चंचल
हमारे शुभेच्छु हैं ,वरना उन्हें क्या कि भद्र जन पलट कर हमारे पास आते और चहकारी देते की भाई जान! ये फेसबुक पर जो लोग आपको गरियाते हैं, साठा पाठ का हवाला देकर ऊपर जाने का रास्ता बतातें हैं ,उसे पढ़ कर मन में बहुत तकलीफ होती है. अब आप ऐसा कुछ मत लिखा करिए जिससे उन्हें मिर्ची लगे. आप मानस पर गीता पर इस पर लिखा करिए. हमने उनसे कहा मित्र! हम शाकाहारी लेखक रहे हैं. आप मिर्च की बात कर रहे हैं हम तो लहसुन से तड़का पसंद करते हैं. कभी किसी भो..... वाले का फिल इन द ब्लैंक भी नहीं भरा. उनके निजी करतब पर कभी काठी भी नहीं किया. पर पता नहीं क्यों उन्हें क्या हो जाता है की भू देखते ही लगते हैं चीख पुकार करने. दौड़ा के पोंगा काटने का उपक्रम करने लगते हैं अब आपै बताओ हम का करें. न उनके दाल का नाम लेता हूं न उनके कारीगरों का . फिर हम करें का ? उन्होंने लंबी सांस ली .काठ की जिस कुर्सी पर टिके बैठे थे उसके गोलार्ध को बदला. दायें गोलार्ध को आराम देने के लिए बाएं गोलार्ध पर आ गये. इस अदला बदली के बीच में चौड़ी पाटी वाली धोती को सम्हाला और खुजली कर के मुतमइन हुए. एक बात बताइए. हमने तुरत जवाब दिया- हुकूम करिए .
-आप उन्हें गिरोह क्यों कहते हैं ?
हमने उन्हें बताया - हम तो , उन्हीं का बताया बोलता हूं .उन्होंने कहा हम राजनीतिक संगठन नहीं हैं .हम धार्मिक भी नहीं हैं . हम लोगों की आफत में उनकी मदद करते हैं. मित्र! आप जहीन लग रहे हैं. साफ़गोई से बात कर रहे हैं इसलिए आपकी बात को तवज्जो दे रहा हूं. हम ने उनकी हर बात को ठोंक बजा कर देखा. जिधर भी ठोंका उधर ही छेद मिला. पता चला की वे जो भी बोलते हैं उसके खिलाफ रहते हैं .जहरखुरानों की तरह ,जो अचानक आपको ट्रेन में मिलेंगे .हर सेवा को तत्पर मिलेंगे. लपक के चाय ला देंगे. बच्चे को सू-सू करा आयेंगे. फिर प्रसाद देंगे. और उसके बाद की कथा आपको मालूम है. इसलिए हम इन्हें गिरोह कहते हैं. बात लंबी चलती. बदरी का मौसम है. हम खाली और निठल्ले बैठे थे. लेकिन उन्हें एक जरूरी काम याद आ गया. उनकी गाय कल से ही 'बोल' रही है उसे उपयुक्त जगह ले जाना था सो वे विदा हो गये जय श्री राम के अभिवादन के साथ .बतकही कालम से