चंचल
दाढ़ी . पूर्व प्रधानमंत्री मरहूम चंद्रशेखर को जार्ज फर्नांडीज दाढ़ी कह कर बोलते बतियाते थे , हम लोग भी जदा कदा इसी नाम से आपस मे समझ लेते थे ) कुछ लोग आज यानी 17 अप्रैल को चंद्रशेखर जी का जन्मदिन मनाते हैं , हम भी उन्ही में एक हैं .गोकि चंद्रशेखर जी के जन्मदिन की यह तारीख घपले में है , लेकिन इससे क्या मतलब , चंद्रशेखर जी पैदा ही नही हुए , यह तो हो नही सकता , यह गारंटी है कि वे पैदा हुए हैं तारीख उन्हें नही तय करना था , तारीख आपको बताना था , बलिया के इब्राहिम पट्टी को बताना था
- का हो फलाने ! अपने चंद्रशेखर बाबू कब पैदा भइल रहलेन हो ?
- उही साल हो जब सैमन कमीशन आवा रहल ।
- हूँ सत्ताईस . वोनइस सौ सत्ताईस ? तारीख ?
- का मर्दे ! बूड़ बकयी के बात करत हौव् .तब लइकन के जन्मदिन के याद करत रहा हो ? मुंसी जी मदरसे में जवन लिख दिहिन बस उहै तय .
बात वाजिब है .इब्राहिम पट्टी बलिया जिले का एक गांव जो था तो पहले से , लेकिन राजस्व के खाते तकही महदूद था उसने एक बच्चे को जन्म देकर खुद अमर कर लिया इब्राहिम पट्टी .चंद्रशेखर का इब्राहिम पट्टी , उसकी गरीबी , गुरबत , अभाव आज की निराश पीढ़ी को बल देती है कि चलो उठो देखो चंद्रशेखर को जानो बहुत कुछ सीखने को मिलेगा .
हम कहें कि हमसे पटती थी तो सलीके के साथ ज्यादती होगी सच तो यह है कि वे हमें मानते थे , परिवार के सदस्य के रूप में और उसमें हम अकेले नही रहे इनके कुटुम्बरजिस्टर को देखा जाय तो देश का कोई कोना नही बचा होगा जहां दाढ़ी का परिवार न हो .सही बोला न , प्रोफेसर साहब ? ( प्रो0 राजकुमार जैन ) विदेश तक ,।
विषयांतर कर दूँ .हम जीवनी लिखने थोड़े ही बैठे हैं , हम तो उस मनीषी को याद कर रहे हैं , क्यों कुंवर सुरेश जी ? दाढ़ी के ससुराल में हमने अपनी बड़ी बेटी की शादी तय कर दी .वे लोग इसकी सूचना और निमंत्रण लेकर दाढ़ी के पास गए .दाढ़ी हंसे - कुछ पाए क उम्मीद मत करिह , चंचल समाजवादी हउवें .यह किस्सा आज तक चलता है बेटी के घर मे .हुआ भी वही , काहे झूठ बोलूं .दहेज में मिठाई ही दे पाया .
एक दिन दिनमान के संपादक रहे रघुवीर सहाय ने कहा चंचल जी जॉर्ज का एक इंटरवियू ले आइए .मामला बिगड़ गया गए थे कुछ और के लिए टिकट मिल गया चुनाव लड़ने का और हम उम्मीदवार बन कर तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र के खिलाफ चुनाव मैदान में .इज्जत के साथ खेत रहे .हमारे प्रचार में चंद्रशेखर जी बहुत मदद दिए .
अनगिनत वाक्यात हैं .चंद्रशेखर जी बहुत याद आते है , इस समय तो कुछ ज्यादा ही .उनका इकला चलो बहुत बल देता है .
सादर नमन
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