मन ही कृष्ण है और कृष्ण ही होली

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

मन ही कृष्ण है और कृष्ण ही होली

चंचल  
स्त्रीलिंग है . हो और ली कि सहयात्रा है . इसे 'तीन टंगी ' दौड़ भी कह सकते हैं . यह हमारे बचपन का खेल था , मान्यता प्राप्त . दो हम उम्र के बच्चों का , एक एक पैर , एक का दाहिना दूसरे का बांया एक दूसरे के साथ बांध दिया जाता था . इस तरह के और भी युग्म बनते और दौड़ प्रतियोगिता होती . बड़ा होने के बाद समझ मे आया कि, यह तो कमाल का ' सहयोगी ' , सहभागी , समान गति के साथ एक दूसरे को सहारा दिए दौड़ने की जद्दोजहद है . तीन टंगी दौड़ . जीवन का जरूरी सबक . आपकी गति तेज है , साथ मे बंधे की गति धीमी है , साथ लेकर ही दौड़ सकते हो . छुट्टा छोड़ दिया जाय तो यकीनन एक की गति बढ़ जाएगी , वह आगे बढ़ सकता है लेकिन उस सुख से वंचित रह जाएगा जो लक्ष्य तक पहुंचने के बाद एक दूसरे की आंख में झलकता मिलता है . नतीजा हार का हो या जीत का हम अकेले नही है . एक दिन यह जुमला देश के महान मनीषी , समाजवादी नेता मनीराम बागड़ी ने बोला था . हुआ यूं कि चौधरी चरण सिंह की सरकार को गिरा कर लोक बंधु राज नारायण तीन तीन प्रधान मंत्री को अपदस्थ करने का रिकार्ड बना कर थके मादे , बागड़ी जी के सरकारी आवास पर पसरे बागड़ी जी को खबर सुना रहे हैं . 
- बागड़ी जी ! हमने एक नई पार्टी बना ली है . 
- कौन सी नई बात है ? 
- हम और हेमवती नंदन बहुगुणा मिल कर 
- हूँ ! तिन टंगी दौड़ शुरू कर रहे हो ? कह कर बागड़ी जी अखबार पढ़ने लगे . नेता जी खिसिया कर रह गए . 
- अबे नशेड़ी ! नौटंकी !! दुष्ट ! बात होली पर हो रही थी , बहक गए भौकाल में ? 
होली का एक भाव बहकना भी है यार ! होली में न बहके तो तो जिनगी अकारथ . बहकना एक सामान्य क्रिया है बहकने के लिए कोई अलग का षट्कर्म नही करना पड़ता , न ही कोई विधि विधान है , इसमे उधार तो कत्तई नही चलता , वह अंदर मौजूद रहता है बस मौका मिलते ही गप्प से बाहर निकल आता है . होली इसी बहकने का उपसंहार है . वेद खिलाड़ी की राय सबसे कीमती है , अकाट्य , - इच्छा खुद ब खुद प्रस्फुटित होती है , यह 'अ दमित' प्रवाह है , न तो इसका दमन किया जा सकता है न ही इसे रोका जा सकता है , जितना इसे रोकने का प्रयास होगा उतना ही यह बलवती होगी . कोसी बाढ़ की तरह . काम से दुखी तमाम प्रजातियां भोले , वैरागी , योगी शिव से पूछा था - काम को आपने अनंग बना कर उसे छुट्टा छोड़ दिया प्रभु आपने ? काम के फैलाये वितान, जो सब चर अचर , जीव जंतु , चल अचल , निर्जीव तक को उद्वेलित कर रहा है , उस वितान को समेटने की गुहार कहाँ और किससे लगाएं ? तपस्या भंग गो रही है , समाधि टूट रही है , योग पथ से विमुख हो रहा,लोक अंतर्द्वंद में खड़ा है देव !कोई जुगततो बताइए . 
लगाया था अट्टहास कर्मयोगी शिव - योग ? समाधि ? तपस्या ? काम वाण से बिखर रहा है ? पाखंडी ! फिर इतनी लचर धारा में क्यों मगन हो ? खोल के बाहर निकल , काम को स्वीकार कर उसे पूर्ति तक पहुंचा दे , विरक्त पथ स्वयं खुल जाएगा . काम स्वयं प्रकृति है , स्वयं इच्छा है - एकोहम बहुस्याम प्रजाएय . वह एक है, अनेक की कामना है . उसे पूरा होना ही है , तुम न उसे रोक सकते हो न विमुख कर सकते हो , धन्य मानो , वह तुम्हे निमित्त होने का सुख दे रही है . 
- बहको मत ! मूल पर आओ . बहुत सुना गया है तुम्हारा बकवास . होली पर आओ . 
होली मन है मोटू ! माया की व्याख्या है . प्रकृति क्या है ? रंगमंच है . वांग्मय बताता है सामने जो देख रहे जो सब माया है . गोबिंद को भूल गए ? कुरुक्षेत्र में दोनों सेनाओं के बीच शंख ध्वनि की दूरी है . अर्जुन भसक जाता है - है नाथ ! हम किससे युद्ध करें , ? सब अपने हैं ? अनाशक्त गोपाल कृष्ण मुस्कुराता है - सब माया है अर्जुन ! युद्ध तो लड़ा जा चुका है तुम किसे मारोगे , सब मरे हुए हैं , सब अपने अपने चरित्र का खेल कर रहे हैं उठो और जागो . होली माया है विरक्ति का नही , आशक्त मन के अनाशक्त होने की पहल . अनाशक्त होने के लिए , जो अंदर दबा है उसे ढंको मत उघार कर बाहर कर दो . निकल जाने दो . कल तुम्हे अपना पुनर्जन्म मिलेगा . अंदर को बाहर करो . मसलन हम जानते है मोटू का मन कहां है ? लेकिन लोकरीति ? मन को लोक रीति रोकती है , होली लोक रीति को तोड़ देती है . पंडोह का कीचड़ प्रतिष्ठित को सराबोर करता है , खुले आम गालियों का थोक व्यापार प्रतिष्ठित होता है . ठूंठ दरख़्त आखिरी पण भी फेंक कर नंगा हो जाता है , उसके खुरदुरे तन पर नई कोपल प्रस्फुटित होती है . यह घूंघट उठाने का उत्सव है लेकिन घूंघट रहे तो सही . 
- बकवास ! हुंह !! लगा ले कहाँ लगाना है , ? 
- गले , गले लगाना है , आशक्त से निकल कर अनाशक्त होना हमारा मन है . मन ही कृष्ण है और कृष्ण ही होली . 
 

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