अणु शक्ति सिंह
मिथिला रस प्रधान क्षेत्र है. यहीं रेणु की रस पीरिया हैं. यहीं मिलती है यह महा-मिठाई रसकदम भी.
अद्भुत खोये में लिपटी केसरिया रसभरी… खोये के ऊपर दिलफ़रेब परत पोस्ता दाना की. स्वाद दिव्यता के कुछ आस-पास. यह रसकदम अगर हीरामन हीरा बाई को चखा देता तो वह ज़रूर उस रात हीरामन के साथ ही लौट आतीं.
जाने क्यों इस स्वादपूर्णता के बाद भी यह मिठाई मिथिला और आस-पास के साहित्यकारों की नज़र से बच-बच गई. अपने भागलपुर वाले शरत् बाबू ने न्याय भी किया तो खीर मोहन के साथ. वेणी बाबू के दिये पितृ भोज में ब्राह्मणों की पूरी पाँत खीर मोहन के इंतज़ार में बिठा दी, उन्हें रस कदम चखाया तक नहीं.
अब शरत् बाबू का नाम लिया है तो बंगाली समुदाय जाग उठेगा इस रस कदम पर दावा ठोंकने के लिए. बात यह है कि शरत् बाबू जितना बंगाल में रहे और आदि कवि विद्यापति जितने बंगाली थे, रस कदम भी उतना ही बंगाली है. विशेष बंगाल का क्या है, इन्होंने उड़ियों की मूल मिठाई रसगुल्ला भी अपने नाम ही दर्ज करवा ली है. ख़ैर, इन झगड़ों में क्या जाना…
आप इस रसकदम को देखिए. इसके स्वाद की कल्पना .
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments