और पुलिस टुकुर टुकुर माजरा देखती रही

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और पुलिस टुकुर टुकुर माजरा देखती रही

आलोक कुमार  
मोकामा.कतिपय कारणों से मोकामा स्थित नाजरेथ अस्पताल को बंद कर दिया गया है.इसके बाद ओपीडी खोला गया और धीरे धीरे अन्य विभाग भी खोला गया.अब यहां के स्थानीय लोग प्रेशर पॉलिटिक्स खेलने लगे हैं.एक मृत व्यक्ति अस्पताल में लाकर शांतचित माहौल को अशांत करने का खेला कर दिए.इससे एससीएन धर्मसमाज की सिस्टरों के दिलोदिमाग में डर समा गया है.उस समय सिस्टरगण विचलित हो गये,जब पुलिस भी भीड़ के साथ जाकर खड़ी हो गयी और भीड़ को नियंत्रित करने के बदले टुकुर टुकुर माजरा देखती रही. 

अभी अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय का दिल्ली स्थित चर्च तोड़ने का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि बिहार की राजधानी पटना से नब्बे किलोमीटर की दूरी पर स्थित नाजरेथ अस्पताल में भीड़ ने हमला कर दिया.इस सदर्भ में मोकामा नाज़रेथ अस्पताल की प्रशासिका एससीएन सिस्टर अंजना ने शुभचिंतकों के नाम एक खुला पत्र  जारी करने को मजबूर हो गयी. नाज़रेथ अस्पताल की प्रशासिका एससीएन सिस्टर अंजना ने कहा कि बहुत ही भारी मन से आप लोगों शुभ प्रभात की शुभकामनाएं दे रही हूं! नाज़रेथ अस्पताल के लिए यह सुप्रभात नहीं बल्कि उदासी भरा और उथल-पुथल का दिन बनकर रह गया. 

उन्होंने कहा कि वृहस्पतिवार रात करीब 9.30 बजे, तीस से तैतीस लोगों की भीड़ ने शांतिपूर्ण माहौल को अशांत कर दिए. एकमात्र कामकाजी वार्ड को तबाह कर दिये.भीड़ ने कामकाजी वार्ड में कार्यरत स्टाफ, चौकीदार और मरीजों को समान रूप से आतंकित कर दिया. 

उन्होंने कहा कि इस भीड़ के क्रूरतम रवैया के कारण कामकाजी वार्ड में भर्ती ग्यारह में से दस रोगियों ने भयाक्रांत हो उठे.अचानक माहौल खराब होने का असर मरीजों पर पड़ा.उनका बुखार और बीपी बढ़ गया.कुछ लोगों को दस्त होने लगा. यह सब घबराहट के कारण हुआ.एक रोगी का रक्तचाप बहुत बढ़ गया.यह सब मोकामा पुलिस कर्मियों की आंखों के सामने होती रही.जो भीड़ दर्शक बन गयी. 

इनके विपरित व अप्रत्याशित अराजक स्थिति को देखते हुए जिला प्रशासन को सूचित करने की कोशिश करने पर ऑन-कॉल सिस्टर अरुणा केरकेट्टा, एससीएन को पीटा गया और लात भी मार दी. 

इतना अत्याचार करने बाद आतंकित लोगों ने चिल्लाते हुए वार्ड में पहुंचा, "सब कोई तैयार हो जाओ और डॉक्टर को बुलाओ" और एक स्ट्रेचर लिया और स्ट्रेचर पर एक व्यक्ति को लाया.उन्होंने स्ट्रेचर को वार्ड के अंत तक घुमाया जहां दो महिला रोगी आराम कर रही थीं. भीड़ में से एक परिजन ने एक बूढ़ी महिला मरीज की पिटाई करने लगा. 

