वह पाकिस्तानी पठान टैक्सी ड्राइवर

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वह पाकिस्तानी पठान टैक्सी ड्राइवर

सुनील बी सत्यवक्ता  

दुबई यात्रा -2
अब बारी दुबई से वापस चलने की आई. भाई ने खास तौर से डैडी के लिए व्हिस्की की एक बोतल थमा दी. ऐसे जब आप अपनों के बीच से वापस लौटते हैं तो मन भारी होता है, पर न जाने क्यों पकिस्तान में 21 घंटे बिताने की कौतुहलता ने सब भावनाओं को परे कर दिया. भाई के घर की बिल्डिंग से नीचे आकर एयरपोर्ट के लिए टैक्सी ली. टैक्सी ड्राइवर एक पाकिस्तानी पठान था, जो शायद यह समझा कि मैं दुबई में काम करता हूं और छुट्टी में घर जा रहा हूं. पूछ बैठा... तुम मुलुक को जाता है. मेरे हां कहते ही बोला... मैं चार साल से इधर है, इंशाल्लाह दो महीन बाद मैं भी मुलुक को जाऊंगा. फिर कार के डैश बोर्ड से टिकट निकाल कर दिखाते हुए बोला...देखो, मैं टिकट भी निकलवा के रखा है. उसकी आवाज में बच्चों जैसा ऐसा उतावलापन था, मानो वह अभी मेरे साथ ही चल पड़ेगा. दिल को सबसे ज्यादा छूने वाली बात हुई एयरपोर्ट पहुंचने पर. मैं जब टैक्सी का भाड़ा देने लगा तो वह पैसे लेने को राजी नहीं हुआ और बोला... मुलुक को जाता है, बच्चों के वास्ते मिठाई लेकर जाना. कैसा अपनापन था, वह मेरा कौन था. आज भी सोचता हूं तो कुछ समझ में ही नहीं आता. खैर, टैक्सी के भाड़े के अलावा थोड़े और पैसे जोड़कर उसे यह कहकर मनाया कि जब तुम अपने मुलुक को दो महीने बाद जाना तो बच्चों के वास्ते कुछ लेकर जाना. आज 31 साल बाद भी उस पठान का चेहरा मुझे अच्छी तरह याद है.  
पहुंचे पकिस्तान 
PIA फ्लाइट में दो ठंडे समोसे ओर सैंडविच के साथ कोल्ड ड्रिंक, स्नैक्स के तौर पर सर्व की गई. दारू का तो कोई सवाल ही नहीं उठता था. इसी को शायद PIA कहते थे. बकौल मशहूर पाकिस्तानी कॉमिक स्टार मोईन अख्तर, PIA का मतलब ही होता है कि हम नहीं पिलाते, आप घर से पी आइ ए. फ्लाइट दुबई से कराची लगभग शाम चार बजे पहुंची. दिल्ली के लिए हमारी फ्लाइट अगले दिन दोपहर एक बजे थी. फिर वही उत्साह अंगड़ाई लेने लगा. मानो, कराची नहीं, अपने बाबा के घर आ रहे हों. मेरे बचपन का काफी वक्त अपने ददिहाल रामपुर में गुजरा है. वहां हमारे आसपास काफी मुस्लिम परिवारों से बिलकुल घर की तरह आना-जाना था. उन्हें बचपन में ही पाकिस्तान विस्थापित होते देखा था. उन्हीं लोगों से कराची, लाहौर वगैरह के बारे में सुनते थे. शायद, पाकिस्तान से यही एक रिश्ता दिमाग में घर कर गया था. खैर, कराची एयरपोर्ट पर इमिग्रेशन ने पासपोर्ट लिए और हैंड बैगेज पाकिस्तानी कस्टम्स ने जमा करवा लिया. व्हिस्की की बोतल भी जमा करवा ली. हां, फ्लाइट में हमारी दोस्ती अमृतसर के एक लड़के से हो गई थी, जो बिजनेस के सिलसिले में अक्सर दुबई आता-जाता रहता था और उसका रूट यही रहता था. जब व्हिस्की की बोतल जमा करने लगे तो उसने कहा कि बोतल पर अपने सिग्नेचर कर दो ताकि बदल न जाए. मैंने सिग्नेचर कर दिए, लेकिन शायद कस्टम अफसर को यह बात पसंद नहीं आई. उसने गंदी निगाह से देखा जरूर, पर कहा कुछ नहीं. 
