हिसाम सिद्दीकी
नई दिल्ली! तमाम तरह की सरकारी ज्यादतियों, कदम-कदम पर नाइंसाफियों और जुल्म के बावजूद भारत के मुसलमान मुल्क की मईशत (अर्थव्यवस्था) मजबूत करने के लिए विदेश में रहकर दिन-रात मेहनत करते हैं और तकरीबन सात लाख करोड़ कमाकर देश में लाते हैं. मशहूर सहाफी और यू-ट्यूब ब्लागर दीपक शर्मा ने इस सिलसिले में एक प्रोग्राम बनाकर बताया है कि देश का सालाना रेवेन्यू तकरीबन इकत्तीस लाख करोड़ का है, जबकि खलीजी (खाड़ी) मुल्कोें और मिडिल ईस्ट के मुल्कों में तकरीबन अस्सी लाख मुसलमान नौकरी करके तकरीबन सात लाख करोड़ रूपए हर साल देश को भेजते हैं जो देश के कुल रेवेन्यू के एक-चैथाई के बराबर है. इस वक्त गल्फ और मिडिल ईस्ट में तकरीबन एक करोड़ भारतीय नौकरी करते हैं. उनमें अस्सी लाख से ज्यादा मुसलमान हैं. मरकजी फाइनेंस मिनिस्ट्री के मुताबिक 2021 में जो गैर मुल्की करेंसी भारत में आई है वह सत्तासी बिलियन रूपयों के बराबर है. सन् 2000 मंे यह रकम तकरीबन बारह बिलियन थी. वजीर-ए-आजम मोदी जब अमरीका, यूरोप और आस्टेªलिया जैसे मुल्कों में जाते हैं तो बड़ी तादाद में हिन्दुस्तान निजाद (भारतीय मूल के) लोगों को बाकायदा इवेंट की तरह हालों में इकट्ठा करके मोदी-मोदी के नारे तो लगवाए जाते हैं लेकिन मोदी-मोदी चिल्लाने वाले लोग इन मुल्कों में कमाई करके पैसा भारत नहीं भेजते इसी लिए दुनिया भर से आने वाले पैसों में पैंसठ फीसद रकम खलीजी मुल्कों और मिडिल ईस्ट मुल्कों से आती है और सिर्फ पैंतीस फीसद पैसा बाकी पूरी दुनिया से आता है. ऐसे में सरकार को बताना चाहिए कि असल राष्ट्रभक्त कौन लोग हैं?
अमरीका, कनाडा और आस्टेªलिया जैसे मालदार मुल्कों में रहकर लाखों भारतीय जो पैसा कमाते हैं उसका मामूली हिस्सा ही वह भारत भेजते हैं. इसके बावजूद मोदी सरकार एनआरआई समिट के नाम पर उन लोगों को बुलाकर दामादों जैसी खातिर करती हैं. लेकिन खलीजी मुल्कों और मिडिल ईस्ट में रहकर जो लोग खुसूसन मुसलमान लाखों करोड़ रूपए की गैरमुल्की करेंसी हर साल भारत भेजते हैं वह जब अपने घर आते हैं तो हवाई अड्डों से घरों तक दर्जनों जगह उनकी तौहीन की जाती है. एनआरआई समिट में भी गिनती के मुसलमान बुलाए जाते हैं ज्यादा वही लोग बुलाए जाते हैं जो मोदी के विदेशी दौरों के दौरान हाल में इकट्ठा होकर मोदी-मोदी के नारे लगाते हैं. अजीब बात है कि यह लोग कभी भारत-भारत के नारे नहीं लगाते. दीपक शर्मा की खबर के मुताबिक भारत में जो पैसठ फीसद गैर मुल्की पैसा मुसलमान कामगारों के जरिए मिडिल ईस्ट और गल्फ मुमालिक से आता है उसमें सबसे ज्यादा सत्ताइस फीसद पैसा सिर्फ यूनाइटेड अरब अमीरात (यूएई) यानी दुबई, अबूधाबी, शारजाह वगैरह से आता है. उसके बाद सऊदी अरब से ग्यारह अशारिया छः (11.6) फीसद, कतर से साढे छः (6.5) फीसद, कुवैत से साढे पांच (5.5) फीसद और ओमान से तीन अशारिया तीन (3.3) फीसद है. 2018 में इन मुल्कों से आने वाली रकम तकरीबन चैवन (53.9) फीसद थी जो 2021 में पैंसठ (65) फीसद तक पहुंच गई.
वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी जब खलीजी और मिडिल ईस्ट के मुल्कों के दौरे पर जाते हैं तो वहां के मुसलमानों खुसूसन हुक्मरान से बहुत प्यार-मोहब्बत से गले मिलते हैं और ऐसा तास्सुर देते हैं कि जैसे इन मुसलमानों से ज्यादा उनका करीबी कोई नहीं है. लेकिन उनका वैसा प्यार भारतीय मुसलमानों को नहीं मिलता. अब तो उन्होने भारत सरकार और लोक सभा व राज्य सभा में अपनी पार्टी बीजेपी को ‘मुस्लिम मुक्त’ बना दिया है. मुख्तार अब्बास नकवी उनकी सरकार में अकेले मुस्लिम मिनिस्टर होते थे, चंद दिन पहले उनका राज्य सभा का टर्म खत्म हुआ तो बीजेपी ने उन्हें दोबारा राज्य सभा नहीं भेजा, उनके साथ एम जे अकबर और सैयद जफर इस्लाम का राज्य सभा टर्म पूरा हुआ तो उन्हें भी दोबारा राज्य सभा नहीं भेजा गया. लोक सभा में बीजेपी का कोई भी मेम्बर नहीं है. इस तरह भारत सरकार और पार्लियामेंट दोनों ‘मुस्लिम मुक्त’ हो गए या आरएसएस की जबान में कहा जाए तो ‘शुद्ध’ हो गए.
खाड़ी और मिडिल ईस्ट मुल्कों के साथ वजीर-ए-आजम मोदी का प्यार से गले लगने की वजूहात भी हैं. भारत को जितने कच्चे तेल की जरूरत है उसका साठ फीसद सऊदी अरब, इराक और यूनाइटेड अरब अमीरात से आता है. तकरीबन सबसे ज्यादा गैस कतर से इमपोर्ट की जाती है. इन मुल्कों से भारत का व्यापार भी तकरीबन सबसे ज्यादा है. सिर्फ यूनाइटेड अरब अमीरात से ही तकरीबन तिहत्तर (73) बिलियन डालर का व्यापार भारत करता है. इन मुल्कों से जो विदेशी करेंसी आती है वह भी सबसे ज्यादा सत्तासी (87) बिलियन है जबकि चीन और मैक्सिको 53 बिलियन, फिलीपींस 36 बिलियन और मिस्र से तैतींस अशारिया तीन (33.3) बिलियन है. अब असल सवाल यह है कि जब देश के मुसलमान मुल्क की मईशत में इतने बड़े पैमाने पर तआवुन कर रहे हैं तो उनके साथ मुल्क में सौतेला बर्ताव क्यों किया जाता है.
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