फ़ज़ल इमाम मल्लिक
सुप्रीम कोर्ट का कोड़ा चला और अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन (एआईएफएफ) के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद प्रफुल पटेल को अपना पद छोड़ना पड़ा. एआईएफएफ में दोबारा उनकी वापसी होगी, इसकी उम्मीद अब न के बराबर है. दरअसल पटेल करीब चौदह साल तक इस पद पर रहे. चौदह साल बाद भी वे अध्यक्ष पद से हटने के मूड में नहीं थे लेकिन सर्वोच्च अदालत ने उन्हें और उनकी टीम से कहा अब बहुत हो गया, अपना पद छोड़ें.
दरअसल पटेल का कार्यकाल 2020 में ही समाप्त हो गया था लेकिन दो साल बाद भी उन्होंने फेडरेशन अध्यक्ष बने रहे और राज्य इकाइयों को परेशान करते रहे. तंग आकर कई राज्य इकाइयों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और फिर भारतीय फुटबाल को एक ऐसे अध्यक्ष से निजात मिल गई है जिसका कार्यकाल विवादों और नाकामी भरा रहा.
प्रियरंजन दासमुंशी के निधन बाद प्रफुल पटेल एआईएफएफ के अध्यक्ष बने. लेकिन उनकी बिदाई ठीक नहीं रही. उन्होंने इज्जत के साथ पद नहीं छोड़ा. एक तरह से उन्हें भारतीय फुटबाल का खलनायक माना गया. दरअसल उन्होंने देश में फुटबाल को अपनी मर्जी से चलाया और एकतरह से खिलौना बना कर रख दिया. फेडरेशन की राज्य इकाइयों और पूर्व खिलाडियों का तो ऐसा ही कहना है. यूं तो फीफा रैंकिंग में फिसड्डी भारतीय फुटबाल को पुरुष अंडर-17 और महिला अंडर-19 विश्व कप की मेजबानी मिली और पटेल इसका श्रेय भी ले रहे हैं लेकिन देखा जाए तो उनके चौदह साल के कार्यकाल में भारतीय फुटबाल का प्रदर्शन लगातार गिरता रहा और अपने गैदरजिम्मादाराना व्यवहार से पटेल ने
नाकामी की नई इबारत लिखी.
हालांकि पटेल के समर्थकों का मानना है कि आईएसएल और आई लीग जैसे आयोजन उनकी उपलब्धि है. लेकिन सच तो यह है कि आईएसएल से भारतीय फुटबॉल का कुछ भी भला नहीं हुआ है. फुटबाल के जानकारों का कहना है कि आईएसएल बूढ़े विदेशी खिलड़ियों के लिए एक प्लेटफार्म बन गया है. इससे भारतीय फुटबाल का कुछ भी भला नहीं हुआ है. राष्ट्रीय फुटबाल चैंपियनशिप यानी संतोष ट्राफी की उपेक्षा, कई घरेलू टूर्नामेंटों का बंद होना और आयुवर्ग के आयोजनों की अनदेखी की वजह से भारतीय फुटबाल का स्तर लगातार गिरा है. कभी एक-एक खिलाड़ियों का नाम देश के फुटबॉल प्रेमियों की जबान पर चढ़ा रहता था लेकिन आज शायद बहुत कम ही लोग बता पाएं कि किस टीम में कौन खिलाड़ी है. यानी फुटबॉल कास्तर गिरता चला गया. फीफा रैंकिंग में 106वें स्थान की भारतीय फुटबाल के खाते में बस एक सैफ ट्राफी है. नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, म्यांमा जैसे पिछड़े देशों की मौजूदगी में भारत अपनी बादशाहत कायम करता रहा है वैसे कई बार इन देशों ने भी भारत को फतह कर चौंकाया है.
फुटबाल फेडरेशन के पूर्व प्रशासकों और खिलाड़ियों का मानना है कि पटेल ने अपने स्वार्थ की वजह से न सिर्फ यह कि फुटबाल को रसातल में धकेला बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम भी खराब किया. महिला अंडर-19 फीफा विश्व कप की मेजबानी पाकर खूब वाहवाही तो लूटी लेकिन इस आयोजन से मेजबान लड़कियों को मात्र एक मैच खेल कर बाहर होना पड़ा था. कोरोना काल की वजह से मेजबान की बदइंतजामी का ठीकरा अपनी ही टीम के सर पर फूटा, जब दर्जन भर खिलाड़ी कोरोना पॉजिटिव पाई गईं और भारतीय लड़कियों को फेडरेशन और टीम प्रबंधन के नाकारापन की वजह से बिना खेले ही विश्व कप से बाहर हो जाना पड़ा. देश की फुटबाल को शर्मसार करने वाली यह अपने किस्म की अनोखी और शायद पहली घटना रही.
एआईएफएफ पर देश के क्लब फुटबाल को बर्बाद करने के गंभीर आरोप भी लगते रहे हैं. कोलकाता, मुंबई, गोवा, केरल, दिल्ली, पंजाब और दूसरे प्रदेशों के प्रमुख फुटबाल क्लब आर्थिक तंगी और फेडरेशन के रवैये की वजह से बदहाल हैं. दिल्ली के फुटबाल हाउस में बैठे अधिकारीयों पर भी गंभीर आरोप लगे. लेकिन इन पर किसी ने तवज्जो नहीं दी. मिनर्वा पंजाब और फुटबाल दिल्ली के मालिक रणजीत बजाज ने फेडरेशन सचिव कुशल दास पर स्टाफ के यौन शोषण के आरोप तक लगाए थे.
भारतीय फुटबाल सचमुच बुरे दौर से गुजर रहा है वर्ना जब दुनिया भर के फुटबाल के कद्रदां विश्व कप खेलने और देखने की तैयारी में जुटे हैं तब भारत में फुटबाल के कर्ताधर्ता विवादों में फंस कर देश का नाम मिट्टी में मिला रहे हैं. भारतीय फुटबॉल का बेड़ा गर्क करने में प्रफुल्ल पटेल जैसे पदाधिकारियों की बड़ी भूमिका रही है क्योंकि पटेल ने एएफसी और फीफा को गुमराह किया और उन्हें भारतीय फुटबाल के बारे में गलत जानकारी दी. एआईएफएफ पर अनुशासन की तलवार भी लटकी है और अगर कोई कार्रवाई होती है तो इसके लिए प्रफुल्ल पटेल जिम्मेदार होंगे. फिलहाल राहत की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के डंडे ने पटेल को फुटबॉल से बाहर का रास्ता दिखा दिया है.
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