एयरलाइंस की बस से इमिग्रेशन अफसरों और पुलिस के साथ सारे ट्रांजिट पैसेंजर को एयरपोर्ट होटल लाया गया और इमिग्रेशन से चेक-इन के बाद हम लोग अपने-अपने रूम में आ गए, लेकिन मेरा मन तो कराची शहर देखने को बेताब था. सो, रूम में सामान रखकर वापस रिसेप्शन के बगल में इमिग्रेशन डेस्क पर पहुंच गया. उनके अफसर से बड़े उत्साह से बताया कि मैं इंडिया से कराची घूमने बहुत चाव से आया हूं. अपनी बोली में सारी मिठास घोलते हुए उनसे पूछा कि क्या मैं दो घंटे के लिए शहर घूमने जा सकता हूं. पूछा गया... क्या वीजा लेकर आए हो? जी नहीं... फिर जवाब सधा हुआ और अक्खड़ अंदाज में मिला... जी, बिलकुल नहीं, आप इस होटल ही बॉउंड्री के बाहर भी नहीं जाएंगे. बहुत ही मायूसी हुई. वापस रूम में जाने के बजाय मैं होटल के रेस्तरां में आ गया, जहां अमृतसर वाला दोस्त पहले से था. उसके साथ कॉफी पी रहा था कि तभी वह इमिग्रेशन अफसर आया. बोला... कराची शहर में कहां जाना चाहते हो. मैंने बताया कि कोई खास जगह नहीं पता है. बस शहर घूमना है और स्ट्रीट फूड का मजा लेना है. उसने कहा कि 1500 रुपये लगेंगे. दो घंटे के लिए चले जाओ. मेरा मन इस तरह से घूमने का बिलकुल नहीं था, सो मना कर दिया. वह भी चिपकू था. भाव कम करता गया और आखिर में 300 रुपये पर आ गया. एक बार मन हुआ कि चला जाऊं, कौन सा फिर दोबारा आ पाऊंगा, लेकिन फिर सोचा कि अगर लौटने पर इसने तंग किया तो... सो, न चाहते हुए भी उसे बिलकुल मना कर दिया. 
मैं और मेरा अमृतसरी मित्र वहीं बैठे गप्पबाजी करते रहे और खाना खाकर अपने रूम में आ गए. अभी कपड़े बदलकर सोने ही जा रहा था कि दरवाजे पर जोर की दस्तक हुई. जैसे ही दरवाजा खोला, अचानक पांच-सात पुलिसवाले रूम में घुस आए. पूछने लगे कि शाम से कहां थे. मैंने बताया कि यहीं होटल में था तो वे मानने को तैयार ही न हों. बोले, हम तीन बार चेक करके गए. आप रूम में नहीं थे. मैंने बताया कि बिलकुल सही है. मैं रूम में नहीं, रेस्तरां में था. साथ ही अमृतसरी दोस्त के बारे में बताया. इस पर उन्होंने उसे भी बुलवाया. हम दोनों को रेस्तरां ले जाकर स्टाफ से कन्फर्म किया, तब जाकर शांत हुए. उनके जाने पर मेरी रीढ़ की हड्डी तक हिल गई. सोचा, अगर वाकई में शहर घूमने चला गया होता तो मेरा क्या होता. लेकिन कराची आकर यूं ही लौट जाने का अफसोस बहुत ही ज्यादा हो रहा था. इसी उधेड़बुन में अपने स्टेट बैंक वाले मित्र की बहन को भी फोन करना याद नहीं रहा.  
अगले दिन सवेरे-सवेरे मित्र की बहन को फोन किया. उन्हें मेरा प्रोग्राम पता था. सो, उन्होंने पिछली शाम को मेरे रूम पर फोन किया था, लेकिन मैं रूम में था ही नहीं. खैर, तय समय पर वह होटल में मुझसे ब्रेकफास्ट पर मिलने आईं. उनके साथ उनके शौहर भी थे. ब्रेकफास्ट के वक्त मैंने उन्हें पिछली शाम का हादसा बताया. मेरी बात सुनकर उन्होंने अपना सिर पकड़ लिया. बोलीं... भैया, आपने हमको कल शाम फोन क्यों नहीं किया. हम आपको कराची घुमाने के लिए लेने आना चाह रहे थे. फिर पति की ओर इशारा करते हुए बोलीं, ये यहां इमिग्रेशन में उच्च अधिकारी हैं. तुरंत ही प्रोग्राम बना कि मैं अपना सामान लूं और उनके साथ चलूं. मैं ब्रेकफास्ट ऐसे ही छोड़कर अपना बैगेज लेने जाने लगा. अबकी शायद बारी जीजा जी (हां, मैं तो यही कहूंगा. आखिर दोस्त की बहन के शौहर थे.) को अपना रुतबा दिखाने की थी. सो, हम लोग नीचे इमिग्रेशन डेस्क पर आए, जहां पिछली शाम मोलभाव करने वाले अफसर भी थे. मेरे रूम की चाबी मुझसे लेकर जीजा जी ने उन्हें दी और बोले... साहब का सामान इनके रूम से मंगवाकर मेरी गाड़ी में रखवाओ. यह मेरे साथ जा रहे हैं. मैं इन्हें एयरपोर्ट ड्रॉप कर दूंगा. अपनी फॉर्मेलिटी पूरी करवा लो. उन साहब के चेहरे पर तो हवाइयां उड़ी हुई थीं. सो, फटाफट अपने अफसर के हुकुम की तामील की. 
