राघवेंद्र दुबे
आज सुचित्रा सेन का जन्मदिन है . छह अप्रैल 1931 को सुचित्रा सेन का जन्म हुआ था . मैं सुचित्रा जी से मिला था कोलकाता साल 2000 में . तब ' तारा बांग्ला ' चैनल पर लांच हिंदी बुलेटिन ' खास खबर आज की ' में न्यूज एडिटर था . बहुत मुश्किल से समय मिला, सुचित्रा जी किसी से मिलती नहीं थीं.
उन्होंने बेलीगंज सरकुलर रोड के चार अपार्टमेंट्स में से एक में खुद को तकरीबन कैद कर लिया था और कभी -कभी की खुली खिड़की से बहुत आहिस्ता उन तक सरक आयी सिर्फ चांदनी, धूप और हवा को ही उनके बारे में मालूम था . 2005 में उन्होंने दादा साहेब फालके अवॉर्ड का प्रस्ताव यह कहकर ठुकरा दिया था कि वे अवॉर्ड लेने घर से बाहर नहीं निकलेंगी . अवार्ड के लिए उन्हें दिल्ली जाना पड़ता.
मेरी नजर में भारतीय या एशियाई सिनेमा की अपने समय की वह सुंदरतम अभिनेत्री थीं, प्रतिभाशाली, बुद्धिमती भी . अभिनय के शाहंशाह दिलीप कुमार साहब ने भी सुचित्रा सेन की प्रशंसा करते कभी कहा था -- उन्होंने पहली बार किसी एक महिला में अद्भुत सौन्दर्य और बुद्धि दोनों को एक साथ महसूस किया है. उनमें सम्मोहन था और सामने वाले पर गीत, लय, छंद,मोहब्बत और अपनापे के जादू में खुलती थीं.
लोगों से न मिलने की वजह उन्होंने मुझे बताई भी -- ' जिस किसी ने रजत पट पर मुझे ' देवदास ' , ' मुंबई का बाबू ', ' ममता ' और ' आंधी ' में देखा है, इस उम्र और इस हाल मुझे देखना उसके लिए सदमा होगा . मैं अपने प्रशंसकों को आहत नहीं होने देना चाहती.
महीनों के लगातार और कड़े प्रयास के बाद मुझे उनसे समय तो मिल गया लेकिन इस शर्त पर कि मेरे साथ कैमरा या टेप नहीं होगा . वह कोई इंटरव्यू नहीं देंगी. मैं उनसे मिला मुझे वह उतनी ही सुंदर दिखीं जैसी पारो थी . समय की भी एक सीमा और औकात तो होती है, एक बेपनाह खूबसूरत मूरत से आखिर वह कितनी क्रूरता बरत सकता था. उसे ठिठकना पड़ा.
मैंने सुचित्रा जी के पांव छू लिए. फिर तो वह नदी बन गयीं. मेरा सिर सहलाया, खूब बात हुई. वह अपनी ही तरह जीने वाली खुद मुख़्तार और कुछ हद तक का औचित्यपूर्ण गर्व जीने वाली महिला थीं. उन्होंने ग्रेट शो मैन राजकपूर की फिल्म (लीड रोल वाली ) इसलिए मना कर दी कि उन्हें राजकपूर का अंदाज नहीं पसंद आया.
कैमरे के पीछे किसी की आंख हो, किसी कोण से उनकी खूबसूरती देवताओं द्वारा पीये जाते हुए चंद्रमा की कलाओं या उसकी वृद्धि (बढ़ते हुए चांद) सी थी. मैं जब उनसे मिला था रही होंगी करीब 71की. मैं 46 का. मैं अपने सामने पूनम का चांद देख रहा था जिसकी कलाओं में क्षय शुरू भी नहीं हुआ था. फिर भी उन्होंने सार्वजनिक जगहों पर जाना और किसी से मिलना बंद कर दिया था.
मुलाक़ात के शुरुआती पांच मिनट तो मैं चुप, उन्हें अपनी आंख में भरता रहा --वह ताड़ गयीं और मुस्काराईं थीं. उन्होंने बांग्ला में कुछ कहा था, जिसका मतलब चोर होता है.
सुचित्रा जी को विनम्र श्रद्धांजलि.
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