मुंबई के खजाने पर तो सबकी नजर है

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मुंबई के खजाने पर तो सबकी नजर है

पंकज चतुर्वेदी  
मुंबई भारत का कुबेर है. अपना खजाना भरने के लिए हर दल यहा अपना रसूख रखना चाहता है . सबसे ज्यादा चन्दा और धन वाले दल की मुंबई हाथ से जाने की छटपटाहट किसी से छुपी नहीं है. 
अंबानी के घर से बहुत दूर एक कार में थोड़ी सी जिलेटिन छड मिलने की सारी घटना महज इसे बड़े स्तर पर सनसनीखेज और चर्चा का विषय बनाने के लिए किया गया . यदि इसका उद्देश्य तलाशें तो क्या केवल वसूली के लिए ही यह हुआ होगा ? अब मुकेश अम्बानी से किसी को क्या वसूली करना ? यह बात किसी के गले उतरती नहीं क्योंकि यह सभी जानते हैं कि लाला जी के गले में पट्टा किसी का भी हो लेकिन वे हिस्सा सभी को देते हैं . जाहिर है कि यह एक खेल के लिए सजाया गया चौपड था .  
सचिन वजे वर्ष 2004 में ख्वाजा युनुस के कथित हत्या/मुठभेड़ के मामले में गिरफ्तार हुआ था और तभी से सस्पेंड भी . मुंबई पुलिस के क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट (सीआईयू) में पूर्व इंस्पेक्टर प्रदीप शर्मा, रिटायर्ड एसीपी प्रफुल्ल भोसले, पुलिस इंस्पेक्टर दयानंद नायक जैसे तेजतर्रार अधिकारियों के साथ एनकाउंटर स्क्वॉड का हिस्सा रहे वाजे ने साल 2008 में पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया था. 12 साल गुजर जाने के बाद भी उसका इस्तीफा मंजूर किया नहीं गया .  

परम वीर सिंह , पुलिस कमिश्नर गृह मंत्री और  उद्धव ठाकरे से मधुर सम्बन्ध होने के कारण इस पद पर थे . असल में महाराष्ट्र में मध्य प्रदेश व्यापम से भी खतरनाक रोजगार भर्ती घोटाला की जांच चल रही है  और अनिल देशमुख  इस जांच को जल्दी अंजाम अपर पहुँचाने के लिए लगे थे . यह सब प्रेशर पोलिटिक्स है क्योंकि हज़ारों लोगों की भर्ती  में  सीधे सीधे खेल हुए जिसमें मंत्री, नेता, अफसर सभी शामिल थे, यदि इस केस की जांच पूरी हो जाती तो फदनाविस सहित कई उन भा ज पा नेताओं पर कालिख अति जो इस समय ठाकरे पर सबसे ज्यादा हमलावर हैं .  
खेल शुरू हुआ था सुशांत की आत्म हत्या से और वह अर्नब की गिरफ्तारी तक व्यापक हो गया , ऐसे में सेंटर इंटेलिजेंस ने अपना खेल शुरू किया. अचानक ही रिपब्लिक भारत ने परमवीर सिंह को गाली देना बंद कर दिया . उधर असिस्टेंट इंस्पेक्टर जैसी छोटी पोस्ट के अधिकारी, जो ग्रुप बी में आता है , को  कमिश्नर ने बहाल किया और उसकी बहाली नया गाँव लोकल आर्म डिविजन में कर दी गयी. हालांकि वजे के सेवा के साल भी ज्यादा नहीं होंगे क्योंकि वह सं १९९० में सब इंस्पेक्टर के रूप में भर्ती हुआ था .शायद पांच  साल ही बचे होंगे .  
केंद्रीय  एजेंसियों ने नारकोटिक्स और ईडी के जरिये जो दवाब बनाया शायद उस फिरकी में परमवीर सिंह फंस गए. यह सामान्य सी बात है कि कोई गृह मंत्री वसूली के लिए एक असिस्टेंट इंस्पेक्टर जो कि लम्बे समय से सस्पेंड हो तो काम सौपेगा नहीं .  मुंबई  पुलिस में सभी जानते हैं कि परमवीर सिंह के सबसे करीबी दो ही लोग थे सचिन वजे और एससीपी के संजय पाटिल .इसी संजय पाटिल के साथ कथित व्हाटशप चैट को अब वे दबा रहे हैं . 
इस बीच दादर नगर हवेली के दबाग और लोकप्रिय पूर्व सांसद मोहन देलकर की आत्म ह्त्या का मामला आया और गृह मंत्री इसकी जांच के लिए कह रहे थे  जबकि परमवीर सिंह इस पर टाल मटोली कर रहे थे.63 मुठभेड़ कर अंदर वल्ड में दहशत रखने वाला सचिन वाजे इतना मूर्ख तो होगा नहीं कि सेठ जी के घर से बहुत दूर बेकाम के विस्फोटक रख कर भागने का काम खुद करेगा . फिर यदि पुलिस की माने तो सचिन वजे के पास पांच करोड़ से अधिक कीमत की तो कारें ही थीं. जो इंसान 2004 से नौकरी से विरक्त हो .उसके पास इतना पैसा आना , इसकी जानकारी कमिश्नर को न होना और उसे चुपचाप नौकरी पर बहाल कर लेना , लोकल आर्म्ड डिविजन में नियुक्ति के बावजूद अर्नब और  कई अन्य मामलों में उसका चेहरा दिखाना , सचिन वजे को अपने वकील से भी ना मिलने देने की अनुमति , पद से हटाये जाने के बाद सौ करोड़ की वसूली का पत्र देना  और अब  गृह मंत्री का पद से हटना लगभग तय होना .यह राजनितिक   पैंतरेबाजी , बम्बई से अपने वसूली चैनल को इस दवाब के साथ शुरू करना कि हम किसी भी दिन सत्ता में आ रहे हैं. घटक दलों का कमजोर कड़ी का फायदा उठा कर अपने काम निकालना और सबसे बड़ी बात उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री का पद सही तरीके से न संभाल पाना और और बहुत से मामले दरबारियों के जिम्मे छोड़ना.  
हो सकता है आबकारी मंत्री दिलीप वालसे अब गृह मंत्री बन जाएं लेकिन आगे का खेल तय होगा नौकरी भर्ती घोटाले की जांच , आला कम्पनियों द्वारा भाजपा को चन्दा ना देने के दवाब में ढील और साथी दलों के नज़रिए पर. 
जान लें यह एक पटकथा है जिसे महज अभिनीत किया जा रहा है. इसके परदे की पीछे  अर्नब गोस्वामी भी है जिसके कुछ लोग राम कदम के जरिये मुंबई पुलिस में खबर  उछालने , गोपनीय जानकारी कुछ लोगों को लीक करने का काम करते हैं .  
परमवीर सिंह के रिटायरमेंट के महज दो साल से कम समय बचा है . वे सुरक्षित सेवानिवृति और उसके बाद भी काम धंधे में बने रहने के लिए एनआईए के सामने दंडवत हो गये हों तो कोई आश्चर्य नहीं.

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