदिवासियों, सिखों और हिन्दुओं के एक बड़े तबके की जानिब से इसकी सख्त मुखालिफत होगी.यह बहुत ही हस्सास (संवेदनशील) मामला है.इसलिए हुकूमत को बहुत ही सोच-समझकर कोई कदम उठाना चाहिए. 

 

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