कहते हैं, जब और जहां, आपका दाना-पानी लिखा है, आप उड़कर वहां उसी वक़्त पहुंच जाएंगे. (अपने 40 साल के ट्रैवल ट्रेड के तजुर्बे से इस बात का गवाह भी हूं.) मैं दो घंटे कराची घूमना चाहता था, लेकिन ईश्वर ने कृपा की और चार घंटे बक्श दिए. तो शुरू हुआ मेरा कराची घूमने का सिलसिला. वे लोग मुझे अपने साथ पहले गुलशन-ए-इकबाल (कराची का बहुत ही पॉश इलाका) में अपने घर ले गए. फिर उनके साथ चार घंटे बोहरी बाजार, सोल्जर बाजार, गुलरेब टाउन, लियकताबाद टाउन, आरामबाग और न जाने कहां-कहां घूमा. जीजा जी की वहां के लोकप्रिय और चर्चित फूड जॉइंट्स वालों के साथ गहरी पैठ थी. जहां भी खाने के लिए लेकर गए, वहां के मालिकों ने बड़ी ही गर्मजोशी से उनका स्वागत किया. मुझे भी अपने ब्रादरे निसबती (साले साहब) के दोस्त और खासतौर से लखनऊ से आए हैं, कहकर परिचय करवाया. उतनी ही गर्मजोशी, अखलाक और मोहब्बत से मेरा भी स्वागत हुआ. ऐसा लगा, जैसे मैं जिन लोगों से मिलने आया था, शायद ये वही लोग हैं. रेस्तरां का नाम तो अब याद नहीं, पर उसके मालिक शाह साहब थे, उनका खाना खिलाने का अंदाज निराला था. एक-एक बोटी देग से छांट-छांट कर परोसा गया. वह परोसते जाते थे और डिश में क्या-क्या मसाले इस्तेमाल हुए हैं और कैसे पकाया गया है, बखान करते जाते थे. मेरा खाने का मन भी हो और कोशिश यह भी हो कि पेट न भरे, क्योंकि अभी और भी बहुत कुछ नया ट्राई करना है. कराची में खाया अरेबियन पराठा, निहारी, नल्ली बिरयानी, कुल्फी आज भी नहीं भूलते. वहां के खाने की एक खासियत आज भी याद है कि मसालेदार होने के बाद भी कतई भारीपन महसूस नहीं हुआ था. फ्लाइट पर आते-आते फिर भूख लग आई थी. बहुत जगहों पर दुकानों के नाम दिल्ली, अमृतसर इत्यादि से शुरू होते दिखे. वैसे ही जैसे अपने यहां कराची बेकरी वगैरह दिख जाते हैं, लेकिन वहां भारतीय शहरों के नाम लिखे देख मन रोमांचित हो उठा. थोड़ा अफसोस भी हो रहा था कि कल शाम इन्हें फोन क्यों नहीं किया, लेकिन फिर यह सोचकर बहुत अच्छा लग रहा था कि मेरा सपना सच तो हो रहा है. 
वापसी और व्हिस्की की बोतल 
जीजा जी के बड़प्पन का आलम यह था कि चलते समय उन्होंने बड़ी हुज्जत से मुझसे पूछा कि अगर वह भी कुछ सामान मेरे मित्र के लिए दे दें तो मुझे कोई ऐतराज तो नहीं होगा. हालांकि मैं उन लोगों के लिए कुछ नहीं ले गया था, पर उनकी ओर से एक गिफ्ट पैक मेरे लिए भी था. चंद घंटों में कुछ अनजान लोगों से एक रिश्ता ऐसा बना, जो आज भी कायम है. वे लोग समय से मुझे एयरपोर्ट पहुंचा कर चले गए. इसके बाद कस्टम से अपना बैगेज लेना था, सो वहां पहुंचा. सारा सामान दे दिया गया, लेकिन बोतल नहीं आई. उन्हें पेपर दिखाया, फिर बड़े बेमन से बोतल तो निकली, पर साथ ही एक रिक्वेस्ट आई कि यह बोतल दे दो. थोड़ा अजीब-सा लगा. बताया कि इसकी सेंटिमेंटल वैल्यू ज्यादा है. भाई ने फादर के लिए दी है. साथ ही मुंह से निकल गया कि आपको ड्यूटी फ्री से दूसरी बोतल ला देता हूं. (नहीं पता था कि कराची ड्यूटी फ्री में दारू नहीं बिकती.) इस पर कस्टम अधिकारी बोले... यहां ड्यूटी फ्री में दारू नहीं बिकती, पर जितने की लाए हो, उतने डॉलर ही दे दो. सुनकर बहुत अजीब-सा लगा. अपना सामान उठाकर मैं वहां से चल पड़ा, क्योंकि एक अच्छी ट्रिप खत्म करते हुए कोई बदमजगी नहीं चाहता था.समाप्त 

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