राजा थे पर फकीर के कंधे पर

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राजा थे पर फकीर के कंधे पर

चंचल   
कवि थे .चित्रकार थे .शिक्षक थे .संवेदनशील भावुक अदालत थे .राजनीति उनकी लालसा थी .राजा थे पर फकीर के कंधे पर . 
हमारी मुलाकात एक  एक अलगरजू  की तरह हुई / कराई गई .उन दिनों हम ' चौथी दुनिया ' मे थे , संपादक थे मित्र संतोष भारतीय .आहिस्ता आहिस्ता हम लोग यह समझने लगे थे कि -  'चौथी दुनिया ' ' बोफोर्स ' के हवाले से राजा मांडा वीपी सिंह को राजगद्दी  से उतार  फकीरी के जामे में डाल ही देगी .प्रधानमंत्री राजीव गांधी और वी पी के बीच तनाव सार्वजनिक हो चुका था . 
वी पी सिंह मन बना रहे थे कांग्रेस से छटकने का .दिलचस्प बात है उस समय राजा के साथ कांग्रेस का एक भी बन्दा बाहर आने को तैयार नही था .राजा के साथ उस समय संतोष भारतीय सबसे नजदीकी थे , यकीनन संतोष भारतीय ने मेहनत की और  लोंगो को राजा से जोड़ने की मुहिम चलाई .राजा का मन तो बन चुका था कांग्रेस छोड़ने का लेकिन हिचकिचा रहे थे .बहरहाल एक दिन संतोष जी ने हमे गाड़ी में बिठाया , बोले- चलिए  घूमा जाय .इस  घूमने में गाड़ी जाकर रुकी वी पी सिंह के घर पर .यह हमारी पहली मुलाकात थी . 
अंततः वीपी सिंह ने खीसे से कागद निकाला और घोषणा कर दी यह है बोफोर्स का ' सच ' . 'बोफर्स में दलाली ली गयी है ' कागद हमारे पास है .यह खबर चिंगारी की तरह नही , आग की लपट की तरह दौड़ गयी .उधर कांग्रेस में राजीव गांधी के बढ़ते कद और उनकी ईमानदार कार्यशैली से परेशान चुलबुले कांग्रेसी मौका पा गए हाथ सेकने लगे .सियासत का रंगीन मिजाज देखिये - राजा मांडा मधुमक्खी की रानी बन गए और समूचा विपक्ष सिपाही बन कर रानी को घेर लिया .भारतीय राजनीति का वही पुराना खेल फिर शुरू .एक तरफ कांग्रेस दूसरी तरफ पूरा विपक्ष .कांग्रेस का एक धुर विरोधी जॉर्ज फर्नांडिस अकेला सियासतदां रहे जिन्हें इस  
' तमाशे ' से  हैरानी हो रही थी .जार्ज उन दिनों हौजखास के बगल कौशल्या पार्क में रह रहे थे .चौथी दुनिया मे फोन आया जार्ज ने कहा - दोपहर में आ जाओ ,साथ मे खाना खाएंगे .( जार्ज कभी भी हमे रात खाने पर नही बुलाते थे , वजह वही जाने )  जार्ज  उस दिन  गुस्से में थे - देवीलाल आया था , वीपी को समर्थन देने की बात कर रहा था .बोफर्स को उठाने की बात कर रहा था , क्या है यह बोफोर्स ? सब जानते हैं रक्षा सौदे में दलाली होती है , कौन सी नई बात है .तुमने भी क्या लिखा चौथी दुनिया मे ? हमने पढा .कांग्रेस का विरोध होना चाहिए ,लेकिन मुद्दा तो सही हो .इतने में चंद्रशेखर जी आ गए .एक एक कर कई नेता आये , सुषमा स्वराज , मधु दंडवते , देवीलाल , रंजीत भानु , वगैरह .जॉर्ज और दाढ़ी ( चंद्रशेखर जी )  एक मत के थे लेकिन देवीलाल , रामधन ,  वगैरह एक मत के .' रुको ' का हटा दिया गया  
' देखो ' और ' जाओ'   पर विसर्जन हो गया .

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