सुप्रिया रॉय
नई दिल्ली, 1 जुलाई - 1992 में जब बाबरी मस्जिद गिरी थी तो कांग्रेस की सरकार दिल्ली में थी और भाजपा के कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश में राज कर रहे थे। नरसिंह राव बहुत जोर से चिल्लाए थे कि उनके साथ धोखा किया गया है। उन्होंने जांच के लिए न्यायमूर्ति एम एस लिब्राहन की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग बनाया था।
आयोग नरसिंह राव ने बनाया था और सोलह साल पहले बनाया था। भारत के इतिहास में लिब्राहन का नाम इसलिए भी दर्ज रहेगा कि वे सबसे लंबे समय तक अस्तित्व में रहने वाले एक आयोग के मुखिया रहे जिनमें से 48 बार उन्हें तीन तीन महीने का सेवा विस्तार दिया गया। इन सोलह वर्षों में उन्होंने लगभग 110 भाजपा और कांग्रेस नेताओं की गवाहियां ली और अंत में दस हजार पन्ने का दस्तावेज सरकार को सौप कर कहा कि ये लीजिए रिपोर्ट।
यह रिपोर्ट फिलहाल गोपनीय रखी गई है। उस समय कार सेवकों की सेवा करने वाले कल्याण सिंह फिलहाल मुलायम सिंह यादव के दोस्त हैं और यूपीए सरकार का बिन मांगे समर्थन कर रहे हैं। नरसिंह राव संसार से विदा हो चुके हैं और रिपोर्ट मिली है मनमोहन सिंह को। आखिर न्यायमूर्ति लिब्राहन ने ऐसा कौन सा सनसनीखेज खुलासा किया है जिसकी वजह से इस रिपोर्ट को गोपनीय रखा गया।
हम आपको बताते हैं कि कहानी क्या है? इस रिपोर्ट में लगभग 9 हजार पन्ने उन अलग अलग कमेटियों और अदालती निष्कर्षों की प्रतियों के हैं जिन्हें लिब्राहन का निष्कर्ष नहीं कहा जा सकता। इसके अलावा लगभग पांच सौ पन्ने उन गवाहियों के हैं जो न्यायमूर्ति लिब्राहन ने जैसी की तैसी बगैर किसी निष्कर्ष के रख दी हैं कुल मिला कर कहने का आशय सिर्फ यह है कि सिर्फ रद्दी का एक भंडार है लिब्राहन कमेटी की रिपोर्ट और उससे अयोध्या का पूरा सच कभी पता नहीं चलने वाला।
आश्चर्यजनक बात यह है कि नरसिंह राव सरकार में भी मनमोहन सिंह शामिल थे और उस समय के प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने अयोध्या में जो हुआ उसे सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी बताया था। जाहिर है कि इस जिम्मेदारी में मंत्री की हैसियत से मनमोहन सिंह को भी शामिल माना जा सकता है। अब वे लिब्राहन कमेटी की रिपोर्ट का क्या करेंगे यह तो वे ही जानते है लेकिन सौ बातों की एक बात यह है कि लिब्राहन कमेटी की रिपोर्ट न सरकार के किसी काम आने वाली है और न उससे बाबरी मस्जिद के ध्वंस का असली षडयंत कभी सामने आ पाएगा।
भारत एक आयोग प्रधान देश है जहां किसी भी बात पर किसी भी कीमत पर कितने भी लंबे समय के लिए आयोग बिठा दिया जाता है और उस पर अपार खर्चा भी किया जाता है और आखिर में निष्कर्ष के तौर पर कम से कम सच कभी सामने नहीं आता।