फिराक ,महादेवी और वह कालीन

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

फिराक ,महादेवी और वह कालीन

डा  शारिक़ अहमद ख़ान 
आज महादेवी वर्मा की जयंती है.बहुत से लोगों का मानना रहता है कि महादेवी वर्मा को  रघुपति सहाय 'फ़िराक़' चाहते थे.जबकि ऐसा मानना ग़लत है,क्योंकि फ़िराक़ साहब के महादेवी वर्मा के बारे में ऐसे कोई विचार नहीं थे.फ़िराक़ इतने खुले आदमी थे कि कुछ भी छिपाते नहीं,धुआंधार बोलते थे,जिसको जो समझना हो उनके बारे में समझे या जैसी चाहे उनके बारे में सोच कायम करे,फ़िराक़ को कभी इसकी परवाह नहीं रही.अगर महादेवी वर्मा से प्रेम जैसी कोई बात होती तो फ़िराक़ ने कहीं न कहीं या किसी न किसी से इसका ज़िक्र ज़रूर किया होता.फ़िराक़ बदसूरती को पसंद नहीं करते थे,उन्हें अपने आसपास बदसूरत लोगों का रहना भी पसंद नहीं था.महादेवी वर्मा बदसूरत तो नहीं थीं लेकिन उनके पति ने उन्हें ना छोड़कर भी इसलिए एक प्रकार से छोड़ा हुआ था क्योंकि उनकी नज़र में वो ख़ूबसूरत नहीं थीं. 
फ़िराक़ का कहना था कि जब मैं बच्चा था तो किसी बदसूरत महिला की गोद में भी नहीं जाता था,जाते ही रोने लगता.फ़िराक़ की शायरी में ख़ूबसूरती से मोहब्बत का साफ़ इज़हार खुलकर मिलता है.फ़िराक़ की पत्नी में कोई कमी नहीं थी,बस बात इतनी थी कि वो देखने में सुंदर नहीं थीं,पढ़ी-लिखी कम थीं,हिंदी तो अच्छी जानतीं लेकिन उर्दू-फ़ारसी नहीं जानतीं,तलफ़्फ़ुज़ उनका ठीक नहीं था,फ़िराक़ साहब को यही बातें पसंद नहीं थीं,उनके ग़लत उच्चारण से कुपित हो कहते कि 'इस गोबर की औलाद को कोई ज़िन्दा ही चिता में बांधकर फूँक आता तो दुनिया के सर से एक भारी पाप का पहाड़ उतर जाता,पता नहीं कब मरेगी,इस बदबूदार कीड़े ने मेरी पूरी ज़िन्दगी को बदबुओं के डंक से भर दिया है'.फ़िराक़ ये बातें सबके सामने कहते थे और कई बार बहुत थोथा ज्ञान लेकर फ़िराक़ को समझाने आयीं कथित नारीवाद की पुतलियों के ज्ञान का घोंसला उजाड़ उन्हें रूलाकर भगा चुके थे. 
फ़िराक़ साहब का महादेवी वर्मा के बारे में ये मानना था कि महादेवी महिलाओं के बीच एक 'मर्दाना फ़िगर हैं'.एक आदर्श पत्नी हो सकती थीं लेकिन मर्दाना फ़िगर हैं लिहाज़ा उनके अंदर मर्दों की तरफ़ एक ललकार है जो मौक़ा आने पर एक मर्द योद्धा की दूसरे मर्द योद्धा से होती है,इसी से मर्द डर जाते हैं.महादेवी वर्मा भी उर्दू-फ़ारसी नहीं जानती थीं,तलफ़्फ़ुज़ की ग़लतियाँ फ़िराक़ साहब के सामने करतीं तो फ़िराक़ अपनी आदत के विपरीत जाकर बुरा नहीं मानते,फ़िराक़ का कहना था कि अगर महादेवी वर्मा उर्दू-फ़ारसी भी अच्छी तरह जानतीं तो उनकी भाषा में निखार आ जाता,महादेवी की भाषा कहीं-कहीं बनानटी लगती है,आम इंसान के दिल तक नहीं पहुँच पाती,इसी वजह से वो कवि सम्मेलन और मुशायरों में महफ़िल नहीं लूट पातीं.