जैसे ही हेड नर्स ने हंगामे के बारे में पूछा और जानना चाहा कि यहां क्या हो रहा है? दूसरी नर्स ने डॉक्टर को ड्यूटी पर बुलाया.भीड़ को उन्मादी देखकर डॉक्टर ने दो परिजनों और एक को नर्सों के कक्ष में बुलाया और उन्हें बताया कि जो मरीज लाये गए है उनकी मृत्यु पहले ही हो चुकी है. इस पर दो परिजन चिल्लाते रहे कि मरीज का नब्ज धड़क रहा है.उन्होंने नर्सों को पीटने के लिए हाथ खड़े कर दिए.अपनी जान के डर से नर्सों ने डॉक्टर के साथ नर्सों के कक्ष में जाकर खुद को बंद कर लिया और सिस्टर को मदद करने के लिए बुलाया.वहीं भीड़ दरवाजा पीटती रही. 

सिस्टर अरुणा रोगी की स्थिति या नर्सों या डॉक्टर की स्थिति के बारे में नहीं जानने के बारे में पूछताछ करने आई थी.उसने एक परिजन से पूछा कि रोगी के साथ क्या हुआ था क्योंकि शरीर पहले से ही ठंडा हो गया था.उनमें से एक ने बताया कि शंकर टोला से रेलवे के जेई पंकज कुमार सिंह (40) को काम से वापस जाते समय गोली मार दी गई. और वह तुरंत अपनी मोटरसाइकिल से गिर गया. 

इसके बाद तुरंत सिस्टर अरुणा ने जिला प्रशासन को फोन करने की कोशिश की. इस दौरान उसकी पिटाई की गई और उनमें से एक ने मरीज की नब्ज बताकर उससे फोन छीन लिया.सिस्टर अरूणा का कहना है ऐसे युवक को अचानक खोना दुखद है. इसके साथ ड्यूटी पर तैनात नर्सों और डॉक्टर को आतंकित करना और भी दुखद है. 

इस समय नाज़रेथ अस्पताल मुट्ठी भर नर्सों और डॉक्टरों के साथ काम करता है. अस्पताल में काम करने के लिए प्रशिक्षित डॉक्टरों और नर्सों की भर्ती करना अस्पताल प्रशासन के लिए एक मुश्किल काम है.फिर हमारे स्थानीय लोगों के असभ्य और भीड़ भरे व्यवहार से जो अस्पताल प्रशासन से अस्पताल को एक पूर्ण अस्पताल के रूप में कार्य करने के लिए कहते रहते हैं; क्या यह संदर्भ में विरोधाभास नहीं है? 

इस समय नाज़रेथ अस्पताल में आउट पेशेंट प्रसूति और स्त्री रोग के साथ-साथ केवल चिकित्सा आउट पेशेंट और इन-पेशेंट सेवाएं हैं.प्रयोगशाला, एक्स-रे, अल्ट्रा-साउंड और फार्मेसी जैसी अन्य सभी सेवाएं काम कर रही हैं.एक 'वेलनेस सेंटर' और एक उन्नत फिजियोथेरेपी विभाग भी है. 

इन दोनों केंद्रों के माध्यम से कई स्ट्रोक रोगियों को एक प्रबंधनीय जीवन जीने की ताकत मिलती है.हमारे स्थानीय लोग जो हमसे अस्पताल को पहले की तरह चलाने के लिए कहते रहते हैं, वही हैं जो अस्पताल को जिस तरह से काम करना चाहिए, उसे चलाने में हमारी मदद नहीं करते हैं. ऐसे प्रतिकूल माहौल में काम करना कैसे संभव है? 

जब किसी मरीज या मृत शरीर को अस्पताल में लाया जाता है तो उसका पालन करने की एक प्रक्रिया होती है.पंकज के मामले में भीड़ में नर्स, ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर और अटेंडेंट थे.यह दुख की बात है कि अनियंत्रित भीड़ के बीच पुलिसकर्मी सक्रिय नहीं हो सके. 
 

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