उपदेशक गुप्तेश्वर पांडेय को जानते हैं आप

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उपदेशक गुप्तेश्वर पांडेय को जानते हैं आप

फ़ज़ल इमाम मल्लिक 
बिहार में एक डीजीपी हुआ करते थे. लोग भूले नहीं होंगे. गुप्तेश्वर पांडेय नाम है उनका. अब वे डीजीपी नहीं हैं. लेकिन जब डीजीपी थे तो मीडिया वाले उनके पीछे लगे रहते थे. टीवी पर आने का उन्हें शौक भी था. चेहरा चमकाने की कोशिश में कोताही नहीं करते थे. सियासी आकाओं की दरबारी करते हुए उन्हें सियासत भाने लगी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ही नहीं लालू यादव के भी चहेते थे और भाजपा में भी खासी पैठ थी उनकी. खबरों में बने रहने के लिए वे आए दिन बयान दिया करते थे. बयान देते वक्त वे डीजीपी नहीं पार्टी के प्रवक्ता बन जाते थे. हालांकि उनकी मीडिया में इस अतिसक्रियता की वजह से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें कड़े शब्दों में नसीहत भी दी थी. लेकिन गुप्तेश्वर पांडेय कहां मानने वाले थे. 

पिछले साल जून में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद गुप्तेश्वर पांडेय ने सरकार और चैनलों के एजंडे को लागू करने के लिए जीतोड़ मेहनत की. रोज चैनलों पर आकर बयान देते. सुशांत की आत्महत्या ने सियासी रंग पकड़ा और गुप्तेश्वर पांडेय भी इस सियासी रंग में रंगे ऐसे-ऐसे बयान देने लगे जो लोगों के गले से नहीं उतर रहा था. सुशांत की आत्महत्या को हत्या का तर्क देकर इसे संगीन अपराध बताने वाले गुप्तेश्वर पांडेय ने तब किसी पत्रकार ने नहीं पूछा था कि जब मुजफ्फरपुर में आप आईजी थे तो नवारुणा नाम की बच्ची का रात में उसके घर से अपहरण हुआ तब आपने इतनी सक्रियता क्यों नहीं दिखाई थी या फिर आपके रहते मुजफ्फरपुर में शेल्टरहोम कांड होता रहा तो आप सोये क्यों थे. ऐसे कई मामले हैं जिन्हें लेकर उनसे सवाल किया जा सकता था लेकिन तब उन चैनलों के लिए वे हीरो थे जो महीनों सुशांत राग गाते रहे थे. वैसे उनके सियासी खेल को सभी समझ रहे थे. हुआ भी ऐसा ही. उन्होंने रातोंरात पहले वीआरएस लिया और फिर जदयू की सदस्यता ली. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें जदयू की सदस्यता दिलाई और कैमरे के सामने जदयू की रसीद को दिखा कर फोटो खिंचवाने में उन्होंने किसी तरह की कोताही नहीं की. उन्हें उम्मीद थी कि जदयू विधानसभा का टिकट उन्हें देगा. ऐसी उम्मीद तो 2009 में उन्होंने भाजपा से भी लगाई थी. तब भी वीआरएस लेकर सियासत के अखाड़े में उतरने के लिए खम ठोंक रहे थे. लेकिन तब भाजपा ने उन्हें मायूस किया था और इस बार जदयू ने. हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि उनके लिए पूरे बिहार से मांग हो रही है और वे निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकते हैं. लेकिन नीतीश कुमार में आस्था व्यक्त की थी और नीतीश ने उनके सपनों को विराम दे दिया. उसके बाद वे कई कार्यक्रम में दिखाई दिए. लेकिन सियासी शख्सियत के तौर पर नहीं बल्कि कथावाचक या गीत गाते हुए नजर आए. अब वे पूरी तरह से कथावाचक की भूमिका में नजर आ रहे हैं. यानी खाकी से होते हुए खादी और अब गेरुआ व पीले वस्त्र में पूरी तरह नजर आ रहे हैं. अब वे कहते हैं कि सियासत उनके बस की बात नहीं. 

गुप्‍तेश्‍वर पांडेय इन दिनों अयोध्‍या में हैं. अयोध्‍या में वे धार्मिक गुरु की भूमिका में दिखाई दे रहे हैं. गुप्‍तेश्‍वर पांडेय का एक वीडियो वायरल हो रहा है. इसमें वे ईश्‍वर के अस्तित्‍व पर सवाल उठाने वालों को नसीहत दे रहे हैं. वे कह रहे हैं कि जिस तरह आपका होना ही आपके पिता के होने का प्रमाण है, उसी तरह ईश्‍वर का भी प्रमाण है. वे कहते हैं कि मैंने ईश्‍वर का नहीं देखा, लेकिन इसकी वजह से ईश्‍वर के वजूद पर कोई सवाल नहीं हो सकता है. 14 जून को उन्‍होंने अपने फेसबुक अकाउंट से अयोध्‍या के हनुमान गढ़ी की एक फोटो शेयर की थी. इस पोस्ट में उन्‍होंने लोकमंगल और ज्ञान, वैराग्य व भक्ति की भीख मांगने के लिए हनुमान गढ़ी में अपने इष्टदेव हनुमान जी के दरबार में हाज़िरी लगाई है. उन्‍होंने सभी को सुबुद्धि और सबका कल्याण होने की कामना की. वैसे गुप्‍तेश्‍वर पांडेय कुशल वक्‍ता हैं. अध्‍यात्‍म और समाज से जुड़े कई विषयों पर वह अच्‍छी जानकारी रखते हैं. 

बिहार का डीजीपी बनने से पहले उन्‍होंने शराबबंदी के समर्थन में युवाओं के एक अभियान से जुड़कर राज्‍य में सभाएं कीं. वे जदयू की सदस्यता लेने के बाद धार्मिक सत्‍संग में मन रमा रहे गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा कि मेरे अंदर सफल राजनेता बनने की क्षमता नहीं है. मैं बन सकता तो अब तक बन गया होता. गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा ऐसा डीजीपी खोजकर निकालिए जो विधायक का चुनाव लड़ने के लिए अपने पद से छह महीने पहले इस्तीफा दे. उन्होंने कहा कि मैं कमजोर वर्ग के साथ खड़े होने के लिए विधायक बनना चाहता था. धार्मिक उपदेशक बनने के सवाल पर वे कहते हैं- एक समय ऐसा आता है जब आप जीवन के उद्देश्य को जानना चाहते हैं, और ईश्वर को जानना चाहते हैं. मैं कोई अपवाद नहीं हूं. मेरी दिलचस्पी अब भगवान में है और यह परिवर्तन अचानक नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि हम सोचते हैं कि भौतिक उपलब्धियां हमें खुश कर देंगी, लेकिन असली खुशी भगवान में है. मैं अब केवल भगवान की सेवा करना चाहता हूं. वैसे प्रवचनकर्ता के तौर पर लोगों में उन्होंने अपनी पैठ जमा ली है. लोग उन्हें पसंद भी कर रहे हैं. लेकिन वे कब तक इस भूमिका में दिखाई देंगे, बड़ा सवाल यह है.  

 

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