चंचल
वहाँ न ' जी ' था , न कोई आदर सूचक सम्बोधन , मसलन ' माननीय ' या ' सर ' कुछ नही . सीधा सा
'आदेश ' था -
- राहुल गांधी ! रुको , हमने चाय बनाया है , पी लो !
बिल्कुल महीन ढलती उम्र की जनानी आवाज़ थी , आदेश की ध्वनि करुणा और वात्सल्य से भीगी थी ।यह पुकार न ही अकूत पूँजी पर खड़ी हवेली से आयी थी , न किसी सत्ता की हनक से निकली थी ।फुटपाथ के किनारे झोपड़ी नुमा एक ' घर ' की चौखट पकड़े झुके कमर की एक महिला की आँखे पैदल चले जा रहे , जवाहर लाल नेहरु के नाती राहुल गांधी को देख रही थीं .
बग़ैर देर किए राहुल गांधी सड़क से निकल के फुटपाथ पर खड़े घर के छोटी सी ड्योढ़ी को झुक कर पार किए और अंदर कुरसी पर बैठ गए . बड़े से थाल में कुछ पकौड़े आए , चाय मिली . अंग्रेज पत्रकार “क्लिक“ करता है -
भारत की चीखती मीडिया जूते के तल्ले में उलझी है . पथ के यात्री , तमिल से चल कर मलयालम तक आए हैं , सौ किलोमीटर पाँच दिन . हाथ में तिरंगा झंडा लिए खड़े पंजाब ने देखा , पकौड़े कम हैं , खाने वाले और हैं , थाल लिए खड़ी लड़की के सर पर सरदार ने हाथ फेरा
- ना बेबे ! बस !
( बेबे पंजाब में माँ को बोलते हैं . ) बेबे , बेबे का मतलब नही जानती , लेकिन इतना समझ गयी क़ि हमे आदर मिला है . मलयालम भूल गया की वह पंजाब से बतिया रहा है , लड़की ने अपनी रौ में पूछा -
- नी बल्लरी कट्टिक्यूम ? पंजाब ने बल्लारी की बोतल उठा लिया . बुदबुदाया - तमिल का तन्नीर मलयालम में बल्लारी है . सरदार की आँख चमकी तन्नीर , बल्लरी सब पंजाब जायगा . जब तक गड्ड मड्ड नही होगा भारत मुह बायें खड़ा ही रहेगा .
सभ्यता का वाहक जल ही तो रहा . लेकिन उनका विनाश भी तो जल प्रवाह में हुआ है . इसे संरक्षित रखो .
चलो पथिक आगे बढ़ो .
हस्तिनापुर में बैठे , मद में चूर , धृतराष्ट , मुहपातर , दिव्यांग मीडिया से पूछ रहा है - भारत के फलक पर खड़ा राहुल गांधी और उनका सारथी दिग्गीराजा , जय राम रमेश अभी हस्तिनापुर से कितनी दूर हैं ?
- हे प्रज्ञा चक्षु द्विकानो ! आपके सारे दिव्यांग सिपहसालार खुर्द बीन में आँख गड़ाए , पांव के
' उपानहु ' की सिलायी जाँच रहे हैं .
बाहर से शोर हुआ -
याचना नही , अब रण होगा !
जीवन या मरण होगा ॥
- यह किसकी आवाज़ है ,मीडिया में ?
- जानता है , महराज
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