आलोक कुमार
बेगूसराय.बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं.उन्होंने पूर्व की तरह ही गृह अपने पास रखा है.वे समय समय पर गृह विभाग की समीक्षा भी करते हैं. शहीद के सम्मान में पुलिसों की बंदुकें चल नहीं पाती है.इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.
बताते चले कि बिहार पुलिस ने एक बार फिर अपनी किरकिरी करा दी है. उनकी बंदूकें एक बार फिर ऐन मौके पर दगा दे गईं.शहीद के सम्मान में उनकी बंदूकें नहीं चल पाईं और फायरिंग के समय पुलिसवाले ट्रिगर दबाते-दबाते थक गए. मौका था शहीद लेफ्टिनेंट ऋषि कुमार के गार्ड ऑफ ऑनर का. हालांकि हमारी सेना ने लाज बचाई और अपनी बंदूक से फायरिंग कर शहीद को सलामी दी.
बता दें कि बेगूसराय के सिमरिया स्थित गंगा तट पर अंत्येष्टि से पहले लेफ्टिनेंट ऋषि कुमार को सेना और पुलिस की ओर से गार्ड ऑफ ऑनर दिया जा रहा था. जहां शहीद को सेना के जवानों ने अपनी बंदूक से फायरिंग कर सलामी दी. इस दौरान सारे बुलेट फायर हुए, लेकिन जब बिहार पुलिस की ओर से सलामी देने की बारी आई तो फिर से पुरानी वाली गलती सामने आ गई.बिहार पुलिस ने बंदूक उठाकर जब ट्रिगर दबाया तो कई पुलिसकर्मी से ट्रिगर दबा ही नहीं. किसी से दबा तो फायरिंग नहीं हो पाई. सलामी के निर्देश के अनुसार कई पुलिसकर्मी तो बिना फायरिंग के ही अगले निर्देश को पालन करते हुए आगे बढ़ गए.जिन पुलिसकर्मियों की बंदूक दगा दे गई और फायरिंग नहीं हो पाई, उनके लिए स्थिति बेहद असहज रही. वे लगातार बंदूक के ट्रिगर को दबाने और अपने स्तर पर उसे दुरुस्त करने की कोशिश करते दिखे. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि सभी बंदूकें नाकाम रहीं. वहां मौजूद कई पुलिसकर्मियों की बंदूक से फायरिंग हुईं, लेकिन ये स्थिति वास्तव में न केवल असहज बल्कि अफसोसजनक भी रही.
वैसे ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब सलामी देने के वक्त बिहार पुलिस की बंदूक से फायरिंग नहीं हो पाई.
उससे पहले अगस्त 2019 में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्रा की अंत्येष्टि से पहले गार्ड ऑफ ऑनर देने में पुलिस की 21 राइफलों से एक भी बुलेट फायर नहीं हुई थी. 21 पुलिस जवानों को 10-10 राउंड फायर करने थे, यानी कुल 210 बुलेट छोड़ी जानी थीं लेकिन फायरिंग नहीं हुई.
याद रहे कि फरवरी 2020 को, जब जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते शहीद हुए सीआरपीएफ के जवान रमेश रंजन को उनके पैतृक गांव भोजपुर जिला के जगदीशपुर में अंतिम विदाई देने के वक्त फायरिंग कर शहीद को श्रद्धांजलि देने की बारी आई तो बिहार पुलिस की बंदूकें गोलियां उगलने में नाकामयाब रहीं थीं.
बिहार ने आज एक बार फिर एक बड़ी शख्सियत को खो दिया. हजरत मौलाना शैयद वली रहमानी, जो इंसानियत और भाईचारे की बेशकीमती मिशाल थे, उन्होंने तीन मार्च 2021 को पटना के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांसें ले ली. हजरत मौलाना शैयद वली रहमानी भारत के मुसलमानों के ही नेता नहीं थे बल्कि देश के के सभी धर्म व जाति के लोगों के रहनुमा थे. वली रहमानी साहब मुंगेर खानकाह रहमानी के सज्जादा नशि सह बिहार, झारखण्ड एवं उड़ीसा के इमारते शरिया के अमीरे शरीयत थे. उनकी मौत के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार की घोषणा की थी. दरभंगा के डॉ इफ्तेखार आलम बताते हैं कि जब सिविल जमादार ने शोक सलामी के लिए जवानों को निर्देश दिया तो पुलिस के सभी जवानों का राइफल फंस गया और आसमानी फायरिंग नहीं हो पाई. काफी प्रयास के बाद सभी राइफलों को दुरूस्त करने के क्रम में 10 में से मात्र 4 राइफलों से सलामी दी गई.
बिहार पुलिस के सिपाहियों को जरूरत पड़ने पर गोली चलाना तो दूर राइफल भी कॉक करने नहीं आता. ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि बिहार पुलिस के डीआईजी का कहना है. बिहार में राजकीय सम्मान के साथ हो रहे एक अंतिम संस्कार में सिपाहियों की राइफल से गोली ही नहीं चली. डीआईजी ने मामले की जांच की है. जांच के बाद दी गयी रिपोर्ट में बिहार पुलिस के बारे में ऐसी ही टिप्पणी की गयी है. डीआईजी ने इस मामले में 8 पुलिसकर्मियों को दोषी पाते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की है.
इस संबंध में आरजेडी नेता मुकेश यादव ने कहा बिहार की राजनीतिक एकदम निचले स्तर पर गिर चुकी है. नीतीश सरकार में पुलिस अपनी राइफल की सही से देखरेख नहीं कर रही है, जिस कारण आज रहमानी जी को दफनाने के दौरान यह घटना हुई. ये उनका अपमान है.
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