डा रवि यादव
देश साम्प्रदायिकता कोई नई बात नहीं है, लम्बे समय से राजनीतिज्ञ चुनाव में सफलता के लिए साम्प्रदायिकता को खाद पानी देकर बढ़ाते रहे है और चुनाव में उसका लाभ लेकर जीतते भी रहे है किंतु यह सब छुपे रूप में अप्रत्यक्ष तरीक़ों से किया जाता था . राममंदिर आंदोलन के बाद खुलकर बहुसंख्यक पक्ष का नाम लेकर उसे पीड़ित बताया जाने लगा और बग़ैर नाम लिए अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का आरोप लगाया जाने लगा गोया इस देश के सभी आर्थिक संसाधनों , शिक्षण संस्थाओं , संवैधानिक संस्थाओ , मीडिया और न्यायपालिका पर अल्पसंख्यक क़ाबिज़ हो गए हो जबकि हक़ीक़त एकदम विपरीत रही है जिसे 2004 में जस्टिस रंगनाथ मिश्र के नेतृत्व में गठित धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक राष्ट्रीय आयोग ने अपनी रिपोर्ट में और 2005 में गठित जस्टिस राजेंद्र सच्चर की 403 पेज की रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है . 2006 में सच्चर समिति ने पाया कि देश में मुस्लिम आईएसएस 3 फ़ीसदी , आईपीएस 4 फ़ीसदी , पुलिस बल में 7.6 फ़ीसदी और रेलवे में 4.5 फ़ीसदी पदों पर थे जिनमे 98.7 फ़ीसदी निम्न पदों पर थे . मगर हिंदुवादी ताक़तों ने प्रचार तंत्र के सहारे आम दलित पिछड़ो में यह सफलता प्राप्त कर ली कि जैसे इनका सारा हक़ मुस्लिम ही खा रहे हो . तत्कालीन सरकारें अल्पसंख्यक हितैषी दिखाने के लिए जो झूठा प्रचार “देश के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यको का है “ करतीं थी उसे हिंदूवादियों द्वारा मुस्लिमों के विरोध में भुनाया गया. लेकिन अभी साम्प्रदायिकता उस नवविवाहिता की तरह भले न थी जो लाज के कारण परम्परागत तरीक़े से घर के बड़ों के सामने नहीं आती थी , घूँघट में रहतीं थी और बात भी नहीं करती थी मगर अभी भी बात भले करने लगी हो मगर लाज का धर्मनिरपेक्षता रूपी घूँघट अभी था.
2014 का आम चुनाव भी कमोवेश पिछले चुनावों की ही तरह लड़ा गया जिसमें साम्प्रदायिकता बेकग्राउंड में ज़रूर थी किंतु मुख्य मुद्दा विकास, मिनिमम गवर्नमेन्ट मैक्सिमम गवर्ननेंस , आर्थिक तरक़्क़ी , रोज़गार , डेमोग्रैफ़िक डिवीडेंट के नाम पर लड़ा और जीता गया किंतु के बाद 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में संप्रदायिकता ने लाज का धर्मनिरपेक्षता का घूँघट उतारकर फेंक दिया और चुनाव शमशान बनाम क़ब्रिस्तान , दीवाली बनाम ईद , मंदिर बनाम मस्जिद बना दिया गया. उत्तर प्रदेश चुनाव में अप्रत्याशित अभूतपूर्व सफलता ने इस सफल फ़ार्मुले को मज़बूती दी और तब से व्यक्तियों और संगठनों द्वारा संचालित साम्प्रदायिकता का अघोषित राष्ट्रीकरण हो गया -दंगाइयों की कपड़ों से पहचान होने लगी , खाने से पहचान होने लगी और “ देश के ग़द्दारों को , गोली मारने के नारे “ बटन दबाकर करंट लगाने का सिलसिला चलने लगा , मुख्यमंत्री विधान सभा में गर्व पूर्वक कहने लगे कि मैं हिंदू हूँ ईद नहीं मनाता. विश्व में कोरोना महामारी फैलने के अलग कारण हो सकते है मगर भारत में मीडिया द्वारा तबलीग को करोना का वाहक बताया गया , फल सब्ज़ी भाजी वेंडर्ज़ के वीडियो पूरे देश के सब्ज़ियों , फलों पर थूक लगाते प्रसारित होने लगे वेंडर्ज़ से आधार कार्ड माँगे जाने का सिलसिला अभी पिछले सप्ताह सीतापुर में एक गाँव में फ़क़ीरों तक जा पहुँचा है . संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हर मस्जिद में शिवलिंग खोजने की आवश्यकता नहीं है उनके कहने का जो भी आशय हो फ़िलहाल यह सिलसिला रुकने वाला नहीं हैं .
उत्तर प्रदेश विधान सभा के हालिया आम चुनाव में मुस्लिम जिस तरह एकजुट हुए और वह भी साम्प्रदायिकता के बजाय सकारात्मक मुद्दों के नाम पर वह भाजपा की चिंता बड़ाने वाला है . भाजपा की चुनाव परिणाम समीक्षा का सारांश है कि प्रदेश में दलित पिछड़े इस चुनाव में बड़ी संख्या में भाजपा से दूर हुए है और समाजवादी पार्टी के साथ जुड़े है. प्रदेश में चुनाव आयोग के पक्षपातपूर्ण व्यवहार और समाजवादी पार्टी की रणनीतिक असफलता से भाजपा सरकार बनाने में ज़रूर सफल रही है मगर यह उसे भी पता है कि यह जनादेश नहीं है. काम के आधार पर भाजपा दलितों पिछड़ों का साथ ले नहीं सकती अतः भावनात्मकता ,साम्प्रदायिकता और धन व मीडिया के सहयोग से परसेप्सन बनाने के अलावा उसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं जो उसे भविष्य में सफलता दिला सके.
बाबर , अकबर , आज़म खान , औरंगज़ेब को बुराभला कहने से मुस्लिम भड़कावे में आ नहीं रहे तो खेल को आगे बड़ाने के लिए कुछ और करना ही है. अतः हनुमान जयंती पर मस्जिदों के सामने जाकर प्रदर्शन , मस्जिदों में शिव लिंग की खोज ताजमहल और क़ुतुबमीनार के नीचे मंदिर रहे होने का दावा सब वे तरीक़े है जो माहौल को अपने अनुकूल बनाने में मददगार हो सकते है .
पिछले सप्ताह ईपीएफ़ पर दी जाने वाली ब्याज दर कम कर दी गई और सीआरआर बढ़ा दी गई जिससे ईएमआई का बढ़ना सुनिश्चित है मगर इससे प्रभावित होने वाले शिक्षित नौकरीपेशा लोग नूपुर शर्मा का विडियो खोज रहे थे .. ईपीएफ़ ब्याज दर में कटौती या ईएमआई में वृद्धि से लोगों का ध्यान भटकाने और बुलडोज़र को बाहर लाकर लोकतंत्र को ढहाने के नंगानाच के लिए नूपुर का साथ कोई संयोग नहीं किंतु मुस्लिम समाज नूपुर की ध्वनि पर नृत्य करने लगे यह न उनके हित में है न देश के.
पिछले आठ साल से मुस्लिमो का व्यवहार असामान्य रूप से संयत रहा है मगर भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा की एक लाइव प्रसारण में पेगंबर मुहम्मद पर आपत्तिजनक टिप्पणी से शायद मुस्लिम धर्मावलम्बियों का धैर्य टूट गया उन्होंने उस तरह की प्रतिक्रिया दे दी जिसकी तलाश भाजपा और उसकी सरकारों को थी. भाजपा यही चाहती है कि वह बहुसंख्यक समाज में मुस्लिमों की अतिवादी छवि बनाकर उन्हें मँगाई ,रोज़गार , शिक्षा ,स्वास्थ्य जैसे मुद्दों से भटका कर सिर्फ़ मुस्लिम विरोध के नाम पर अपने साथ जोड़े रख सके. जाने -अनजाने इस मुद्दे पर मुस्लिम समाज वह प्रतिक्रिया दे रहा है.
यह सही है कि नवी के प्रति मुस्लिम भावुक संवेदनाएँ रखते है किंतु नवी की शिक्षाओं मे “धैर्य “ एक महत्वपूर्ण शिक्षा है और वह धैर्य निष्क्रिय धैर्य भी नहीं है , धैर्य के साथ उत्पन्न विपरीत हालत से बाहर निकलने का प्रयत्न करना पैग़म्बर मुहम्मद की शिक्षाओं का सार है . अतः पैग़म्बर मुहम्मद के मानने वालों को धैर्य के साथ संगठित होकर और पिछड़ो दलितों के बीच जाकर उन्हें अपने साथ संगठित कर इन हालतों से बाहर आने का प्रयत्न करना चाहिए .
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