पत्रकार पेट्रिशिया मुकीम को सुप्रीम कोर्ट से मिला न्याय

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पत्रकार पेट्रिशिया मुकीम को सुप्रीम कोर्ट से मिला न्याय

दीपक तिवारी  
लगातार अपनी निष्पक्षता को लेकर आलोचना झेल रहे सुप्रीम कोर्ट ने मेघालय की संपादक के मामले में पत्रकारों और "फ्री स्पीच" (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के पक्ष में स्वागतयोग्य फैसला दिया है. 
मेघालय देश के पूर्वोत्तर राज्यों में, सबसे चर्चित राज्य है.यहां के दो शहर 'शिलांग' और 'चेरापूंजी' लोगों की जुबान पर कई सालों से चढ़े हुए हैं.शिलांग कभी पूर्वी बंगाल और असम की दूसरी राजधानी रहा है और नेताजी सुभाष चंद्र बोस को प्रिय था.चेरापूंजी को हम सब दुनिया के सबसे ज्यादा बारिश होने वाले स्थान के रूप में जानते रहे हैं.(अब शायद यह बदल गया है) 

हाल के समय में शिलांग और मेघालय अखबारों में इसलिए भी चर्चित रहा है क्योंकि यहां पर 60 एमएलए वाली विधानसभा में केवल 2 विधायकों वाली भाजपा/एनडीए की यहां पर सरकार है.यह बात अलग है कि कांग्रेस के यहां पर 21 विधायक होते हुए भी सरकार नहीं है.(वैसे भी आम चुनावों में ज्यादा सीटें जीतने के बाद भी गोवा, कर्नाटक और मध्यप्रदेश में कौन सी है !) 

खैर बात मूल खबर की...  

पेट्रिशिया मुकीम शिलांग टाइम्स अखबार की संपादक हैं.उन्होंने पिछले साल जुलाई में एक फेसबुक पोस्ट लिखते हुए मेघालय के मुख्यमंत्री कोनार्ड संगमा से तथाकथित आदिवासियों द्वारा मुंह पर नकाब बांध कर गैर आदिवासियों पर की गई हिंसा के विरोध में कुछ सवाल किए. 

एक पत्रकार का मुख्यमंत्री से सवाल पूछना, सरकार को इतना नागवार गुजरा की उन पर सरकार ने एक निजी शिकायत पर विभिन्न धाराओं के तहत पुलिस में एफआईआर दर्ज करा दी.एफआईआर यह कहते हुए दर्ज की गई कि उनकी फेसबुक पोस्ट से समाज में अशांति फैल सकती थी।बेचारी महिला पत्रकार पर जो बीत सकती थी, वह सब हुआ.पत्रकार मेघालय हाईकोर्ट पहुंची.हाईकोर्ट के न्यायाधीश को सरकार की बात सही लगी.पत्रकार की नहीं.घबराई पत्रकार सर्वोच्च न्यायालय, दिल्ली पहुंची. 

अब जाकर सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है.जस्टिस एल नागेश्वर राव और एस रविंद्र भट्ट की पीठ ने फैसला देते हुए कहा की किसी भी हालत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को आपराधिक मुकदमे द्वारा दबाया नहीं जा सकता. 

सरकार की असफलता को ज़ाहिर करना किसी भी तरह से दो समुदायों के बीच घृणा फैलाने का मामला नहीं बनता.यह फैसला उन सभी पत्रकारों के लिए राहत की खबर बनकर आया है जो लगातार सरकार से सवाल पूछते हैं और सच लिखने की पत्रकारिता कर रहे हैं.वैसे भी सरकार की बातें अखबारों, चैनल और सोशल मीडिया के माध्यम से जनता तक पहुंचाना "पब्लिक रिलेशन" है.सरकार का प्रचार करना है.खबर तो वही है जो सरकार जनता से छुपाना चाहती है. फेसबुक वाल से 

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