देवेन मेवाड़ी
हमारे मुल्क के मशरिकी हिस्से में एक खूबसूरत सूबा है- अरूणाचल प्रदेश. मशरिकी हिस्से में होने की वजह से सूरज अपनी रोशनी की चादर सबसे पहले इसी सूबे के हरे-भरे पहाड़ों और मैदानों पर फैलाता है. इसीलिए इसे ‘लैंड आफ द राइजिंग सन’ यानी ‘सूर्योदय का सूबा’ कहा जाता है.
कुदरत ने करीब 84,000 स्क्वायर किलोमीटर में फैले अरूणाचल प्रदेश को हरियाली की बेशकीमती सौगात दी है. सूबे का कम से कम 80 फीसदी हिस्सा हरे-भरे जंगलों से ढका है. इसके अलावा वहां दरिया हैं, दोआब हैं, झर-झर बहते चश्मे हैं, हरे-भरे घास के मैदान हैं, घने जंगल हैं. और, इसके साथ ही ऊंचे-ऊंचे पहाड़ भी हैं जिनके पैताने दरिया बहते हैं तो ऊंची चोटियां बर्फ से ढकी रहती हैं. तवारीख पर नजर डालें तो नार्थ-ईस्ट का यह इलाका 1971 तक नेफा कहलाता था. उसके बाद इसे यूनियन टैरिटरी बनाया गया और फिर 1987 में अरुणाचल प्रदेश के नाम से मुल्क का 24 वां नया सूबा दिया गया. आज इसमें कुल 19 जिले हैं.
इनमें से तीन जिलों यानी मगरिबी सियांग, अपर सियांग और दिबांग वैली में फैला घने जंगलों का इलाका पहले रिजर्व फारेस्ट कहलाता था. इस इलाके में कुदरत के नायाब खजाने और वहां के ट्राइबल कल्चर को बचाने के लिए अरुणाचल प्रदेश सरकार ने 1998 में इसे बायोस्फियर रिजर्व का दर्जा दे दिया और इसका नाम रखा- दिहांग दिबांग बायोस्फियर रिजर्व. इसे दुनिया का एक ऐसा इलाका माना गया है जहां कायनात अपने असली रूप में मौजूद है जिसे इंसान ने छेड़ा नहीं है.
यह बायोस्फियर दुनिया के जाने-माने बायोडायवर्सिटी हाट-स्पाट में शामिल है. पेड़-पौधों और जानवरों की तमाम जातियों के बेशकीमती खज़ाने को बायोडायवर्सिटी हाट स्पाट कहते हैं. दिहांग दिबांग एक ऐसा ही बेशकीमती खज़ाना है. हम खुशकिस्मत हैं कि यह खजाना हमारे मुल्क में है. यह अरुणाचल प्रदेश के नार्थ ईस्ट में 5,112 स्क्वायर किलोमीटर में फैला हुआ है. वहां का मशहूर माउलिंग नेशनल पार्क और दिबांग वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी भी दिहांग दिबांग बायोस्फियर रिजर्व का ही हिस्सा हैं. यह रिजर्व इस मायने में जमीं और आसमान को छूता है कि जहां इसकी जमीन समंदर के लेवल पर है, वहीं इसके ऊंचे पहाड़ों की चोटियां 16,000 फुट की ऊंचाई पर आसमान को छूती हैं.
दिहांग दिबांग की गुलज़मी के कई खूबसूरत फूल दुनिया के तमाम गुलशनों की शान बढ़ा रहे हैं. यहां के आर्किड और रोडोडेंड्रान इसकी शानदार मिसाल हैं. दिहांग दिबांग बायोस्फियर रिजर्व के घने जंगलों में फस्ले गुल का आगाज होता है और दरख्तों पर लटके आर्किडों में रंगे बहारां आ जाती है. पूरी फ़जा की रंगत बदल जाती है. रोडोडेंड्रान खिलते हैं तो रंगरेज़ कुदरत जैसे अपनी कूंची से जंगलों को सुर्ख रंग से रंग देती है. रंगो बू का वह बेमिसाल नज़ारा होता है.
इस बायोस्फियर रिजर्व में एक बड़ा और खूबसूरत दरिया बहता है जिसका नाम है- दिबांग दरिया. इसमें तमाम छोटे-छोटे दर्याचा आकर मिलते हैं. दिबांग दरिया को वहां के इदु मिशमिस ट्राइब के लोग अपनी भाषा में ‘तालोह’ कहते हैं. इसमें जो छोटे दर्याचा मिलते हैं, वे हैं: ट्री, माथुन, इथुन, आशुपानी और इमराह.
इसका 4,095 स्क्वायर किलोमीटर इलाका ‘कोर जोन’ है और 1,017 स्क्वायर किलोमीटर के दाइरे में ‘बफर जोन’ है. कोर जोन की हर तरह से हिफाजत की जाती है. इसमें इंसानी दखल पर कड़ी पाबंदी है. यहां सिर्फ रिसर्च की जा सकती है. बफर जोन बाहरी हिस्से में है जहां इकोलाजी से जुड़ी रिसर्च के साथ-साथ तफ़रीह और सैर-सपाटे की इजाजत दी जाती है. हालांकि वहां इंसानी दखल यों भी काफी कम है और नई तरक्की के कदम वहां अब तक नहीं पड़े हैं. दिहांग दिबांग बायोस्फियर रिजर्व के दायरे में इंसानों की आबादी बहुत ही कम है. वहां बस दस-बीस ट्राइबों के बाशिंदे रहते हैं जिनकी और कई सब-ट्राइब हैं.
दिहांग दिबांग बायोस्फियर रिजर्व की खासियत यह है कि इसमें दरिया के गीले किनारे हैं तो दर्रे, दोआबे और दलदल भी हैं, और पहाड़ों की नीची-ऊंची जमीन भी है. आबोहवा के हिसाब से देखें तो इसमें कम से कम आठ तरह के जंगलों और पेड़-पौधों वाले अलग-अलग इलाके हैं. नीचे मैदानी इलाकों में चौड़ी पत्तियों वाले पेड़-पौधों का सब-ट्रापिकल इलाका, उससे ऊपर चौड़ी पत्तियों वाले दरख्तों का टैम्परेट इलाका, उससे ऊपर कोनिफर यानी चीड़ जाति के जंगलों का इलाका, फिर निचले पहाड़ी इलाके यानी सब-एल्पाइन झाड़ीदार पेड़-पौधे और उससे ऊपर एल्पाइन घास के मैदान. इनके अलावा मैदानों में बांस के जंगल और लहलहाती घास के मैदान हैं.