घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश!

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घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश!

डा रवि यादव 

अगस्त 2023 में टाइम्स नाउ नवभारत ईटीजी के सर्वे में  2024 के लोकसभा  चुनाव में एनडीए गठबंधन को 285 से 335 के बीच सीट जीतने की भविष्यवाणी की गई. सर्वे में 1 लाख 10 हजार  लोगों ने भाग लिया जिसमें 60 प्रतिशत ने फोन पर  अपनी राय  दी . इसी तरह   मूड ऑफ नेशन नाम से  25 अगस्त को जारी  इंडिया टुडे-सी वोटर सर्वे के आधार पर कई दिन तक मीडिया में न्यूज/ कवर स्टोरी / डिबेट हुई जिसमें आज चुनाव हो तो एनडीए को 306 सीट जीत कर  पुन: सरकार में लौटने की भविष्यवाणी  की गई है .  उक्त सर्वे में कुल 25951 लोगो ने भाग लिया .आमतौर पर सर्वे साइज एक लाख से कम ही रहता है जिसके आधार पर पूरे देश का मिजाज  या वोटर का इरादा बताने की कोशिश की जाती है .  अगर इस आधार पर हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुए घोषी विधान सभा उपचुनाव और मिर्जापुर, जालौन, लखनऊ और बरेली में जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में  लगभग 5 लाख से अधिक मतदाता मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया जो  उत्तर प्रदेश के मूड को बताने के लिए  काफी बडा सैम्पल साइज है और उत्तर प्रदेश के अलग-अलग  आंचलों - पूर्वी ,मध्य ,बुंदेलखंड और रुहेलखंड का प्रतिनिधित्व करता है.

सपा भाजपा के अलावा कई अन्य व्यक्ति - दलों का स्टेक चुनाव पर लगा था जिनमें ओमप्रकाश राजभर, बसपा व सपा की पीडीए रणनीति मुख्य है-


सपा भाजपा:    लोक सभा  आम चुनाव से पहले  घोषी उपचुनाव ने जहां समाजवादी पार्टी और इंडिया गठबंधन के मनोबल को बढाने का काम किया है तो भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान का स्पस्ट संदेश दे दिया है अब यह समाजवादी पार्टी पर निर्भर करता है  घोषी के विधान सभा उपचुनाव के उद्घोष को और जिला पंचायत सदस्यों के उपचुनाव के संदेश को  समझते हुए पूरे प्रदेश में  वह सत्ता विरोधी मानस को किस तरह अपने पक्ष में करने में कामयाब होती है या भाजपा अपने जनविरोधी अड़ियल  रवैए में सुधार कर लोगो को बुल और बुलडोजर से निजात दिलाकर अपनी स्थिति में सुधार करती है . लेकिन सौ से अधिक फर्जी केस का सामना कर रहे आजम खान पर इन्कम टैक्स की छापेमारी यह बता रही है कि भाजपा सरकार अपने पक्षपातपूर्ण ,अलोकतांत्रिक और  द्वेषपूर्ण व्यवहार को बदलने को तैयार  नही.

ओमप्रकाश  राजभर :  घोषी उपचुनाव में इंडिया गठबंधन को 57 प्रतिशत और एनडीए को 37 प्रतिशत  वोट मिला है .  घोषी सीट का जातीय समीकरण इस तरह का है जहां भाजपा के यूपी के  सभी प्रमुख सहयोगियों के आधार वोट काफी अच्छी संख्या में है . प्रत्याशी दारासिंह चौहान की अपनी जाति के मतदाता करीब 40 हजार है तो राजभर मतदाता 40 हजार से अधिक है जिन्हे ओमप्रकाश राजभर अपनी निजी जागीर और मुट्ठी में होंने का दम्भ भरते है और राजनीतिक सौदेबाजी करते है .ओमप्रकाश राजभर के लिए यह उपचुनाव अधिक बड़ी चेतावनी है जो सार्वजानिक रुप से  खुद को व अन्य सभी राजनीतिज्ञों को दो मुहां सांप सत्ता लोलुप ,मौकापरस्त और सिद्धांतहीन बता कर राजनीति करना चाहते है . राजनीतिक हो व्यवसाय या व्यक्तिगत सामाजिक जिंदगी व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसके भरोसेमंद होने पर निर्भर करती है . जो भरोसेमंद नही वह प्रतिष्ठित नही हो सकता और भरोसेमंद होने के लिए व्यक्ति के बोलने और आचरण में सामंजस्य का होना आवश्यक शर्त है 


बहुजन समाज पार्टी:  मायावती जी और बहुजन समाज पार्टी तमाम विपरीत परिणामों के बाद आत्मावलोकन के लिए तैयार नही है इस स्थित में मज़बूत बैचारिक आधार के बाबजूद पार्टी रसातल की ओर जा रही है और अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है .



पीडीए : संख्या और आर्थिक स्थित के कारण बिहार और उत्तर प्रदेश में यादव सामाजिक न्याय की लड़ाई में महती भूमिका का निर्वाह करते रहे है अत एक रणनीति के तहत सामाजिक न्याय की जरूरत वाले समाज को बांटने के लिए सामंतवादी - पेशवाई शक्तियां झूठ और परपंच के माध्यम से वंचित वर्ग को आपस में लडाने का षडयंत्र करती रही है . इसी षडयंत्र के तहत एक झूठ बार बार दोहराया जाता रहा है कि दलित समाज यादवों की दबंगई से परेशान रहने के कारण समाजवादी पार्टी के साथ नही जा सकता . यद्यपि सचाई इसके पूर्णतया विपरीत है . उत्तर प्रदेश में एक भी रियायत, रजबाडा यादवों के पास नही रहा और आजादी के बाद शासन प्रशासन में भी यादवों की संख्या सामंती पृष्ठभूमि वाली  जाति से कम ही रही है फिर यादव किसके दम पर दबंगई कर सकते थे ? सामान्य स्थित यह रही है कि संख्याबल के दम पर अन्य बंचितों की तुलना में कम ही सही किन्तु स्वयं यादव समाज सामंतवाद का पीड़ित रहा है. दलित  बंचित वर्ग अपनी सामाजिक आर्थिक मजबूरियों और दुष्प्रचार के कारण बसपा के उभार से पहले और  2014 के बाद फिर से सामंतवादी - पेशवाई पहचान रखने वाले व उत्पीड़न करने वाले वर्ग के साथ रहा है लेकिन पहले मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव और अब घोषी विधान सभा उपचुनाव में दलित वर्ग सपा के साथ जाता दिखाई देता है मगर अखिलेश यादव और सपा को पीडीए को संगठित करने के लिए अभी बहुत कुछ करना होगा .

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