अंबरीश कुमार
लखनऊ, अगस्त । देश के हर छोटे बड़े दल के एजंडा पर किसान आ गया है । टप्पल के किसान आंदोलन के बाद यह सिलसिला जारी है । आज देवरिया से लेकर दिल्ली तक किसानो ने सड़क पर उतर कर अपनी ताकत दिखाई । उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव का माहौल बन चूका है ऐसे में यह मुद्दा सत्ता में बैठी मायावती को सत्ता से बेदखल कर सकता है तो कांग्रेस से लेकर समाजवादियों तक को सत्ता में ला भी सकता है । यही वजह है क्योकि ३० जून २००८ को छह जिलों के ११९१ गांवों की दो तीन फसली जमीन के अधिग्रहण की अधिसूचना जारी करने वाली मायावती सरकार ने भी आज दिल्ली घेरने वाले किसानो का समर्थन कर दिया । मायावती के राज में एक दो नहीं बल्कि तीन तीन बार आंदोलन कर रहे किसानो पर गोली चली है जिसमे कई किसान मारे जा चुके है। पर मायावती अब किसानो की हमदर्द है और उनके आंदोलन का समर्थन कर रही है । कांग्रेस पार्टी की तरफ से खुद राहुल गाँधी टप्पल गए और फिर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने आंदोलनरत किसानो को बातचीत का न्योता दिया । बाद में राहुल गाँधी और दिग्विजय सिंह ने प्रधानमन्त्री से मुलाकात कर भूमि अधिग्रहण संसोधन बिल जल्द पेश करने का आग्रह किया । यह किसान समर्थक कांग्रेस का नया चेहरा है । कांग्रेस ने इसके साथ ही ओड़िसा के नियमगिरि आंदोलन का समर्थन करते हुए वेदांत समूह की परियोजना पर विराम लगवा दिया । यही कांग्रेस कल तक विकास की नई अवधारणा के चलते देश भर में किसानो की उपजाऊ जमीन पर सेज का कारोबार बढा रही थी । नागपुर में इंटरनेशनल एअरपोर्ट हब के साथ बनने वाले सेज के खिलाफ किसानो के आंदोलन का एक ही मंच पर कंधे से कंधा मिलकर विरोध करती थी ।
पर अब कांग्रेस के साथ भाजपा भी किसानो के सवाल पर उनके आंदोलन के साथ है । भाकपा ,माकपा ,माले से लेकर लोकदल और समाजवादी पार्टी भी किसानो के सवाल पर आगे आ चुकी है । पर इस सवाल को मुद्दा बनने वाले पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह आज नही है । अंग्रेजो के बनाए १८९४ के भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ मोर्चा उन्होंने ही खोला था । सिंगूर ,नंदीग्राम की बजाय यह मुद्दा रिलायंस की दादरी परियोजना से उठा । तब किसान मंच के जरिए वीपी सिंह ने जो संघर्ष शुरू किया वह बाद में पूरे उत्तर प्रदेश में तो फैला ही विदर्भ तक चला । दादरी के किसानो की अधिग्रहित जमीन को जोतने का आंदोलन छेड़ कर वीपी सिंह ने इस मुद्दे को उठाया था । तब इस संवाददाता से बात करते हुए वीपी सिंह ने कहा था - यह बताए कि उद्योगपतियों के कलिए जमीन सरकार क्यों खरीद रही है । सरकार किसी उद्योगपति के लिए किसान की जमीन क्यों ले रही है । अधिग्रहण कानून तो रेल ,अस्पताल ,सड़क जैसी जरुरी और सरकारी परियोजनाओं के लिए है पर इसका फायदा अब उद्योगपति उठा रहे है ।
जब वीपी सिंह ने भूमि अधिग्रहण कानून का सवाल उठाया था तो मुलायम सिंह की सरकार थी और लोकदल भी उस सरकार में शामिल था । दूसरी तरफ मायावती जो आमतौर पर ऐसे मुद्दों पर बेढंगा बयान देती रही है उन्होंने भी कहा था - यह किसानो के नाम पर घडियाली आंसू बहा रहा है । उस समय राजबब्बर ने इसका जवाब भी दिया था । रोचक यह है कि तब वीपी के डेरा डालो घेरा डालो आंदोलन में वामदल भी शामिल हुए पर किसानो के साथ आज जो दल खड़े नज़र आ रहे है वे नदारत थे । तभी से भूमि अधिग्रहण का मुद्दा उठा और किसान का सवाल राजनैतिक दलों की प्राथमिकता पर आया । पर टप्पल के आंदोलन के बाद इसका और विस्तार हुआ और अब प्रधानमंत्री भी भूमि अधिग्रहण संसोधन बिल सांसद के अगले सत्र में रखने का भरोसा दे चुके है । इस सब से किसान अब सभी दलों के एजंडा पर आ चुका है ।
जनसत्ता