अजीत साही
मैं इलाहाबाद के सेंट जोसफ़ स्कूल में पढ़ा. वो लड़कों का स्कूल था. और इलाहाबाद का नंबर वन स्कूल था. उसकी तूती पूरे हिंदुस्तान में बोलती थी. आज से पचास साल पहले ही वहाँ के पढ़े हुए लड़के आईआईटी और येल जाते थे.स्कूल कैथोलिक चर्च का है और उसे बाक़ायदा पादरी चलाते हैं. उसकी स्थापना 1884 में हुई थी. यानी अगले तीन साल में उसको चालू हुए एक सौ चालीस साल हो जाएँगे.
मेरे टाइम स्कूल में कम से कम चार पाँच हज़ार छात्र रहे होंगे. उनमें दो-ढाई सौ भी ईसाई रहे हों तो बड़ी बात होगी. नब्बे परसेंट लौंडे हिंदू थे. जिनमें अपर कास्ट की भरमार थी. संघी परिवार भी अपने कपूतों को सरस्वती शिशु मंदिर से निकाल निकाल कर यहाँ पढ़ाने में जुटे रहते थे. अस्सी परसेंट टीचर भी हिंदू थे. हिंदुओं में भी बहुतायत भारद्वाज, त्रिपाठी, गुप्ता, श्रीवास्तव, पांडे की थी.
कभी नहीं सुना कि किसी पादरी ने ईसाई धर्म की बड़ाई की हो या उसे और धर्मों से बड़ा बताया हो. ईसाईयत में धर्म परिवर्तन करवाने की कोशिश करना तो भूल ही जाओ. स्कूल से जुड़े चर्च और चैपल थे. मगर मजाल कि किसी पादरी ने कभी बच्चों से कहा हो कि कभी कभी जाकर प्रेयर कर दो.
हमारे क्लास में भी ईसाई लौंडे थे और किसी से कम बदमाश नहीं थे. हम सब छोकरे मस्त उछल-कूद करते थे. कभी किसी के दिमाग़ में आया ही नहीं कि कौन हिंदू है और कौन नहीं. पिछले पचास साल में ही दसियों हज़ार छोकरे सेंट जोसफ़ स्कूल से पास होकर निकले होंगे. मेरे सहपाठियों में एक दर्जन से ज़्यादा IIT गए. इतने ही हिंदुस्तान के टॉप कॉलेजों से डॉक्टरी पढ़े. कई IIM गए. कई IAS बने. कई इंडियान आर्मी, वाली और एयर फ़ोर्स में ऊँचे पदों पर हैं. एक दर्जन तो आज हाई कोर्ट जज हैं. कई यूपी और हिंदुस्तान को चोटी के वकील हैं. दर्जनों विदेश रहते हैं और टॉप यूनिवर्सिटियों में पढ़ा रहे हैं.
आज चालीस साल बाद मेरे साथ पढ़े ज़्यादातर पट्ठे भक्त बने घूम रहे हैं और मुसलमानों और ईसाइयों को गाली दे रहे हैं. उनसे पूछता हूँ कि हरामखोर तुमको ईसाई स्कूल में किस पादरी ने सताया तो खी-खी भी नहीं कर पाते.संघी नफ़रत ने हिंदुस्तान को बर्बाद कर दिया है. नष्ट हो गया है हमारा देश.
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