एक बार किसी ने फ़िराक़ के सामने कह दिया कि महादेवी की कविता में कृष्ण की बाँसुरी सा सुरीलापन है.फ़िराक़ ये सुन नाराज़ हो गए है,कहने लगे कि कृष्ण की बाँसुरी आपने कभी सुनी है,कहाँ कृष्ण की बाँसुरी और कहाँ महादेवी की कविता.कृष्ण जब बाँसुरी बजाते तो क्या होता था,ऐसा कुछ होता है महादेवी की कविता सुनकर.बैल महाराज,कभी फ़ारसी-उर्दू शायरी को जाना-समझा-पढ़ा है,बस एक भाषा जान गए,हिंद की आम ज़बान जाने नहीं,बस हिंदी पढ़ ली,महादेवी के कसीदे काढ़ने लगे.मुदर्रिसी कीजिए,रोटी खाइये,जीवन काटिए,फिर मर जाइये,मेरे पास मत आया कीजिए,महादेवी की कविता की तारीफ़ करने की पेट में ज़्यादा मरोड़ है तो कह दीजिए कि महादेवी की कविता में किसी बाँसुरी की सुषुप्त रागिनी सा सुरीलापन है.कुल मिलाकर ये कि फ़िराक़ कभी महादेवी से मोहब्बत नहीं कर सकते थे.फ़िराक़ साहब को एक बार मोहब्बत हुई थी.मोतीलाल नेहरू और फ़िराक़ के पिता गोरखप्रसाद 'इबरत' दोस्त थे,इबरत शायर भी थे और गोरखपुर के प्रसिद्ध वकील भी थे.ये बात अलग है कि फ़िराक़ का कहना था कि उनके पिता इबरत साहब शायर तो थे लेकिन उनको अरबी बिल्कुल नहीं आती थी,इसी वजह से हिंदोस्तानी ज़बान के नामी शायर नहीं बन सके,क्योंकि यहाँ की आम बोलचाल में अरबी भी है,उसे वो ढंग से इस्तेमाल नहीं कर सके,किताबों में बंद हो गए,उनका हाल हिंदी कवियों वाला हो गया,हिंदी कवि कभी आम आदमी की ज़बान पर नहीं चढ़ पाता.बहरहाल,मोतीलाल और गोरख प्रसाद की दोस्ती की वजह से फ़िराक़ का इलाहाबाद के आनंद भवन में ख़ूब आना-जाना था और दोनों परिवारों में भी मित्रता थी.फ़िराक़ की दोस्ती जवाहरलाल नेहरू से हुई.जवाहरवाल फ़िराक़ से उम्र में ज़रा बड़े थे.जबकि जवाहर लाल की बहन विजय लक्ष्मी फ़िराक़ की लम-सम उम्र की थीं.एक दिन फ़िराक़ आनंद भवन गए तो युवा और ख़ूबसूरत विजय लक्ष्मी से टकरा गए.फ़िराक़ ने विजय लक्ष्मी को दिल दे दिया.दिक्कत ये थी फ़िराक़ की शादी बचपन में ही हो चुकी थी.वो कायस्थ थे और विजय लक्ष्मी कश्मीरी ब्राह्मण,बात आगे नहीं बढ़ पायी.विजय लक्ष्मी की जब शादी होने को आयी तो उन्होंने एक कालीन फ़िराक़ को अपनी याद के तौर पर दी थी.फ़िराक़ कहते कि कालीन पर मेरी आँखें टहलती हैं,फ़िराक़ पहरों-पहर बैठे कालीन को देखते रहते.एक दिन कालीन को फ़िराक़ की पत्नी ने आंगन में डाल दिया,बारिश हुई,कालीन भीग गई,फ़िराक़ उदास हो गए,लोदे सी कालीन ना देखी गई,यूनिवर्सिटी के चपरासी को दे दी और अपना सिर पीट लिया.कुल मिलाकर ये कि महादेवी वर्मा नहीं बल्कि विजय लक्ष्मी से फ़िराक़ को मोहब्बत थी.फेसबुक वाल से साभार 

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :