क्या वो एक सीधा-साधा स्वागत था?

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क्या वो एक सीधा-साधा स्वागत था?

रूबेन बनर्जी 
मैं उस आदमी की कही बातों का मतलब समझने की कोशिश करने लगा, या फिर उसने वो क्यों कहा जो उसने कहा.ओड़िया भाषा में कहे गए उसे वो शब्द, कुछ कुछ मेरी मातृभाषा बांग्ला से मिलता-जुलता था. जिससे मैं काफी हद तक उसका मतलब समझ गया- ‘तो तुम आ गए? आओ.’ उस आदमी की बात सुनकर समझ में आ गया कि वो मेरा ही इंतज़ार कर रहा था और इसलिए उसने मेरा स्वागत भी किया. ज़ाहिर सी बात है कि वो मुझे कोई और समझ रहा था. लेकिन, इससे पहले कि मैं उसकी कही बातों का मतलब समझ पाता, उसने दोबारा कहा  ‘रात्रि एगारातारे असिबा’ (रात के 11 बजे आना). उसने मुझे देखकर हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा.     

चूंकि, उस दिन मेरा राज्य में इंडियन एक्सप्रेस के स्टेट कॉरसपॉन्डेंट होने के नाते मेरा पहला दिन तो मैं काफी हद तक भागमभाग में था. भुवनेश्वर को एक शांतिदायक जगह के तौर पर जाना जाता था, जहां हमेशा पत्तेदार पेड़ों की चारों तरफ, पूरे शहर में ठंडी हवा चला करती है, लेकिन वहां का राजनीतिक तापमान लगातार बढ़ रहा था  और वो शहर हिस्सों में बंटा हुआ था. यहां मुख्यमंत्री जे.बी.पटनायक के समर्थकों और (जिनका बीजू और नवीन के साथ कोई संबंध नहीं था), उनके विरोधियो के बीच युद्ध जैसी स्थिती बनी हुई थी.   
 
कांग्रेस पार्टी के भीतर ही जे.बी.पटनायक के जो विरोधी थे वे उन्हें पद से हटाने की मांग कर रहे थे, मैं वहां जब पहुंचा, तब वहां एक विरोध का एक और दौर शुरू हो चुका था, जो गददी पर बैठे और टस से मस न होने वाले मुख्यमंत्री को पद से हटाने की धमकी दे रहे थे. वहां की राजनीतिक जमात जिसमें खुद मुख्यमंत्री भी शामिल थे, उनके खिलाफ़ एक घृणा का माहौल बना हुआ था, जो उसी इलस्ट्रेटेड वीकली में एक ऐसी कवर स्टोरी छपी थी जिसमें, तत्कालीन मुख्यमंत्री जेपी पटनायक के सेक्सुअल हरकतों का ज़िक्र किया गया था. ये कवर स्टोरी मई 1986 में छपी थी. इस सब ने तब का माहौल और ज़्यादा गर्म बना दिया था.   

उस किताब की कहानी में जेबी पटनायक को एक आधुनिक कैलीगुला के तौर पर दिखाया गया था, कैलीगुला रोम का एक बदनाम शासक था, जो अपने मूड स्विंग्स और टेस्टोस्टेरोन जनित ग्रुप सेक्स पार्टी के लिए  लिए जाना जाता था. इलस्ट्रेटेड वीकली ने अपनी स्टोरी में ऐसे महिलाओं और पुरूषों के हवाले से जानकारी छापी थी, जहां उन्होंने पटनायक की सेक्स से जुड़े शौक के बारे में बताया करते थे, और ये भी कैसे उन्हें बहला-फुसला कर उनके पास ले जाया जाता था. मुख्यमंत्री पटनायक को एक विकृत व्यक्ति के तौर पर दिखाया गया था, उनके उपर गंभीर आरोप भी लगाए गए थे, लेकिन उन आरोपों का कोई नतीजा नहीं निकला था. जेपी पटनायक ने अपने उपर लगे सभी आरोपों को न सिर्फ सिरे से नकार दिया बल्कि उस मैगेज़ीन को अदालत तक खींचकर ले गए. लेकिन, इसके बाद या तो इलस्ट्रेटड वीकली अपने आरोपों के समर्थन में सबूत नहीं जुटा पाया या जुटाने का इच्छुक नहीं दिखा और अतंत: मुख्यमंत्री से माफ़ी मांग ली. लेकिन, तब तक जितना नुकसान होना था वो हो चुका था और मुख्यमंत्री की इमेज और पोज़िशन दोनों ही बहुत ज़्यादा खराब  हो चुकी थी. पार्टी के भीतर उनके विरोधी जहां उन्हें पद से हटाने की मांग कर रहे थे, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता उमाशंकर दीक्षित भुवनेश्वर में दोनों धड़ों (प्रो-एंटी पटनायक) के बीच समझौता करवाने की कोशिश में लगे थे.  भुवनेश्वर पहुंचने के साथ दीक्षित राजभवन की तरफ चले गए और एयरपोर्ट पर मौजूद पत्रकार मुख्यमंत्री के आधिकारिक निवास की तरफ भागे, मैं भी उनके पीछे लग गया. लेकिन, मुख्यमंत्री आवास पहुंचने पर वहां जिस तरह से न के बराबर सिक्योरिटी थी उससे मैं सकते में आ गया था. सभी पत्रकार आगे बढ़ें, पहले एक बरामदा पार किया, फिर एक गलियारा. जब तक कि मैं गलियारा तक पहुंचता, तब तक अन्य पत्रकार एक दूसरे कमरे के अंदर जा चुके थे – जहां संभवत : पटनायक मौजूद थे. और वहां मैं खड़ा था अकेले, उस आदमी और टेबल  के सामने जिसका मुंह पान से भरा था. वो नहीं जानता था कि मैं एक पत्रकार हूं और उसने मुझसे कहा था  ‘असीला असा? रात्रि एगारातारे असीबा.’ जब तक कि मैं वहां अनिश्चित स्थिती में खड़ा रहा, एक पत्रकार पीछे से आया और मुझे खींचकर अंदर ले गया, उसने मुझे और ज़्यादा लज्जित होने से बचा लिया था.’ तीन दशक के बाद, आज भी मैं उस आदमी के द्वारा बोले गए शब्दों का मतलब समझने की कोशिश में हूं. क्या वो एक सीधा-साधा स्वागत था? या वो उस तरह का स्वागत था जिसके बारे में इलस्ट्रेटेड वीकली ने अपनी रिपोर्ट में बार-बार लिखा था? 
(ये गद्यांश रूबेन बनर्जी की अंग्रेज़ी भाषा में लिखी नवीन पटनायक की पॉलिटिकल बायोग्राफ़ी से ली गयी है.  यहां उसके एक हिस्से का अनुवाद कर शेयर किया गया है.स्वाति अर्जुन की वाल से साभार )

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