आलोक कुमार
नई दिल्ली.बाहुबली और पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई के विरोध में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने बिहार सरकार और आनंद मोहन को नोटिस की है.इस मामले पर दोनों से जवाब मांगा है.कोर्ट ने इस मामले में 2 हफ्ते में जवाब देने का निर्देश दिया है.साथ ही बिहार सरकार को रिहाई से जुड़े रिकॉर्ड देने को भी कहा है.जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जे.के. माहेश्वरी की बेंच में इस मामले में सुनवाई की.
बता दें कि 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णा की मुजफ्फरपुर में आक्रोशित भीड़ ने पीट-पीट कर हत्या कर दी थी.उस समय छोटन शुक्ला नाम के शख्स की हत्या कर दी गई थी, जिससे उसके समर्थक जिला प्रशासन से खासा नाराज थे.इसी बीच जैसे ही जी कृष्णैया की गाड़ी गुजरी, तो लोगों को लगा कि वह मुफ्फरपुर जिले के डीएम हैं, इसलिए आक्रोशित भीड़ ने उनकी पीट-पीट कर हत्या ही कर दी. हालांकि, इस बीच जी कृष्णैया चीख-चीख यह कहते रहे कि मैं गोपालंगज का डीएम हूं, मुजफ्फरपुर का नहीं, लेकिन आक्रोशित भीड़ ने उनकी एक नहीं सुनी और उन्हें मौत के घाट उतार दिया.वहीं, अब सवाल है कि आखिर इस पूरे प्रकरण में आनंद मोहन की भूमिका कहां है ? दरअसल, आनंद मोहन पर ही आरोप है कि उन्होंने ही इस आक्रोशित भीड़ को उकसाया था, जिसके बाद जी कृष्णैया की हत्या कर दी गई थी.
इस मामले में तब पुलिस ने आनंद मोहन और उनकी पत्नी लवली मोहन सहित 6 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी.मामले की सुनवाई हुई तो अन्य लोगों को छोड़ दिया गया था, लेकिन आनंद 2007 में फांसी की सजा सुना दी गई. जिसके फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, तो फांसी की सजा को उम्र कैद में तब्दील कर दिया गया था.इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो कोर्ट ने भी इस फैसले को सही बताया. लेकिन, इस बीच नीतीश सरकार ने जिस तरह से कारा नियमों में बदलाव कर आनंद मोहन की रिहाई का मार्ग प्रशस्त किया है, उसे लेकर बिहार की राजनीति का पारा गरमा गया है.
बिहार सरकार की 10 अप्रैल को जारी की गई अधिसूचना के ज़रिये राज्य सरकार ने बिहार प्रिज़न मैन्युअल में एक ऐसा संशोधन किया जिसे किए बिना आनंद मोहन सिंह को रिहा नहीं किया जा सकता था.10 अप्रैल को जारी अधिसूचना में बिहार के गृह विभाग ने "काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या" को बिहार प्रिज़न मैन्युअल 2012 के सेक्शन 481(i)(a) से हटाने की घोषणा की.
साल 2012 में जारी किए गए बिहार प्रिज़न मैन्युअल के सेक्शन 481(i)(a) में बलात्कार और क़त्ल जैसे जघन्य अपराधों के साथ-साथ "काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या" को भी शामिल किया गया था.
इस धारा के तहत जिन अपराधों को लाया गया उनमें दोषी पाए गए और आजीवन कारावास की सज़ा भुगत रहे दोषियों की रिहाई का कोई प्रावधान नहीं था. ये प्रावधान उस सूरत में भी नहीं था जिसमें दोषी ने जेल में 20 साल की सज़ा भुगत ली हो.
स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो बिहार सरकार ने 10 अप्रैल की अधिसूचना से जेल मैन्युअल में एक वाक्य को हटाकर आनंद मोहन सिंह को जेल से रिहा करने का रास्ता साफ कर दिया.
इस संशोधन के बाद ही बिहार सरकार ने आनंद मोहन सिंह समेत 27 सज़ायाफ़्ता लोगों को रिहा करने की कार्यवाही शुरू की.इसके बाद 27 अप्रैल को आनंद मोहन को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया.आनंद मोहन की रिहाई पर विपक्षी पार्टियों ने विरोध भी जताया.
इस बीच आनंद मोहन के खिलाफ कोर्ट में जी कृष्णैय्या की पत्नी उमा देवी ने याचिका दायर की है. उमा देवी ने आनंद मोहन की रिहाई को लेकर बिहार सरकार द्वारा कानून में किए गए संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.3 मई को उमा कृष्णैय्या ने कहा कि मुझे न्यायपालिका पर भरोसा है.वह जरूर इस केस में न्याय करेंगे.उनका कहना है कि जब आनंद मोहन को आजीवन कारावास की सजा हुई तो उनकी रिहाई 15 साल में कैसे हो गई.कोर्ट से अपील है कि वह मामले पर गंभीरता से विचार करे.
उमा कृष्णैय्या ने याचिका दायर करने के सवाल पर कहा कि हमने व्यक्तिगत रूप से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर नहीं की है बल्कि IAS अफसरों ने की है. मैं यह लड़ाई नहीं लड़ रही, क्योंकि हमें सपोर्ट करने वाला कोई नहीं है.उमा कृष्णैय्या ने स्पष्ट कहा कि मुझे नीतीश सरकार से कुछ नहीं चाहिए.सरकार आनंद मोहन की रिहाई पर फिर से विचार करे.इस फैसले से IAS अफसरों के मनोबल पर काफी असर पड़ा है.
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