डा रवि यादव
2022 में पहली तिमाही में उत्तर प्रदेश,गोवा, मणिपुर , उत्तराखंड और पंजाब में विधान सभा चुनाव होने है ।पंजाब के अलावा सभी में भाजपा सरकार में है किंतु संघ परिवार सहित भाजपा का पूरा शीर्ष नेतृत्व उत्तर प्रदेश में दिखाई दे रहा है . प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं हर पाँच दिन में एक दिन यूपी में चुनाव प्रचार को धार देने पहुँच रहे है . प्रदेश को तीन भागो में विभाजित कर वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष और दो पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्षों को बूथ प्रबंधन की ज़िम्मेदारी दी गई है. प्रदेश परिवहन निगम की हज़ारों बसें प्रधान मंत्री की सभा में भीड़ ले जाने के लिए लगाई जा रही है मगर प्रशासन व सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग के बाद अपेक्षित भीड़ नहीं जुट पा रही है.
भाजपा अपने मात्र संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सामाजिक विचार से प्रेरणा लेती है. संघ भले हिंदू हित की बात करता है मगर उसका उद्देश्य जन्म आधारित वर्गीय आर्यन श्रेष्ठता का संरक्षण , पोषण और सवर्धन ही रहा है इसके लिए वह बहुसंख्यक की साम्प्रदायिकता का सहारा लेता रहा है . सामाजिक आर्थिक अभिजात्य का हितरक्षक होने से पूँजी ,मीडिया , संसाधनो का स्वाभाविक साथ उसे विमर्श गढ़ने और मनगढ़ंत धारणाएँ बनाने में सक्षम बनाता है.
मंडल के विरोध ने भाजपा को अगड़ी जातियों की पहली पसंद बना दिया. आज़ाद भारत में भाजपा की पहली सरकार अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 1996 में बनी जिसके विश्वास मत पर बोलते हुए स्वर्गीय रामविलास पासवान ने कहा - “ अटल जी आप जिस राम मंदिर आंदोलन की बदौलत आज सरकार में आए है उसके लिए दलितों पिछड़ों ने भी संघर्ष किया है मगर एक भी पिछड़ा आपके मंत्रिमंडल में नहीं है क्यों ? ये हमारी बहिन उमा भारती यहाँ बैठी है और क्याकहते है कि ये हमारे भाई विनय कटियार है जिन्होंने उस आंदोलन में लाठियाँ खाई , आप इन्हें मंत्री बना सकते थे” . उसके बाद अभी 2019 में मोदी जी के नेतृत्व में बनी सरकार ने भी पहले दो साल पिछड़ो को केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व नहीं दिया. पब्लिक सेक्टर का तेज़ गति से निजीकरण जहाँ आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है व लेटरल एंट्री से भारत सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किए गए अधिकारियों के चयन में पिछड़ों दलितों की अनदेखी की गई .
वंचितों के प्रति भेदभावपूर्ण नीति के लम्बी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बावजूद 2014, 2017 व 2019 में ग़ैर यादव पिछड़ो व ग़ैर जाटव दलितों ने भाजपा को एकमुस्त समर्थन दिया क्योंकि उन्हें बताया गया कि सपा सरकार में सिर्फ़ यादवों का भला हुआ है 72 में 56 एसडीएम पदों पर यादव नियुक्त हुए हालाँकि आजतक वह सूची उपलब्ध नहीं कराई गई और आश्वस्त किया गया था कि भाजपा के साथ आने पर उन्हें पूरा प्रतिनिधित्व मिलेगा. अब जब सात साल से अधिक समय तक केंद्र में और पाँच साल पूर्ण करने जा रही यूपी सरकार में पिछड़ों को क्या मिला पर नज़र डालते है तो पिछड़े ठगा हुआ पाते है. प्रदेश में एक भी नियुक्ति मे पहले से प्राप्त 27% आरक्षण तक नहीं दिया गया. बाँदा विश्वविध्यालय में 15 असिस्टेंट प्रोफ़ेसर में 11ठाकुर जाति के व शून्य पिछड़े को नियुक्ति मिली , गौरखपुर विश्वविद्यालय हो या गोविन्द बल्लभ पंत संस्थान प्रयागराज हर जगह पिछड़ों का हक़ मारा गया , 69 हज़ार शिक्षक नियुक्ति में 18598 पिछड़ों के स्थान पर 2637 पदो पर नियुक्ति मिली ,अभ्यर्थियों ने आंदोलन किया तो उन्हें बेरहमी से लाठियों से पीटा गया , एक साल से अधिक चले आंदोलन के बाद अब जब सरकार ने मान लिया है कि नियुक्ति में आरक्षण नियमो का पालन नहीं हुआ तो अब 6000 अतिरिक्त पदों पर पिछड़ों को नियुक्ति दिए जाने का आश्वासन सरकार ने दिया है अर्थात अब भी 27% नहीं 22% ही होगा. साथ ही गड़बड़ी करने वालों पर कोई कार्यवाही न होना यह बताता है कि यह सब शीर्ष नेतृत्व के इशारे पर किया गया . पिछड़ों के कौशल विकास और आजीविका उद्यम में सहयोग के लिए बने उत्तर प्रदेश बहुद्देशीय वित्त एवं विकास निगम को सरकार ने पूरे पाँच साल शून्य बजट आवंटित किया. विनय कटियार को समयपूर्व कूड़ेदान में डाल देने , संतोष गंगवर को मंत्रिमंडल से बाहर कर देने राजवीर सिंह को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह न देने और पिछले विधान सभा चुनाव में मुख्यमंत्री के अघोषित किंतु सर्वाधिक प्रत्याशित उम्मीदवार माने जाते रहे केशव प्रसाद मौर्य का पूरे कार्यकाल अपमान, सहयोगी ओपी राजभर को मंत्रिमंडल छोड़ने पर मजबूर कर देने की घटनाओं के अलावा शासन प्रशासन के सभी पदों पर सचिवालय , ज़िला या थाने पर 40% से अधिक अकेले ठाकुरों का होना और पिछड़ों में उन जातियों तक को प्रतिनिधित्व न देना जो लम्बे समय से भाजपा को सपोर्ट करतीं रही है आदि करणों से पिछड़ों का भाजपा से मोहभंग हुआ है.
.लम्बे समय से लम्बित जातीय जनगणना के अपने ही आश्वासन से मुकर जाने से पिछड़ों में यह स्पष्ट संदेश गया है कि भाजपा भविष्य में भी पिछड़ों के साथ न्याय की पक्षधर नहीं है. प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री योगी को ऐतिहासिक उपलब्धियों वाला उपयोगी मुख्यमंत्री बता रहे है तो गृहमंत्री अमित शाह 2024 में मोदी के पुनः प्रधान मंत्री बनने के लिए योगी को अपरिहर्या बता रहे है अतः भाजपा के चुनाव जीतने पर योगी ही मुख्यमंत्री होगे . स्पष्ट है किसी मौर्य पाल पटेल केवट राजभर की कोई सम्भावना नहीं है तो केशव प्रसाद के ख़ास समर्थकों तक में निराशा है
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यद्यपि अभी स्पष्ट रूप से कुछ कहना संभव नहीं किंतु पिछड़ों से बात करने पर जवाब यही मिलता है-
अब न शिकवा ना गिला,ना कोई मलाल रहा
सितम तेरे भी बेमिसाल रहे, सब्र मेरा भी कमाल रहा
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