कुलेम रेलवे स्टेशन से दूध सागर तक

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कुलेम रेलवे स्टेशन से दूध सागर तक

अंबरीश कुमार 
खैर जिस यात्रा का जिक्र कर रहा हूँ वह तीसरी यात्रा थी जिसमे हम अपने सहयोगी संजय सिंह के साथ परिवार समेत गोवा घूमने गए थे .मै,सविता और संजय ,संध्या और दो गोदी वाले बच्चे .समुंद्र तटों की सैर के बाद कार्यक्रम बना कि दूध सागर जल प्रपात देखा जाए जो घने जंगल में है .सारी जानकारी लेकर कुलेम रेलवे स्टेशन पहुंचे .वैसे बताया गया मडगांव से भी करीब घंटे भर में दूध सागर पहुंचा जा सकता है .यह झरना कर्नाटक गोवा सीमा पर लोन्दा मडगांव रेल रूट पर एक पहाड़ी से गिरता है .इस रूट पर अब दिल्ली गोवा एक्सप्रेस ,हावड़ा वास्को अमरावती एक्सप्रेस और पुणे एर्नाकुलम एक्सप्रेस जैसी कई ट्रेन चलती है .बहरहाल जब कुलेम से दूध सागर जल प्रपात के लिए सुबह ट्रेन पकड़ी तो रेलवे कैंटीन का एक बैरा भी सामान लेकर चढ़ा .उसने बताया कि दूध सागर एक हाल्ट स्टेशन है जहा सवारी गाड़ियाँ दिन में सिर्फ दो मिनट के लिए रुकती है रात में नही रूकती .जब दूध सागर स्टेशन पहुंचे तो पता चला स्टेशन के नाम पर छोटा सा तिन शेड और कोने में एक टायलेट है .न कोई कमरा न कोई टिकट की खिड़की .जगह भी बहुत छोटी से क्योकि पचास मीटर दूरी पर वह झरना है जिसके दूसरी ओर घना जंगल है .दरअसल एक समूची नदी जब पहाड़ से लिपटती हुई उतरती है तो वह जिस झरने में तब्दील होती है है वह दूध सागर झरना कहलाता है .नदी का पानी पहाड़ पर सफ़ेद दूध की ही तरह नजर भी आता है .अब वहा का दृश्य बदल चुका होगा पर तब बहुत कम जगह थी ट्रेन पटरी से नीचे उतर कर झरने तक हम लोग पहुंचे और बच्चों के साथ पानी से खेल ही हुआ .झरना का पानी दूसरी तरफ जंगलों की तरफ चला जा रहा था .जंगल भी काफी घना था .इस बीच बैरा जो साथ आया था बोला खाना खा लीजिए मुझे जो ट्रेन आने वाली है उससे लौटना है .हम लोगों ने पूछा उसके बाद कौन सी ट्रेन मिलेगी तो बताया शाम साढ़े पांच छह पर जो ट्रेन आयेगी उससे लौट आये क्योकि उसके बाद ट्रेन नहीं है .वह चला गया और हम लोगों की पिकनिक होती रही .घडी में जब साढ़े पांच का समय हुआ तो तिन शेड के नीचे आ गए इंतजार करने .पास के गाँव का एक युवक भी आ गया था मडगाव जाने के लिए .ट्रेन की आवाज सुनाई पड़ी तो सब तैयार हो गए .पर ट्रेन आई और धडधडाती हुई आगे निकल गई .हम लोग सन्नाटे में .उस युवक से पूछा तो जवाब मिला ट्रेन तो अभी और आएगी पर मालगाड़ी ..करीब घंटे भर बाद फिर ट्रेन की आवाज सुनाई पडी .यह मालगाड़ी थी जो तेजी से आगे निकल गई .अब अँधेरा हो चुका था और जंगल से तरह तरह की आवाज सुनाई पड़ रही थी .तब मोबाईल का समय भी नहीं था .सभी परेशान और डरे हुए .पैदल करीब दस किलोमीटर घने जंगल में चलने बाद कोई बस्ती मिलने वाली थी पर इस अँधेरे में चला भी नहीं जा सकता था .युवक जो माचिस रखे था उससे कुछ पत्ते और लकड़ी जलाकर रौशनी भी की गई .इस बीच फिर ट्रेन की आवाज सुनाई पड़ी तो तय कर लिया सभी पटरी पर खड़े होका हाथ हिलाए तो शायद काम बन जाए .ट्रेन कुछ धीरे थी इसलिए इंजन की रौशनी में सब दिख रहा था .भाग्य हमारा अच्छा था जो इंजन रुका और हम दरिवेर के पास पहुँच गए .उसने कहा मालगाड़ी में सब डिब्बे बंद है कोई जगह नही है .हम लोग अड़ गए तो बोला इंजन बैठा सकता हूँ पर दस रुपए सवारी लूँगा बच्चो का नहीं लगेगा और कुलेम में उतर दूंगा वहा से मडगांव दूसरी ट्रेन से जाना पड़ेगा .फ़ौरन हम सब इंजन में चढ़ गए .करीब आधे घंटे बाद जब शहर की रौशनी दिखी तो सभी की जान में जान आई .इस तरह एक न भुलाने वाली यात्रा ख़त्म हुई .फोटो साभार सोशल मीडिया 

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