आलोक कुमार
सहरसा.पूर्व सांसद आनंद मोहन ने 17 मई यानी आज 14 वर्ष की सजा पूरी कर ली है.बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी से अपील है कि उनको जल्द से जल्द रिहा कर राज धर्म का पालन करे.पूर्व सांसद की पत्नी लवली आनंद जी अकेले ही न्याय की लड़ाई लड़ती रहीं,अब वह अकेली नहीं हैं, पूरा समाज आपके साथ है! पूर्व सांसद आनंद मोहन की सजा 17 मई को पूरी हो गई. लेकिन कोरोना की वजह से उन्हें जेल से बाहर आने में कुछ वक्त लग सकता है. लेकिन उनके समर्थक रिहाई की मांग को लेकर लगातार अभियान चला रहे हैं.
आनंद मोहन की रिहाई को लेकर सोशल मीडिया पर रीलिज आनंद मोहन और जस्टिस फॉर आनंद मोहन जैसे हैसटैग ट्रेंड कर रहे हैं. हालांकि कई बार उनकी रिहाई की मांग को लेकर कार्यकर्ताओं ने जुलूस भी निकाला है.डीएम हत्याकांड मामले में थे सजायाफ्ता
बताया जा रहा है कि आनंद मोहन को गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा हुई थी. वह 2007 से ही जेल में हैं. वहीं, 17 मई यानी आज 14 वर्ष की सजा पूरी हो गई. हालांकि उनकी रिहाई की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हो पाई है.'लॉकडाउन की वजह से रिहाई में हो सकती है देरी'
आनंद मोहन के बेटे विधायक चेतन आनंद ने कहा कि कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन की वजह से रिहाई से पहले बनने वाला बोर्ड अभी तक गठित नहीं हो पाया है. लेकिन हमारी मांग है कि राज्य सरकार सक्रिय रुप से इस मामले में कार्य करे और हमारे पिता की रिहाई की जाए.
बताया जाता है कि आंनद मोहन और पप्पू यादव में बहुत समानताएं हैं.दोनों पहली बार 1990 में विधायक बने. दोनों की राजनीति का आधार बाहुबल है. एक राजपूत समाज के नेता दूसरे यादव समाज के नेता.1990-91 में जब मंडलवाद की लहर थी तब बैकवार्ड-फॉरवार्ड की लड़ाई में दोनों की बंदूकें गरजती थीं. पप्पू यादव विधायक अजीत सरकार हत्याकांड जेल गये.आनंद मोहन डीएम कृष्णैया हत्याकांड में जेल गये. जेल जा कर दोनों साहित्यकार हो गये.पप्पू यादव ने जेल में रह किताब लिखी- द्रोहकाल का पथिक.आनंद मोहन ने सलाखों के पीछे रह कर एक काव्य संग्रह लिखा- कैद में आजाद कलम. महात्मा गांधी पर भी तीन किताबें लिखीं.
पप्पू यादव को अजीत सरकार हत्याकांड में उम्रकैद की सजा मिली लेकिन बाद में बरी हो गये. आनंद मोहन को कृष्णैया हत्याकांड में पहले मिली थी फांसी की सजा. लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उसे उम्र कैद में बदल दिया.अब संयोग देखिए कि दोनों फिलहाल जेल में हैं और उनकी रिहाई के लिए सोशल मीडिया पर बहुत तेज मुहिम चल रही है.
1990 में बिहार विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा और निर्दलियों के समर्थन से लालू यादव (जनता दल) मुख्यमंत्री बने थे.आनंद मोहन को महिषी से जनता दल का टिकट मिल गया था. वे विधायक चुने गये थे. पप्पू यादव को कोशिश के बाद भी लालू यादव ने जनता दल का टिकट नहीं दिया था.तब तक पप्पू बाहुबली बन चुके थे.
उन्होंने सिंहेश्वर सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत गये.सहरसा जिले की महिषी सीट और मधेपुरा जिले की सिंहेश्वर सीट भौगोलिक रूप से आसपास हैं.करीब 53 किलोमीटर का फसला है.मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू यादव पिछड़ावाद की लहर पर सवार हो कर बड़े नेता बनने की राह पर थे.ऐसे में निर्दलीय पप्पू यादव, लालू यादव के करीब आ गये.
आनंद मोहन राजपूत समेत अन्य अगड़ी जातियों के नेता के रूप में स्थापित हो रहे थे.आनंद मोहन जनता दल में रह कर भी लालू यादव से दूर थे.इसी बीच 7 अगस्त 1990 को प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने मंडल आरक्षण को लागू करने की घोषणा कर दी.इसके बाद बिहार समेत पूरे देश में अगड़ों और पिछड़ों के बीच लड़ाई शुरू हो गयी.आरक्षण के विरोध में जगह-जगह प्रदर्शन होने लगे.
बिहार में तो गृहयुद्ध की स्थिति पैदा हो गयी. पप्पू यादव के मुताबिक, तब लालू यादव ने इस सामाजिक संघर्ष में पिछड़े वर्ग के हितों की रक्षा के लिए पप्पू यादव को आगे कर दिया. पप्पू यादव ने अपने हथियारबंद गिरोह के साथ मोर्चा संभाल लिया. दूसरी तरफ अगड़ी जातियों की रक्षा के लिए आनंदमोहन ने बंदूक उठा ली.
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