पटना.आशा कार्यकर्ता सालों से स्थायी कर्मचारी, नियमित वेतन और सामाजिक सुरक्षा के रूप में मान्यता दिए जाने के लिए संघर्ष कर रही हैं.एक बार फिर राजधानी पटना में आशा कार्यकर्ताओं सड़क पर उतर कर हंगामा करते हुए सरकार को चेता दी अगर मांग पूरी नहीं हुई तो वोट से चोट देने से नहीं हिचकेंगे.
पटना में आशा कार्यकर्ताओं ने विभिन्न मांगों को लेकर जमकर प्रदर्शन किया. 26 सूत्री मांगों को लेकर सैकड़ों की संख्या में आशा कार्यकर्ताओं ने पटना के डाकबंगला चौराहे को जाम कर दिया. जिलाअधिकारी के कार्यालय हिंदी भवन के बाहर सड़क पर बैठकर जमकर नारेबाजी की.
मौके पर मौजूद आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संघ की अध्यक्ष कुमारी रंजना यादव ने कहा कि सरकार के दिए हुए सभी दायित्वों को आशा बहने और आंगनबाड़ी सेविकाएं करती हैंं. बावजूद आज तक उन्हें स्थायी नहीं किया गया और ना ही उनके वेतन में वृद्धि की गई.
आगे आशा कार्यकर्ता संघ की अध्यक्ष रंजना यादव ने कहा कि बिहार सरकार आशाओं से बेगारी में काम लेना चाहती है. बिहार में जब महागठबंधन की सरकार आई तो बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने आशा कार्यकर्ताओं को आश्वासन दिया था कि उनकी सभी मांगों को पूरा किया जाएगा. बावजूद इसके आज बिहार के उपमुख्यमंत्री भी इनकी मांगों को लेकर अपना पल्ला झाड़ रहे है.
बता दें कि राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन(National Rural Health Mission) (एनआरएचएम) एक ग्रामीण भारत भर के ग्रामीण स्वास्थ्य सुधार के लिए स्वास्थ्य कार्यक्रम है. यह योजना 12 अप्रैल 2005 को शुरू की गयी.आरंभ में यह मिशन केवल सात साल (2005-2012) के लिए रखा गया है, यह कार्यक्रम स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा चलाया जा रहा है.
देशभर में करीब 9 लाख से ज्यादा आशा वर्कर्स काम कर रही हैं.ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुरक्षा में केंद्र सरकार की यह एक प्रमुख योजना है. इसका प्रमुख उद्देश्य पूर्णतया कार्य कर रही, सामुदायिक स्वामित्व की विकेंद्रित स्वास्थ्य प्रदान करने वाली प्रणाली विकसित करना है।.यह ग्रामीण क्षेत्रों में सुगमता से वहनीय और जवाबदेही वाली गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्य सेवायें मुहैया कराने से संबंधित है. यह योजना विभिन्न स्तरों पर चल रही लोक स्वास्थ्य सुपुर्दगी प्रणाली को मजबूत बनाने के साथ-साथ विद्यमान सभी कार्यक्रमों (जैसे- प्रजनन बाल स्वास्थ्य परियोजना, एकीकृत रोग निगरानी, मलेरिया, कालाज़ार, तपेदिक तथा कुष्ठ आदि) के लिए एक ही स्थान पर सभी सुविधाएं प्रदान करने से संबंधित है। इस योजना को पूरे देश में, विशेषकर 19 राज्यों में जिनमें स्वास्थ्य अवसंरचना अत्यंत दयनीय तथा स्वास्थ्य संकेतक निम्न हैं, लागू किया गया है. इस योजना के क्रियान्वयन में लगीं प्रशिक्षित आशा की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है.लगभग प्रति 1000 ग्रामीण जनसंख्या पर 1 आशा कार्यरत है।
नेशनल रूरल हेल्थ मिशन (NRHM) जो 18 साल पहले लॉन्च किया गया था जिसके तहत देशभर में करीब 9 लाख से ज्यादा आशा वर्कर्स काम कर रही हैं. इन सभी को कोरोना महामारी में दिए गए योगदान के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से सम्मानित किया गया.
लेकिन इसके उलट महामारी के दौरान देश के कई राज्यों की आशा वर्कर्स लगातार ये शिकायतें कर रही थीं कि उन्हें बिना सुरक्षा जमीन पर महामारी के दौरोन सर्वे करने भेजा जाता था और वेतन को लेकर तो आशा वर्कर की शिकायत बहुत पुरानी है.
कुपोषण, पोलियो और कई अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के खिलाफ भारत की लड़ाई में फ्रंटलाइन वर्कर की भूमिका में रहने वाली लगभग 9 लाख आशा वर्कर्स 2020 में कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ देश की लड़ाई में शामिल हुईं. उन्होंने राशन वितरित करने से लेकर कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग में मदद की और लोगों को वायरस के बारे में जागरूक किया.
लेकिन अपनी जान को जोखिम में डालकर काम करने वाली आशा कार्यकर्ताओं को मिलने वाला वेतन बहुत ही कम है, इसके पीछे की वजह है कि इनके काम को स्वैच्छिक (voluntary) और पार्ट टाइम काम माना जाता है.
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