अनगिनत पात्र जी कर विदा हुई हैं सुरेखा सीकरी

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अनगिनत पात्र जी कर विदा हुई हैं सुरेखा सीकरी

चंचल 
     'चेरी आर्चर्ड ' की डिजाइन और उसका मंचन, एक प्रयोग कर रहा था , जब  प्रेक्षक खुद अनजाने नाटक का हिस्सा बन जाय . नाट्य मंच पर प्रेक्षक जिसे सरल भाषा मे दर्शक  कह दिया जाता है - दर्शक की सीट से उठे और मंच पर जाकर उसका हिस्सा बन जाय,  चेरी का बगीचा उसी का प्रयोग था . अमरीकन निदेशक ( शायद  वेन विद्ज थे ) उन्होंने मंचन की यह विधा बनारस की रामलीला से देख कर  प्रयोग कर रहे थे -  
        सीता अपनी कुटिया में अकेली  बैठी है . कुटी की बनावट काफी हद तक खुले विन्यास में थी . उसके एक ताख में जलता हुआ दिया था . दर्शकों की भीड़ आ रही है , सीता के दर्शन कर , जयकार करती आगे बढ़ती है दूसरे ' मंच ' की तरफ जहां रामचरित मानस का दूसरा चरित्र बैठा है . अचानक सीता कुटी की ताख में रखा दिया गिर जाता है . अचानक एक लड़की कूद कर अंदर कुटी में  जाती है,  और दिया उठा कर ताख में रख देती है . भीड़ से एक माचिस आकर उसके सामने गिरता है , वह लड़की दिया जलाती है , सीता का पैर छूकर प्रणाम करती है , और अपनी भीड़ के साथ आगे  निकल जाती है .  बनारस क्या , समूचे हिंदी पट्टी में जहां राम चरित ' खेला' जाता है ,  वह स्थापित मंच  अनुशासन से अलग हट कर दर्शक को एक जगह बैठने के बजाय घुमाता रहता है . यह नाटक उसी विन्यास पर खड़ा किया गया था . NSD रंगमंडल द्वारा खेला गया यह नाटक सबसे ज्यादा खर्चीला रहा .  वागीश सिंह हमारे अभिन्न मित्र रहे और इस नाटक के मुख्य  किरदार .  भाई मनोहर सिंह , सुरेखा जी , प्रमोद माउथे , युवराज शर्मा वगैरह नामी गिरामी कलाकार भरे हुए थे . शाम को अक्सर हम  वहां  जाकर बैठ जाते . एक दिन हम रविन्द्र भवन लान में अधलेटे पड़े थे , देखा बगल से सुरेखा सीकरी आ रही हैं . आते ही उन्होंने हाथ पकड़ा - चंचल जी ! हमने सारिका में इंटरवियू पढा जो आपने लिया है , बहुत अच्छा लगा . चलिए आपको सरकारी चाय पिलाते हैं .  
   -  सरकारी ?  
   - बिल्कुल सरकारी  
  बात करते करते हम मंडप में चले गए जहां सेट लगा था . सुरेखा जी ने एक टेबल दिखाया उस के साथ आपने सामने दो कुर्सी रखी हुई थी . यह सेट का हिस्सा था लेकिन  था दर्शक के लिए . जो बैठते थे उन्हें चाय भी मिलती थी . इसी के ठीक बगल में एक छोटा सा पांड बनाया गया था , पानी से भरा हुआ . इसमे हर रोज प्रमोद माउथे को फिसल कर गिरना होता था . बहरहाल - 
सुरेखा जी महज रंगमंच या अपने   जी रहे चरित्र को लेकर ही संजीदा नही थी,  बल्कि अपने निजी रिश्तों का निर्वहन भी बड़ी संजीदगी से करती थी .  
    अनगिनत पात्र जी कर  विदा  हुई हैं रंगमंच , फ़िल्म और टीवी अदाकार के रूप में और उनका हर जिया हुआ चरित्र जिंदा रहेगा .  
    बहुत याद आएंगी  सुरेखा जी .  
    अलविदा  सुरेखा जी

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