महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है?

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महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है?

आलोक कुमार 

नई दिल्ली.भाकपा माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य का कहना है कि मोदी सरकार चाहती है कि हम मान लें कि वह महिला आरक्षण लागू करने के प्रति इतनी गंभीर है कि इस के लिए उसने संसद का विशेष सत्र बुलाया है. लेकिन जो बिल लाया गया है उससे सरकार की नीयत का खुलासा हो गया है, यह बिल जनगणना पूरी होने और उसके बाद डिलिमिटेशन की प्रक्रिया चलाने के बाद ही लागू होगा. इसे तत्काल लागू करने से हमें कौन रोक रहा है?

मोदी सरकार भारत के इतिहास की एकमात्र ऐसी सरकार है जो दस साल बाद होने वाली जनगणना को करने में फेल हुई है. कोविड के बावजूद दुनिया में इस महामारी से सर्वाधिक प्रभावित देशों ने - चीन, अमेरिका और ब्रिटेन समेत - अपने यहां जनगणना का कार्य पूरा कर लिया है, बस मोदी के राज में भारत ही फेल हुआ है. महिला आरक्षण संसदीय क्षेत्र में महिलाओं के बेहद कम प्रतिनिधित्व को ठीक करने के समाधान के रूप में देखा जा रहा है. इस समस्या को समझने के लिए हमें एक और जनगणना और डिलिमिटेशन की जरूरत नहीं है.


जो बिल सम्पूर्ण संसदीय गंभीरता का हकदार है उसे लगता है काफी जल्दबाजी में तैयार कर पेश कर दिया गया है. जब क्रिप्प्स मिशन ने भारत के लिए डोमिनियन स्टेटस का प्रस्ताव दिया था, तब महात्मा गांधी ने उसे "एक घाटे वाली बैंक का पोस्ट डेटेड चेक" कहा था, यह बिल भी वैसा ही पोस्ट डेटेड चेक है. 


महिला आरक्षण बिल के लिए महिला आंदोलन दशकों से संघर्ष कर रहा है जिसे व्यापक दायरे की प्रगतिशील राजनीतिक शक्तियों का समर्थन प्राप्त है, इसे एक और चुनावी कलाबाजी में पतित नहीं होने दिया जाएगा.


अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन, ऐपवा 


लोकसभा में आज महिला आरक्षण विधेयक पेश किए जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि पिछले 27 वर्षों से देश भर में महिला संगठन इस मांग को उठाते रहे हैं.ऐपवा ने लगातार महिला आरक्षण बिल को पास करने की मांग पर बिहार के गांवों से लेकर दिल्ली तक आंदोलन चलाया है.

         उन्होंने कहा कि पेश बिल के बारे में जो जानकारी आ रही है उसके मुताबिक यह विधेयक पास हो भी जाए तो भी '29 में ही लागू हो पाएगा.अर्थात इस चुनाव में महिला आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा.

      मीना तिवारी ने कहा कि संसद में पेश बिल पर लोकतांत्रिक तरीके से बहस चलनी चाहिए और महिलाओं की राय पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की उपस्थिति ज्यादा से ज्यादा हो यह जरूरी है.

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