बारात लेकर रीवा गए थे राज कपूर !

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बारात लेकर रीवा गए थे राज कपूर !

राजेश बादल  
मैं जवान होते राज कपूर के भीतर गुदगुदी के अहसास की बात कर रहा था. उन्हें हेमा तो नहीं मिली, लेकिन कृष्णा मिल गई. सुंदर और मांसल देह वाली महिलाएँ उन्हें हमेशा आकर्षित करती थीं. सोलह या सत्रह साल के रहे होंगे. हेमा तब उनकी ज़िंदगी में नहीं आई थी. उससे पहले भी चौदह साल की एक लड़की के प्यार में वे पागल हो गए थे. लड़की के परिवार और राज कपूर के परिवार में गहरी दोस्ती थी. 

दोस्ती को देखकर दोनों परिवारों ने तय किया कि उनकी शादी कर दी जाए. लेकिन लड़की का पिता चाहता था कि राज कपूर घर जँवाई बन जाए क्योंकि उस परिवार का लाखों का कारोबार था और लड़की इकलौती थी. लड़की का पिता चाहता था कि राज कपूर उसका कारोबार संभाल लें. लेकिन तब तक राज कपूर को नाटकों की लत लग गई थी. 

उन्होंने कहा, 'मैं घर जँवाई नहीं बन सकता. मैं तो एक्टिंग में करियर बनाऊँगा.' सगाई होते होते टूट गई. इसके बाद राज कपूर उस लड़की से मिलने गए. उस लड़की ने ठेंगा दिखाते हुए कहा, 'ये गलियां ,ये चौबारा, यहाँ आना न दोबारा.' 

ये पंक्तियाँ और ठेंगा दिखाने की अदा राज कपूर के दिमाग़ में कुछ ऐसी दर्ज़ हुई कि चालीस - पैंतालीस साल बाद 'प्रेम रोग' फ़िल्म में दिखाई दी. 

वनमाला 

उमर के इसी पड़ाव पर राज कपूर बेहद सुन्दर और आधुनिक अभिनेत्री वनमाला की फ़िल्में देखकर उनके दीवाने हो गए. वनमाला मध्य प्रदेश के एक राजपूत परिवार से थीं. 1951 या 1952 में मराठी फ़िल्म 'श्यामची आई' को स्वर्ण कमल पुरस्कार मिला था. इस फ़िल्म की नायिका थीं वनमाला. घर- घर में वनमाला के चर्चे थे. उस ज़माने में वे घुड़सवारी करती थीं और स्वीमिंग परिधान पहनती थीं. 

लेकिन एक फ़िल्म में ग्वालियर के महाराजा ने उन्हें देखा तो वनमाला के पिता से कहा कि मराठा घरों की महिलाओं के लिए यह शोभा नहीं देता. वनमाला के पिता महाराजा सिंधिया के दरबार में बड़े ओहदे पर थे. उन्होंने यह बात वनमाला से कही. इसके बाद 


वनमाला ने फ़िल्म इंडस्ट्री ही छोड़ दी और मथुरा वृन्दावन में एक संन्यासिन की तरह सारी उमर काट दी. कौन थी वनमाला, राज कपूर से क्या था रिश्ता? 
मुझे 90 के दशक में यह बात पता चली. तब तक मैं टेलिविज़न की दुनिया में क़दम रख चुका था. वे गुमनामी में खो गई थीं. मैंने उन्हें खोज निकाला. तब मेरी टीवी टीम के साथ एक साक्षात्कार में वनमाला ने बताया कि वैसे तो राज कपूर उनसे नौ दस साल छोटे थे. लेकिन जब भी पृथ्वीराज कपूर के साथ हम लोग होते तो वे बताया करते थे कि मेरा बेटा राज कपूर बड़ा होकर तुम         (वनमाला) से शादी करना चाहता है. तो हम लोग ख़ूब हँसा करते थे. 

ज़ोहरा सहगल 

वैसे हक़ीक़त तो यह है कि राज कपूर ही नहीं, सारे कपूर ख़ानदान के मर्द सुन्दर महिलाओं के पीछे डोला करते थे. खुद पृथ्वीराज कपूर की नायिका ज़ोहरा सहगल ने मुझे यह बात सौ बरस की आयु में बताई थी, जब मैं उन पर अपनी एक घंटे की फ़िल्म के सिलसिले में मिला था. 

ज़ोहरा का नाता पृथ्वी थिएटर से भी रहा था. दिलचस्प बात तो यह थी कि जिस पृथ्वीराज कपूर की गरज़दार आवाज़ को हम 'मुग़ल ए आज़म' में सुनते थे, उनकी आवाज़ शुरुआत में बहुत पतली थी. एकदम औरतों की तरह. वे नाटकों में महिलाओं के क़िरदार किया करते थे. बाद में किसी दवा का रिएक्शन हुआ तो आवाज़ मोटी हो गई. पृथ्वीराज औरत की ड्रेस पहनकर महिला कलाकारों के बीच पहुँच जाते थे. 

इसी तरह पृथ्वीराज कपूर के पिता बसेशर नाथ जब पेशावर के गाँव समुंदरी पोस्ट में रहते थे तो सड़क के एक तरफ उनकी हवेली होती थी और सड़क पार उनकी एक प्रेमिका का घर था. बसेशरनाथ ने अपना कमरा अलग बना रखा था. बिना इजाज़त कोई उनके कमरे में घुस नहीं सकता था. इस कमरे में एक सुरंग थी. यह सुरंग सड़क पार प्रेमिका के कमरे में जाकर खुलती थी. किसी को इसका पता नहीं था. जब उनका दिल करता, रात को वे प्रेमिका से मिलने चले जाते थे. 

यह बात बरसों बाद बशेशरनाथ के एक सेवक के पोते मोहम्मद यूनुस ने राज कपूर और उनके परिवार को 19 फरवरी 1986 को बताई थी जब वह पूरे कपूर ख़ानदान के लिए पाकिस्तान से तोहफ़ा लेकर आया था. 

सोवियत संघ में लोकप्रिय 

बहरहाल, लौटते हैं नीली नीली आँखों वाले राज कपूर और लड़कियों के रिश्तों पर. एक बार राज कपूर माँ और पापाजी के साथ सोवियत संघ गए. वहाँ लड़कियों ने राज कपूर को घेर लिया और चारों तरफ से चुंबनों की बौछार कर दी. 

राजकपूर का चेहरा और गाल लिपस्टिक से लाल लाल हो गए. पापाजी किसी तरह बेटे को लड़कियों के झुण्ड से निकालकर लाए और माँ के हवाले किया. बोले, 'इसके गाल साफ़ कर दो.' माँ ने तब अपनी साड़ी के छोर से राजकपूर का चेहरा साफ़ किया. राजकपूर होटल में यह बताते हुए शर्मा से गए. 

उम्र के उस पड़ाव को याद करते हुए उन्होंने अपने संस्मरण में लिखा , 'मैं मोटा था इसलिए हर तरह के व्यावहारिक मज़ाक़ मुझसे किए जाते थे. इस उमर में कुछ सुखद छींटों के अलावा मेरी ज़िंदगी में सब कुछ दुर्भाग्यपूर्ण था. ये सुखद छींटे समय समय पर लड़कियों के प्रेम में पड़ जाने के कारण पड़े थे. मुझे भी अन्य सभी स्कूली बच्चों की तरह प्यार, मोहब्बत और मान सम्मान की तलाश थी. मुझमें प्रेम करने की अपार क्षमता थी. इसलिए मैं एक बार, दो बार, तीन बार यानी कि बार बार प्रेम में पड़ता चला गया.' 

लेकिन प्रेम की भी कोई सीमा होती है. आखिर एक इंसान कितने प्रेम अनुबंध निभा सकता है. जब बहुत हो गया तो जैसा मैंने बताया कि पृथ्वी राज कपूर ने बेटे के लिए रीवा के आई जी करतार नाथ मल्होत्रा की चौथी बेटी का चुनाव कर लिया. अंतिम स्वीकृति तो राज कपूर को ही देनी थी. वे कृष्णा मल्होत्रा से मिलने 4 मार्च, 1946 को रीवा जा पहुँचे. पहली नज़र में ही सोलह साल की कृष्णा उन्हें भा गई. 

हालाँकि इससे पहले वे चुपचाप कृष्णा का चुनाव कर चुके थे. जब पापाजी ने कृष्णा के बारे में बताया तो वे 'आग' फ़िल्म का निर्माण कर रहे थे और प्रेमनाथ उनके सह अभिनेता थे. प्रेमनाथ कृष्णा के भाई थे. 

राज कपूर प्रेमनाथ से कुछ चर्चा के बहाने उनके घर जा धमके. जाते ही कृष्णा को देखा. कृष्णा सफ़ेद साड़ी में आँख बंद किए सितार वादन में डूबी हुई थीं. राजकपूर कृष्णा को दिल दे बैठे और एक दिन बारात लेकर रीवा पहुँच गए. 

क्या आप यक़ीन करेंगे कि वे घोड़ी पर सवार होकर नहीं बल्कि हाथी पर बैठकर दूल्हे के वेश में ससुराल पहुंचे थे. शादी की रस्मों के दरम्यान मंडप के नीचे चुलबुले राज कपूर ने कृष्णा से नज़रें मिलाने के लिए घूंघट सरकाने के लाख जतन कर लिए मगर कृष्णा जी ने घूंघट नहीं उठाया तो नहीं उठाया. 

इसी बीच फ़िल्म अभिनेता अशोक कुमार मंडप में आ गए. उस समय वे बेहद लोकप्रिय अभिनेता बन चुके थे. मंडप के नीचे खुसुर पुसुर शुरू हो गई - 'अशोक कुमार आ गए. .. अशोक कुमार आ गए...' फिर क्या था. कृष्णा कपूर ने अपने चहेते अभिनेता को देखने के घूँघट एकदम हटा दिया और भरपूर नज़र से अशोक कुमार को देखा. राज कपूर कृष्णा को देख रहे थे और कृष्णा अशोक कुमार को. राज कपूर यह देखकर बहुत खीजे और खिसियाए. पर क्या कर सकते थे. 

हालाँकि कृष्णा के साथ उनका दाम्पत्य जीवन ख़ुशनुमा था, मगर जैसा राज का मिजाज़ था, वैसी स्थिति में जो भी होना चाहिए था, वह सब कुछ होता रहा. राज कपूर ने एक जगह हल्के फुल्के अंदाज़ में कहा भी कि सिर्फ़ इसी स्त्री को मैं आज तक खुश नहीं कर पाया हूँ. 

छोटे भाइयों की मौत 

यहाँ एक प्रसंग अवश्य लिखना चाहता हूँ कि राज कपूर के भीतर यौनाकर्षण जगाने में उनके माता- पिता का बहुत स्थान था. वे होश संभालने के बाद भी अपनी माँ के साथ ही स्नानगृह में नहाया करते थे. 

पिता से उनका रिश्ता दोस्ती का था. एक बार पापाजी किसी प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में सुमात्रा और बाली गए. वहाँ से राज कपूर के लिए एक सुन्दर औरत की नग्न पेंटिंग लाए. राज कपूर को उन्होंने भेंट करते हुए एक पर्ची दी. इस पर्ची पर लिखा था - 'अफ़सोस ! मैं तुम्हारे लिए जीती जागती नहीं ला सका.' 

कम लोग ही यह जानते होंगे कि राज कपूर के दो छोटे भाई और थे, जो शम्मी कपूर और शशि कपूर से बड़े थे. उनका नाम था रवींद्र और देवेंद्र. रवींद्र, राज कपूर की तुलना में गंभीर और अत्यंत सुन्दर था. एक दिन पापाजी कहीं शूटिंग में व्यस्त थे और रवींद्र ने चूहा मारने वाला ज़हर खा लिया. उनकी मौत हो गई. 

एक सप्ताह बाद ही देवेंद्र की मौत निमोनिया से हो गई. राज कपूर समेत सारा घर सदमें में था. एक सप्ताह में दो बेटों को खोने के ग़म से उबरने में उन्हें बड़ा वक़्त लगा.फोटो साभार -krishnarajkapoor/Instagram 
 

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