क्या था कर्पूरी काल ?

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क्या था कर्पूरी काल ?

रमा शंकर सिंह  
पत्रकार मित्र अनुराग चतुर्वेदी ने मीलॉर्ड की हार्लेडेविडसन पर तंज करते हुये मुझसे कहा कि क्या कर्पूरी काल की बातें करते हों? वो लालची है बडा माल काटेगा .तो जम्मू के शायर प्रोफेसर लियाक़त जाफ़री कुछ नहीं समझ पाये कि कर्पूरी काल क्या होता है.उनको दिया वायदा आज ही पूरा किये देते हूँ लेकिन संक्षेप में क़िस्सा कहूंगा पूरा नहीं.वो मेरी किताब के लिये सुरक्षित रखता हूँ.  
बिहार के एक मुख्यमंत्री हुये कर्पूरी ठाकुर .बेहद ईमानदार सादगी से रहने वाले और सही बात यह है कि घुटनो से ऊपर की बग़ैर कलफ़ की धोती और आधी  बाँहों का खादी भंडार की मोटी 
खादी का कुर्ता पहनने वाले पहले मुख्यमंत्री हुये 
कई बार एक ही जोडी कपडा दोबारा अगले दिन भी पहन लेते थे.खाने पीने का कोई हिसाब नहीं जो मिल जाये सो. यात्राओं में उनकी 
जेबों में उबले अंडे पड़े रहते जब भूख लगी छीला खा लिया.परिवार नाई जाति का जो कि अंतिम समय तक वही हजामत वग़ैरह का काम करता ही रहा गाँव में जहॉं मात्र एक छप्पर था घर के नाम पर. 
बिहार में पिछड़ी जनता को जगाने और फिर भी अगडी जातियों से वैमनस्य न करने का सफल प्रयोग भी किया.जितनी भीडें आज प्रशासन के दुरुपयोग और भारी धन खर्च करने पर आती हैं उतनी ही बग़ैर कुछ ख़ास प्रचार के मात्र कानों सुनी बातों पर इकट्ठी हो जाती थीं. 
सरकारी पैसों को भी अपने पैसों की भाँति गिन गिन कर ठीक से बेहद ज़रूरी बातों पर ही किफ़ायत से खर्च करते थे . 
चुनाव आ गया .बिहार विधानसभा का चुनाव. 
कर्पूरी जी दिल्ली में बिहार भवन में चिंताकुल बैठे उँगलियों पर कुछ हिसाब लगा रहे थे कि हमारे जैसे दो तीन  युवाओं का समूह मिलने पहुंच 
गया, रोक टोक तब होती नहीं थी.पूछ बैठे कि क्या हिसाब लगा रहे हैं ?  कर्पूरी जी बोले कि चुनाव सिर पर है और एक्कऊ पैसवा नहीं हैं कैसे चुनाव लडेंगें.हिसाब कर रहा था कि अगर कोई साढ़े आठ लाख रूपया का चंदा दे दें तो बिहार जीत लिया जाये.साढ़े आठ लाख में बिहार की जीत ? बोले हां आराम से . 
अब किनसे चंदा लेना है उसका भी नियम पालन होना चाहिये.तब तक शरद पवार महाराष्ट्र के ग़ैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बन कर कुछ समय रह भी चुके थे .सलाह आई कि सिर्फ़ शरद पवार ही इतना इंतजाम कर सकते हैं बाक़ी कोई धनपशु आपको इसलिये नहीं देगा कि आप किसी का का कोई व्यावसायिक हित तो साधेंगें नहीं. 
तय हुआ कि बंबई ( मुंबई बाद में हुई ) चल कर पवार से मिलकर देखा जाये .कर्पूरी जी भारी हिचक में कैसे बात की जायेगी ? युवा दल ने कहा कि बात तो हम कर लेंगें , आप बैठे रहना.रेल का टिकिट कटाया गया.इनपंक्तियों का लेखक पैसों के कारण बंबई नहीं गया.बंबई पहुँचकर सरकारी गैस्ट हाउस में टिका गया और शरद पवार के कार्यालय में खबर की गई.खुद शरद पवार ही आकर हाज़िर हो गये. 
बात छेड़ी गई कि मात्र साढ़े आठ लाख में बिहार सरकार बन सकती है यदि इतने का इंतज़ाम हो जाये शरदपवार ने पूछा कि सो कैसे हो सकता है तो कर्पूरी जी ने वही उँगलियों पर जोड़ा हिसाब बता दिया.  
क़िस्सा कोताह ये कि शरद पवार के लिये वह इंतज़ाम बहुत छोटा था , कह दिया कि पटना जीतिये. 
लौटते में बैठे तो रेल में ही थे पर समझो उड़ते हुये पटना आये .चुनाव हुआ.बहुमत से जीते  और शरद पवार चकित कि बिहार मे ऐसे भी जीतने वाले नेता हैं. 
वहीं जन नायक कर्पूरी ठाकुर जी अंतिम समय में अपने इलाज के लिये विदेश जाने से और किसी के द्वारा प्रायोजित होने से साफ़ मना कर दिये. 
पेट की बीमारी से मरे कि नियमित और संतुलित भोजन कहाँ मिल पाता था? कभी सिर्फ़ सत्तू कभी उबले अंडे . 
बाक़ी क़िस्से फिर कभी और यह गप्पें नहीं है लेकिन आज किसको  विश्वास होगा ? १९७७ में सब अभियान छोड़कर मेरे पहले चुनाव में प्रचार के लिये लहार भिंड आये तो फ़ियट छोटी कार में दिनभर घूमे और चुपके से से मेरी जेब में पाँच हज़ार डाल दिये कि दिल्ली में कोईआये थे तो इतना चंदा दे गये अब उसे बिहार तक क्यों ले जायें. 
सुना प्रोफेसर लियाक़त जाफ़री.यह था कर्पूरी काल .रमा शंकर सिंह की वाल से साभार 

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