हरिशंकर शाही
अयोध्या .9 सितंबर . ' भईया, ई राहुल गांधी तो बिल्कुल आम मनई जस लागत हैंन। 'यह प्रतिक्रिया थी हनुमान गढ़ी के बगल की गली में फूल बेचने वाली पूरन देई की ।यह 9 सिंतबर की सुबह है, और हिंदु धर्म के लिए बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र अयोध्या में पुलिस व वीआईपी लाल बत्ती लगी गाड़ियों के शोर सुनाई दे रहे हैं। इस कस्बे में आज कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को आना है, जो अपनी देवरिया से दिल्ली तक की किसान यात्रा के लिए अपने यात्रा मार्ग पर हैं। वैसे इस शहर के लिए ऐसे शोर कोई नई बात नहीं हैं। आखिर भारत की राजनीति पिछले दो दशकों से सीधे तौर पर इसी शहर के नाम और इससे जुड़ी आस्था की राजनीति के आस-पास चक्कर काटती ही नज़र आ रही है।
खैर हम आज़ की बात करते हैं, और चलते हैं इस कस्बे में दूसरे सबसे प्रसिद्ध और निर्विवादित मंदिर, हनुमानगढ़ी की ओर, राम भक्त हनुमान को समर्पित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है यह रामभक्त हनुमान का स्थान रहा है, और यहाँ दर्शन करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इसी मंदिर में अभी थोड़ी देर में राहुल गांधी आने वाले हैं। शायद राहुल गांधी भी अपनी पार्टी के उत्तर प्रदेश में सत्ताइस सालों से चल रहे वनवास को दूर करने का वरदान प्राप्त करना चाहते हों।
कुछ देर बात गाड़ियों का शोर आने लगता है और स्थानीय पुलिस के अलावा एसपीजी के जवान दिखने लगते हैं। इसी के साथ ही सफेद कुर्ता पैजामा पहने हुए एक वीआईपी व्यक्ति दिखते हैं, जिनके चेहरे पर कई दिन की बढ़ी हुई दाढ़ी है और उस दाढ़ी से झांकते हुए सफेद बाल के साथ पूरा व्यक्तित्व आम आदमी सरीखा है, ये हैं राहुल गांधी। जिसकी तस्दीक हनुमान गढ़ी के बगल की गली में फूल बेचने वाली पूरन देई करते हुए कहती हैं, “भईया, ई राहुल गांधी तो बिल्कुल आम मनई जस लागत हैंन”। हनुमान गढ़ी मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए राहुल गांधी की फोटो लेने में जुटे मीडिया कर्मियों और सुरक्षा कर्मियों की भीड़ को देखकर वहां हमेशा रहने वाले बंदर बहुत ही उत्सुक और कुछ हद तक सहमें हुए से हैं।
वैसे नेहरू-गांधी परिवार के किसी सदस्य की यह करीब 25 से अधिक सालों के बाद की यात्रा है, और चूंकि उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव और उसके बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में अयोध्या और धर्म की राजनीति के महत्व को नकारा नहीं जा सकता है, इसलिए भी यह यात्रा बहुत संदेश दे जाती है। राहुल गांधी से पहले उनके पिता राजीव गांधी संद्भावना यात्रा लेकर यहाँ आए थे।हनुमान गढ़ी मंदिर में दर्शन और पूज़न करने के बाद राहुल गांधी मंदिर के महंत ज्ञान दास से भी मिलते हैं, जिनके बारे में अक्सर चर्चा रहती है कि अयोध्या के दूसरे प्रमुख मंदिर के अधिपति होने के बावजूद उनका हिंदुत्व के उग्र नेताओं, संतों व संगठनों से मतभेद रहता है। राहुल गांधी राम जन्म भूमि की ओर नहीं जाते हैं और ना ही उसका जिक्र करते हैं।
राहुल की इस मंदिर यात्रा से एक संदेश और भी निकलकर आता है कि कहीं ना कहीं कांग्रेस अपनी उस हिंदु विरोधी छवि से मुक्ति चाहती है, जिसे चाहे-अनचाहे रूप से पिछले कुछ सालों में उसके ऊपर थोप दिया गया था, और जिसकी वज़ह से भाजपा जैसे हिंदुत्ववादी राजनीति करने वाले दलों का कांग्रेस पर हमला करना आसान होता था।
बहरहाल काफिले के निकलने के बाद मंदिर के निकट प्रसाद बेचने वाले वाले शिव शर्मा कहते हैं, “राहुल गांधी पहली बार ही सही किसी मंदिर में दिखे तो सही, हनुमान जी अब इनका भी बेड़ा पार कर देंगे।” लेकिन उनसे यह जानने की कोशिश की गई कि देश में राजनीति की धुरी बन गए इस अयोध्या कस्बे की अपनी क्या समस्या है, तो कहने लगे, “साहब, यहाँ मंदिर के अलावा बहुत कुछ है करने के लिए, मंदिर के नज़दीक रहने वाले अपने घरों में मेहमानों को नहीं रख सकते, उसके लिए भी सूचना देनी पड़ती है, मकान बनवाना हो तो पचास परमीशन लेनी पड़ती है, अयोध्या ने लोगों को गद्दी दी पर अयोध्या तो बस वहीं का वहीं रह गया”।
आगे बढते हैं तो वहीं थोड़ी दूर पर एक चाय की दुकान पर एक साधु मिलते हैं, और वहां पहले से ही राहुल गांधी की यात्रा की ही चर्चा हो रही थी, लोग बात करते हैं, “कम से कम अब कांग्रेस को अक्ल आई”। यहीं साधु बाबा बोलते हैं, ”राहुल गांधी को सतंन की सेवा करनी पड़ेगी तभी उनके पाप दूर होंगे”।खैर इन तमाम प्रतिक्रियाओं के बीच एक बात तो स्पष्ट है कि यह सारी यात्रा पीआर के एक्सपर्टों द्वारा डिज़ाइन की गई है, जिसका मकसद कांग्रेस पार्टी को चर्चा में लाना है। और चूंकि ब्राह्मण मतदाताओं पर पार्टी अपनी पकड़ बनाना चाहती है जिसे वो खुलकर कह चुकी है, इसलिए इस वर्ग को लुभाने के लिए भी कांग्रेस और राहुल अपनी छवि उदार हिंदुत्व की बनाना चाहते हैं, जिसमें सबका समावेश हो।राहुल गांधी की इस यात्रा के क्या परिणाम होंगे यह तो आने वाले चुनाव ही तय करेंगे लेकिन इससे एक बात तो साफ है अगड़ों और पिछड़ों में जो हिंदुत्व की विरोधी छवि के कारण कांग्रेस को लेकर दूरी थी, उसे सुधारने में यह यात्रा काफी मददगार भी हो सकती है।
साभार -राग जनतंत्र ब्लाग