संजय कुमार सिंह
अखिलेश यादव और अंजना ओम कश्यप के इंटरव्यू में ईमानदारी भी एक मुद्दा है और उसपर तरह-तरह से चर्चा हो रही रही है. मेरा मानना है कि यह आरोप राजनीतिक है कि भाजपा ने गलत आदमी पर छापा डलवा दिया. यह आरोप तब सही माना जाएगा जब छापे के बाद कारोबारी से कोई रियायत बरती जाए. यह खबर है, की जानी चाहिए पर हुई नहीं है. मुद्दा तो यह है कि छापा सही जगह पड़ा और भारी धनराशि जब्त हुई जो गुप्त सूचना के आधार पर भी हुई होगी. इसे गलत कैसे कहा जा सकता है?
यह आरोप लगाया जा सकता है कि सरकार चुनकर छापे डलवाती है पर जब छापा सही था, छापा मारने वाले अधिकारी ने कहा है कि जब्त राशि को टर्नओवर मानने की खबर गलत है तो आजतक एंकर कैसे कह सकती हैं कि छापा गलत है और हमने उसे भी दिखाया. वीडियो में साफ दिख रहा है कि अखिलेश यादव खुश हो गए. यह ईमानदार या निष्पक्ष पत्रकारिता कैसे हो सकती है. आप जानते हैं कि छापे के बाद प्रधानमंत्री ने एक रैली में कहा था, भ्रष्टाचार का इत्र सामने आया.
दरअसल एक इत्र कारोबारी ने समाजवादी इत्र बनाया था और प्रधानमंत्री की सूचना गलत थी या वे इत्र कारोबारी के यहां कालाधन मिलने पर तंज कसने में चूक गए. या उसकी अलग व्याख्या की जा सकी. पर वह मामला अलग है. और यह भी कि प्रधानमंत्री को सरकारी कार्रवाई पर ऐसे व्यंग करना चाहिए कि नहीं. जहां तक सरकारी विभाग की बात है, दूसरे इत्र व्यापारी पर भी छापा पड़ा (और कथित भूल सुधार हो चुका है). वहां भी राशि बरामद हुई. और दिलचस्प है कि कारोबारी सतर्क नहीं था. खबर यह सब है. लेकिन इसे प्रधानमंत्री ने राजनीतिक बनाया तो मीडिया कहां छोड़ रहा है. क्या छापा गलत पड़ सकता है? क्या इस बारे में अधिकारियों से बात की गई? फिर छापे को गलत कैसे कहा जा सकता है जब भारी बरामदगी हुई है. और ऐसी रिपोर्टिंग में सरकारी अफसर काम कैसे करेंगे?
वीडियो में अंजना ओम कश्यप कह रही हैं, गलत इंफॉर्मेशन दे दिया जाके अपने नेता पर ही मार दिया. मुझे लगता है कि अंजना का बयान तथ्यात्मक रूप से गलत है और राजनीतिक तो है ही, पत्रकारिता कतई नहीं है. मुझे लगता है कि अखिलेश यादव ने अंजना ओम कश्यप जैसी वरिष्ठ एंकर का अपने हित में उपयोग कर लिया.
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