हिसाम सिद्दीकी
नई दिल्ली! चार रियासती असम्बलियों और एक यूनियन टेरिटरी पद्दुचेरी के चुनावी नतायज आ गए बंगाल की दीदी ममता बनर्जी ने नरेन्द्र मोदी और अमित शाह जैसे गुजराती दादाओं को द्दूल चटा दी. ममता बनर्जी को पिछले 2016 के एलक्शन के मुकाबले कोई दस ज्यादा सीटें मिली हैंए वह भी तब जब मोदी ने कोई दो साल से अपने नजदीकी मध्य प्रदेश के कैलाश विजय वर्गीय को बंगाल में तैनात कर रखा था. चुनाव नजदीक आया तो नरेन्द्र मोदी ने अपने साथ अमित शाहए जेपी नड्डाए योगी आदित्यनाथ जैसे फिरकापरस्ती के बादशाहों को भी बंगाल में लगा दिया. इन लोगों ने राष्ट्रवाद हिन्दुत्ववाद और जय श्रीराम के नारे के जरिए बंगाल में आग लगाने की तमाम कोशिशें कर डालींए लेकिन बंगाल के सेक्युलर अवाम पर इन लोगों का जर्रा बराबर भी असर नहीं पड़ा. आम बंगालियों का कहना था कि वह मुसलमानों के साथ आराम और अम्न के साथ रहते हैं. उन्हें हिन्दू मुसलमान जैसे नारों में नहीं फंसना है. अमित शाह और योगी आदित्यनाथ वगैरह ने जितना जयश्रीराम का नारा लगाया उतना ही आम बंगाली देवी दुर्गा और काली मां की तरफ बढता गया. वजीर.ए.आजम नरेन्द्र मोदी वैसे तो हमेशा छोटी और घटिया तकरीरें करते हैं लेकिन इस बार बंगाल में उन्होने गिरावट की तमाम हदें पार कर दी. इन चुनावों में कांग्रेस की भी रही सही सियासत खत्म हो गई. बंगाल में पार्टी ने लेफ्ट मोर्चे के साथ समझौता किया था यह समझौता 2017 के उत्तर प्रदेश जैसा साबित हुआ कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी. यही हश्र लेफ्ट पार्टियों का भी रहा. रिवायत के मुताबिक इस बार केरल में कांग्रेस की सरकार बननी चाहिए थी लेकिन वहां भी लेफ्ट फ्रण्ट ने तारीख ;इतिहासद्ध रच दी और कांग्रेस से दोगुनी से ज्यादा सीटें जीत कर दोबारा सरकार बना ली. केरल में कांग्रेस की शर्मनाक शिकस्त की वजह सिर्फ और सिर्फ राहुल गांद्दी हैं जो वेणुगोपाल जैसे लोगों पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करते हैं. बीजेपी का केरल असम्बली में एक मेम्बर था. इस बार पार्टी ने श्रीद्दरन जैसे बदअक्ल बूढे की कयादत में केरल का एलक्शन लड़ा तो वह एक सीट भी जाती रही.
बीजेपी बड़ी मुश्किल से असम में अपनी इज्जत बचा सकी लेकिन बंगाल की शर्मनाक शिकस्त ने उस जीत को भी बेमजा कर दिया. तमिलनाडु में बीजेपी ने आल इडिया अन्ना डीएमके का दामन थामा था तो ऐसा थामा कि एआई अन्नाडीएमके को भी ले डूबी. कांग्रेस से तोड़ कर बीजेपी ने खुशबू सुन्दर को अपना उम्मीदवार यह सोच कर बनाया था कि वह फिल्मी अदाकारा रही हैं एआईएडीएमके का साथ है वह जरूर जीत लेंगी अगर उनमें लालच न होता और वह कांग्रेस में ही रहतीं तो शायद इस बार असम्बली में होतीं.
इस एलक्शन में कांग्रेस ने भी अपनी रही सही साख गंवा दी. केरल में सिर्फ पार्टी हारी नहीं बल्कि लेफ्ट फ्रण्ट के मुकाबले आद्दी सीटें भी नहीं ला पाई. तमिलनाडु में पार्टी ने महज पच्चीस सीटें लेकर डीएमके के एम के स्टालिन से समझौता कर लिया था. इस लिए वहां कुछ इज्जत बच गई. असम में भी कांग्रेस के लिए हालात साजगार थे. कांग्रेस ने बदरूद्दीन अजमल की पार्टी के अलावा दो छोटी पार्टियों के साथ भी समझौता किया था इसके बावजूद असम में पार्टी बीजेपी के मुकाबले तकरीबन आद्दी सीटों पर ही सिमट कर रह गई. पुद्दुचेरी में गुजिश्ता दस सालों से कांग्रेस की सरकार थी वहां कांग्रेस दस सीटें भी नहीं जीत पाई.
भारतीय जनता पार्टी ने बार.बार दावा किया था कि वह मगरिबी बंगाल में दो सौ से ज्यादा सीटें जीतेगी. मोदी से योगी तक सभी ने हिन्दुओं को अपनी तरफ पोलराइज करने के लिए हिन्दू कार्ड खूब खेला लेकिन हुआ उल्टा ममता ने दो सौ से बीस सीटें ज्यादा जीत लीं. यह भी अजीब बात है कि ममता की पार्टी ने 2006 के मुकाबले 2011 में ज्यादा सीटें जीती थी फिर 2011 के मुकाबले 2016 में उससे भी ज्यादा सीटें जीतीं और अब 2021 में तो पिछले तमाम रिकार्ड ही तोड़ दिए.
ममता बनर्जी ने सिर्फ बीजेपी को ही नहीं हराया है उन्होने एलक्शन कमीशन को भी हराया है. एलक्शन कमीशन शुरू से ही बीजेपी की तरफ खड़ा दिख रहा था. ममता की इस शानदार जीत ने 2024 में होने वाले लोक सभा एलक्शन को भी नरेन्द्र मोदी के लिए सख्त बना दिया है. जिस अंदाज में शरद पवारए फारूक अब्दुल्लाहए अखिलेश यादवए तेजस्वी यादव और शिव सेना ने बढ.चढ कर ममता को मुबारकबाद दी उससे साफ नजर आता है कि अब ममता बनर्जी ही नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मजबूत और ताकतवर लीडर ही हैसियत से पेश की जाएंगी. चूंकि कांग्रेस और उसके लीडर राहुल गांद्दी बहुत कमजोर हो चुके हैं इसलिए तमाम पार्टियां ममता को मोदी के मुतबादिल की तरह आसानी से पेश कर सकेंगी.
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