चुनाव लड़े पर बोफोर्स का नाम नहीं लिया !

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

चुनाव लड़े पर बोफोर्स का नाम नहीं लिया !

नई दिल्ली .महात्मा गांधी के पौत्र एवं चक्रवर्ती राजगोपालाचार्या के नाती राजमोहन गांधी ने अपनी पहचान विचारक, दार्शनिक एवं लेखक में ज़्यादा बनाई है बनिस्पत इन दो महान नेताओं के रिश्तेदार के रूप में.उनके बारे में एक खास बात ये है कि अमेरिका के नामी विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के साथ साथ, राजमोहन गांधी ने भारत से एक सक्रियकर्मी (एक्टिविस्ट)  के रूप में भी हमेशा जुड़ाव रखा है. उसी सक्रियकर्मी स्वभाव के चलते राजमोहन गांधी ने दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी के विरुद्ध 1989 में जनता दल उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा था.


इन्हीं राजमोहन गांधी को इस बात से बहुत तकलीफ पहहुंची है कि प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले में एक रैली को संबोधित करते हुए स्वर्गीय राजीव गांधी को भ्रष्टाचारी न्ंबर 1 बताया. कई लोगों ने प्रधानमंत्री की इस बात के लिए कड़ी आलोचना की किन्तु राजमोहन गांधी की इस संबंध में आलोचना अधिक महत्व रखती है क्योंकि उन्होंने राजीव गांधी के विरुद्ध उस समय चुनाव प्रचार किया और देखा था जब बोफोर्स से संबंधित आरोप नए नए थे.


इंडियन एक्सप्रेस में अपने लेख में राजमोहन गांधी लिखते हैं कि 1989 में जब राजीव गांधी के विरुद्ध प्रचार के लिए मुलायम सिंह यादव और वीपी सिंह (जो इस चुनाव के बाद प्रधान मंत्री बने) अमेठी आए तो इन दोनों में से किसी ने भी अपने भाषणों में बोफोर्स का नाम नहीं लिया. इसके बाद अमेठी से राजीव गांधी के हाथों हारने के बाद राजमोहन गांधी को उत्तर प्रदेश विधानसभा से राज्य सभा में भेजा गया.  राजमोहन गांधी लिखते हैं कि उस दौरान राजीव गांधी से उनकी संसद भवन में कई बार भेंट हुई और हमेशा बहुत अच्छी बातचीत हुई. वह लिखते हैं कि उन दिनों भी ऐसा मानने वाला उन्हें कोई संसद सदस्य या राजनीतिज्ञ नहीं मिला जो उन्हें बोफोर्स मामले में व्यक्तिगत रूप से दोषी मानता हो. और यदि कोई ऐसा मानता हो कि राजीव गांधी ने भ्रष्टाचार को सहन कर लिया (होने दिया) तो वो उनकी नृशंस हटाया के 28 वर्ष बाद उनके पुत्र से ये तो नहीं कहेगा कि तुम्हारे पिता की मौत भ्रष्टाचारी नंबर वन के रूप में हुई.

राजमोहन गांधी ने प्रधानमंत्री की आलोचना के अलावा इस लेख में राहुल गांधी की संयमित प्रतिक्रिया (जिसमें उन्होने मोदी जी के लिए प्यार भेजा) की भी बहुत तारीफ की है और कहा है कि चुनाव कोई भी जीते या हारे, लेकिन राहुल गांधी की ये प्रतिक्रिया इतिहास में एक विशिष्ट रूप में दर्ज रहेगी.राग दिल्ली डाट काम से साभार  

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :