चंचल
हिंदुस्तान 'गया था .मनोहर श्याम जोशी से मिल कर वापस आ रहा था , जनपथ पर शरद दत्त जी मिल गए उनदिनों दूरदर्शन पर प्रोड्यसर थे , और साथ ही साथ किताबों का सम्पादन भी कर रहे थे .गाड़ी रोकी और बोले - मंडी हाउस ? और हम चल दिये .( इस वाकये को लिख चुका हूं ) अचानक पिछली सीट से एक आवाज आई - 'लगता है आज मौसम खराब ही रहेगा ' / आवाज जानी पहचानी लगी हम पीछे मुड़ कर देखने लगे .शरद ने परिचय कराया - ये देवकी नंदन पांडे हैं .खादी के कुर्ते और चौड़ी मोहड़ी के पजामे में पांडे जी मुस्कुरा रहे थे .
शरद दत्त उन दिनों मंडी हाउस की सरकारी कालोनी में ही रहते थे और अक्सर शाम की बैठकी उन्ही के घर हो जाया करती थी .हमने पांडे जी को बताया कि हमारे गांव के लोग किस तरह आपको पेड़ पर लटका कर खबर सुनते थे .आपकी आवाज से हर कोई परिचित है ।
' छह बजे कर पांच मिनट हुए हैं , अब आप समाचार सुनिए . ये आकाशवाणी है , अब आप देवकी नंदन पांडे से समाचार सुनिए .'
सूचना क्रांति के वाहक मरहूम राजीव गांधी को शुक्रिया कि उन्होंने पूरे ग्लोब को ही लोंगो की मुट्ठी में रख दिया .पीपल बाबा अब भी वही है .गांव वही है लेकिन अब , न देवकी नंदन पांडे पेड़ से लटकते हैं , न अक्खा गांव जुटता है .कभी कभार भैंस चराते बच्चे हुडुडुआ खेलते दिख जाते हैं, या अक्सर घास की तलाश में निकली औरतों का झुंड , कान में 'आला ' डाले , सर्बतिया मोबाइल से 'दकाऊ - दकाऊ ' सुनते पकडी जाती है .मंझारी आंख गोल कर सर्बतिया का लच्छन सुना देती है - ओका अथि में डाल लें , चौबीस घंटा मोबाइल .
वो पूछ रहा है सत्तर साल में क्या हुआ ?
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