अंबरीश कुमार
मानसून में मछली का बाजार सिमट जाता है पर मांग में बहुत ज्यादा गिरावट नहीं आती है .परम्परागत रूप से हिंदी पट्टी में बरसात के दिनों में खासकर सावन में मछली कम खाई जाती है क्योंकि यह मछलियों के प्रजनन का समय होता है .हो सकता है पर अपने पूर्वांचल में तो मछली के अंडों की पकौड़ी खाने का भी यही मौसम होता है .लोग बड़े शौक से उसे खाते हैं .बरसात को छोड़ दें तो देश में मछली का बाजार बढ़ रहा है .पहाड़ से लेकर समुद्र तक .पहाड़ में ट्राउट करीब हजार रूपये किलो के भाव है जबकि भीमताल से लेकर रामगढ़ तक ट्राउट मछली पाली जा रही है पर फिलहाल यह मत्स्य शोध संस्थान के जरिये ही मिलेगी .बाकी भवाली में महाशीर ,रोहू ,कतला से लेकर टेंगन की डुप्लीकेट पैकर सबसे सस्ती मिल जाएगी डेढ़ सौ के आसपास .लखनऊ में रोहू ,टेंगन ,सिंघी से लेकर आभिजात्य वर्ग और बड़े होटलों में ज्यादा खाई जाने वाली सोल मिल जाएगी जो हजार बारह सौ रूपये किलो के भाव है .जबकि रोहू ढाई सौ से चार सौ रूपये .
कुछ लोगों को लगता है समुद्र किनारे मछली ज्यादा सस्ती होती है तो गोवा में यह भ्रम टूट जायेगा .गोवा के कलंगूट समुद्र तट पर जब रुके तो शाम को तट पर घूमने निकले तो कई जगह सामने सामने मछली फ्राई कर बेचीं जा रही थी .भाव भी ठीक ठाक था .
.एक किलों भर की भुनी हुई बांगडा या मैकरेल हजार रुपए की तो टूना दो हजार की .रेड स्नैपर भी दो हजार के आसपास .बेहतर है अपने तरफ की ढाई सौ रुपए किलो वाली रोहू लौटकर खा लें .समुद्री व्यंजनों से दूर रहे .ज्यादा महंगे है .बीफ पोर्क का दाम पता ही नहीं किया .जो खाना नहीं उसकी क्या जानकारी लें .
फिर पणजी के बाजार जाना हुआ . पणजी की सब्जी मंडी के एक हिस्से में मछली बाजार है. आपको यहाँ होटल और रेस्तराँ के खानसामा मछली खरीदते मिल जाएँगे.कोंकणी महिलाएँ आपको ज्यादातर मछली बेचती मिलेंगी. मोलभाव खूब होता है. इस बाजार में अप्रैल के अन्तिम हफ्ते में जामुन देखकर हैरानी जरूर हुई.अपने यहाँ जामुन बरसात में मिलती है तो गोवा के बाजार में अप्रैल में ही जामुन की बहार थी. भाव जरूर कुछ तेज था, एक रुपए का एक जामुन. इसके आलावा आम की कई किस्मे पककर बाजार में है. कुछ पेड़ पर भी दिखीं. काजू का फल भी है. कुछ दूसरे किस्म के अनोखे फल भी दिखे. पर इनमे कोकम मुझे
ज्यादा ठीक लगा जब भी समुद्री इलाकों में जाता हूं तो कोकम जरूर लाता हूं .मछली में यह इमली और टमाटर का विकल्प है. जिसका असर यहाँ रहे पुर्तगाली से लेकर कोंकण के खानपान पर पड़ा .खैर मछली पर लौटें .कटी हुई किंग फिश के स्लाइश बेच रही महिला से भाव पूछा तो जवाब दिया तीस रुपये का एक. बाद में एक कोंकणी रेस्तराँ के मीनू में देखा तो यही एक स्लाइश पचास रुपये का था. मसाले में लिपटी किंग फिश को ताजा तवे पर भून कर दे रहा था. अपने यहाँ के टेगन से यह मिलती जुलती है. इसमें सिर्फ एक काँटा होता है. इसके बाद पैम्फ्रेट ही ज्यादा बिक रही थी.पैम्फ्रेट मीठे पानी में और समुद्री भी होती है. उत्तर के लोगों को समुद्री मछली की ज्यादा तेज गंध के चलते मीठे पानी की पसन्द हैं. पिछली बार विशाखापत्तनम समुद्र तट पर जब आंध्र प्रदेश पर्यटन विभाग के रिसार्ट में रुका था तो समुद्र तट पर बने आफशोर बार में तली हुई मछली मँगा तो ली पर एक टुकड़ा खाने के बाद छोडऩी पड़ी. क्योंकि वह समुद्र की मछली थी फिर मीठे पानी की पैम्फ्रेट मँगवाई गई. मीठे पानी यह मछली अलग होती है और भाव भी अलग होता है .
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments