पटना.पुलवामा कांड से जुड़े अर्णब गोस्वामी व्हाट्सएप चैट खुलासे ने स्पष्ट कर दिया है कि मोदी सरकार मीडिया का निहायत गलत इस्तेमाल कर रही है और देश की सुरक्षा तक से खेल रही है. सत्ता और मीडिया के बीच इस प्रकार का बन रहा नापाक रिश्ता लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है. एक तरफ मीडिया के बड़े हिस्से का गलत राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है, तो दूसरी ओर सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों व मीडिया हाडसों की स्वतंत्रता का हनन किया जा रहा है व उन्हें दबाया जा रहा है. हमने देखा कि राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडे, जफर आगा, शशि थरूर जैसे पत्रकारों-नेताओं को उनके ट्वीट के कारण हाल ही में यूपी सरकार ने निशाना बनाया है.
बिहार में भी मोदी-योगी सरकार के नक्शे कदम पर चलते हुए नीतीश सरकार ने सोशल मीडिया पर की गई आलोचनाओं को अपराध की श्रेणी में डाल दिया है और उसपर कानूनी कार्रवाई की बातें कही हैं. यह पूरे देश में तानाशाही का दौर है. दिल्ली से लेकर बिहार तक इसका विस्तार हो रहा है, जो देश के लोकतांत्रिक ढांचे के खिलाफ है. उक्त बातें आज पटना में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए माले महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य ने कही.
संवाददाता सम्मेलन में उनके साथ पार्टी के राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो के सदस्य धीरेन्द्र झा व अमर तथा किसान महासभा के नेता केडी यादव शामिल थे.काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य ने आगे कहा कि 26 जनवरी को किसानों का कार्यक्रम देशव्यापी स्तर का था. इन शांतिपूर्ण कार्यक्रमों में किसानों की बड़ी भागीदारी हुई. बिहार में भी कई स्थानों पर ट्रैक्टर मार्च सहित असरदार प्रतिवाद हुए. दिल्ली में हुई छिटपुट घटना को सरकार बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रही है और उसका इस्तेमाल आंदोलन को दबाने के लिए कर रही है. यह बेहद निंदनीय है. इसकी सही से जांच होनी चाहिए कि दिल्ली में किसानों के शांतिपूर्ण मार्च के दौरान उपद्रव करने वाले कौन लोग थे.
मोदी-योगी राज में आंदोलनों के दमन का एक पैटर्न विकसित हुआ है. पहले आंदोलन को बदनाम करो, फिर दुष्प्रचार चलाओ, झूठे मुकदमे करो और फिर आंदोलनकारियों को जेल में डाल दो. रोहित वेमुला की घटना से लेकर जेएनयू प्रकरण, पिछले साल नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ ऐतिहासिक आंदोलन, जामिया-शाहनीबाग, भीमा कोरेगांव आदि तमाम मामलों में हमने इसी पैटर्न को देखा है. अब इसी पैटर्न पर किसान आंदेालनों को दबाने की योजना बनाई जा रही है.
लेकिन इस बार किसान पीछे नहीं हटने वाले हैं. दमन के बावजूद फिर से आंदोलनों में किसानों की भागीदारी आरंभ हो गई है. यूपी के किसान बड़ी संख्या में शामिल हो रहे हैं. यदि इस किसान आंदोनल को जीत की मंजित तक पहुंचाना है तो यूपी व बिहार को पंजाब-हरियाणा वाली भूमिका निभानी होगी. बिहार में आंदोलन का लगातार विस्तार जारी है.
इसी आलोक में कल 30 जनवरी को महात्मा गांधी के शहादत दिवस पर बिहार में महागठबंधन के दलों ने मानव शृंखला निर्मित करने का आह्वान किया है. हम तमाम गैर एनडीए राजनीतिक दलों, मानवाधिकार संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों व बिहार के आम नागरिकों से कल देशव्यापी किसान आंदोलन के समर्थन में 30 मिनट का समय मांगते हैं. 12.30 बजे से लेकर 1 बजे तक यह शृंखला आयोजित होगी. इसमें आप अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें और देश में खेत-खेती-किसानी को बर्बाद करने के लिए लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ मजबूत प्रतिवाद दर्ज करें.
बिहार के प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री शैवाल गुप्ता का निधन पूरे बिहार के लिए एक अपूरणीय क्षति है. उनके निधन से हमने एक जनपक्षधर बुद्धिजीवी को खो दिया है. कुछ दिन पहले बिहार में कम्युनिस्ट आंदोलन के वरिष्ठतम नेता गणेश शंकर विद्यार्थी का भी निधन हो गया था. हम इनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.
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