खेती और आईटी सेक्टर पर जोर देंगे अखिलेश यादव

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खेती और आईटी सेक्टर पर जोर देंगे अखिलेश यादव

अरुण कुमार त्रिपाठी  
सन 2022 में होने वाला उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2024 में होने वाले आम चुनाव का सेमीफाइनल होगा. पूरे प्रदेश ही नहीं देश में भी इस बात पर चर्चा छिड़ी हुई है कि उत्तर प्रदेश बिहार के रास्ते पर जाएगा या पश्चिम बंगाल के. डबल इंजन की सरकार और हिदुत्व की विचारधारा से बम बम भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की छवि और अमित शाह की रणनीति के बहाने चुनाव आसानी से जीतने का दम भर रही है. उन्हें यकीन है कि हिंदुत्व की प्रयोगशाला में उन्हें विफलता नहीं मिलेगी. जबकि प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इस बात से आश्वस्त हैं कि भाजपा अपना वादा पूरा नहीं कर पाई है इसलिए इस बार प्रदेश पर काठ की हांडी नहीं चढ़ेगी. देश की सबसे बड़ी पार्टी की धर्म आधारित हिंदुत्ववादी राजनीति और राष्ट्रवाद के आक्रामक आख्यान से हर वर्ग त्रस्त है. उसका मुकाबला करने के लिए अखिलेश यादव समाजवाद की उदार विचारधारा और अपने पिछले कार्यकाल के ठोस कामों में भरोसा जताते हैं. उनका मानना है कि इस बार का चुनाव 2017 की तरह फर्जी नहीं असली मुद्दे पर होगा. लखनऊ में जनेश्वर मिश्र ट्रस्ट में तमाम मुद्दों पर वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी से उनकी लंबी बातचीत हुई. प्रस्तुत हैं उसके महत्वपूर्ण अंशः---  


सन 2017 और सन 2022 में क्या अंतर है? उस समय कौन सी चुनौतियां थीं जो इस समय नहीं हैं?  

2017 में जब चुनाव था तो जनता भारतीय जनता पार्टी को समझ नहीं पाई थी. उस समय प्रचार का सहारा लेकर जनता को गुमराह किया. समाजवादी पार्टी का नारा था जनता का काम अपना काम. काम बोलता है. लेकिन भारतीय जनता पार्टी लगातार जनता को गुमराह करती रही. कभी वीडियो के माध्यम से तो कभी ह्वाटसैप के माध्यम से. उस समय नया नया माध्यम आया था. गलत खबरें छाप कर उन्होंने जनता को गुमराह किया. हम काम पर बात कर रहे थे. वे जनता को गुमराह कर रहे थे. पूरा का पूरा चुनाव उन्होंने रिलीजियस एज(धार्मिक तेवर) से लड़ा. उन्होंने कहा कि हिंदू के लिए वे खड़े हैं. मूल रूप से भाजपा आरएसएस की राजनीतिक शाखा है. जो एजेंडा सेट करते हैं, जो नैरेटिव सेट करते हैं वे आरएसएस वाले तय करते हैं. वे भाजपा से मिलकर ऐसा करते हैं. 2017 में जनता को बहुत सारी ऐसी बातें कहीं. समाज को बांट कर धर्म और जाति में इन्होंने वोट ले लिया. लेकिन 2022 तक आते आते जनता ने समझ लिया है कि इन्होंने हर मुद्दे पर धोखा दिया है. जो वादे किए थे वो पूरे नहीं किए. 
वे कौन से वादे थे जो इन्होंने पूरे नहीं किए?  
इनका सबसे बड़ा वादा 2017 में था कि हम किसान की आय दोगुनी कर देंगे. आज 2022 होने जा रहा है क्या किसान की आय दो गुनी हो गई? इस वैश्विक महामारी ने किसानों के ऊपर संकट पैदा कर दिया है. क्योंकि महंगाई बढ़ गई. डीजल पेट्रोल का दाम बढ़ गया. कारोबार बंद हो गया. इसका सब असर हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है और सीधा सीधा किसान पर फर्क पड़ रहा है. इसलिए जनता समझ चुकी है. इसलिए असली मुद्दों पर 2022 का चुनाव होगा. गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई पर चुनाव होगा. इन्होंने समाज में भेदभाव पैदा किया है.  समाज को बांट दिया है. आज जनता उतनी बंटती हुई नहीं दिखना चाहती है.  
2012 और 2022 में क्या अंतर है? तब मुलायम सिंह जी भी सक्रिय थे और आप को विरासत सौंपी जा रही थी.  
मुझे याद है कि उस समय पार्टी ने निर्णय लिया था और जनेश्वर जी के आशीर्वाद से मैं बना प्रदेश अध्यक्ष बना. उस समय जिम्मेदारी बड़ी थी. अध्यक्ष बनने के बाद लगातार मैंने कार्यक्रम किए. उस समय मैंने तय किया था कि जगह जगह मैं साइकिल यात्रा करूंगा. साइकिल यात्रा के माध्यम से कार्यकर्ताओं से संवाद करूंगा और जनता के बीच जाऊंगा. छोटी बड़ी हर तरह की तमाम साइकिल यात्राएं हुईं. जनता हमसे जुड़ी और इतना जनसमर्थन मिला कि हमने मायावती को हरा दिया. जो जनसमर्थन हमें 2011-2012 में दिखाई दे रहा था वैसा आज भी है. पिछले दिनों एक रथयात्रा की थी उन्नाव में और कल साइकिल यात्रा की थी लखनऊ में. लखनऊ शहर की सबसे ऐतिहासिक रैली थी कल की. मुझे यह लग रहा है कि जनता एक बार फिर समाजवादियों को मौका देने जा रही है उत्तर प्रदेश के चुनाव के बाद.  
आपको जिनता आक्रामक होना चाहिए था उतना नहीं हैं. ऐसा कोई सैद्धातिक निर्णय है या रणनीतिक है ?  
ऐसा नहीं है. इस दौरान समाजवादी पार्टी ने संघर्ष किया. चूंकि उत्तर प्रदेश का चुनाव बहुत बड़ा होने जा रहा है. इसलिए जिस तरह के संसाधन का इंतजाम भारतीय जनता पार्टी करेगी(उसका मुकाबला करना होगा).(वह) अपनी पूरी लीडरशिप झोंक देगी. अपने पूरे मंत्री वगैरह को मैदान में उतार देगी. कई मुख्यमंत्री या केंद्रीय मंत्री आएंगे. हम चाहते थे कि हमारी तैयारी अच्छी हो . समाजवादी पार्टी ने पिछले साल शिविरों का आयोजन किया था. मुझे खुशी है कि जिस समय कोई भी दल भारतीय जनता पार्टी से नहीं लड़ रहा था उस समय समाजवादी पार्टी विचारधारा को मजबूत कर रही थी. क्योंकि विचारधारा ही काट सकती है इनकी विचारधारा को. हमारी आइडियोलाजी ही इनको कमजोर कर सकती है. सोशलिस्ट आइडियोलाजी ही मुकाबला कर सकती है इनके नारों का इनकी रणनीतियों का. सोशलिस्ट और सेक्यूलर लोग ही इनका मुकाबला कर सकते हैं. इसलिए हमने शिविरों का आयोजन किया. जिसमें हमारी सीनियर लीडरशिप जाती थी. बूथ के स्तर के कार्यकर्ताओं से लेकर सारे वरिष्ठ नेता उनमें रहते थे. डेढ़ सौ से ज्यादा विधानसभाएं हमने कवर कर ली थीं. अगर कोविड की लहर नहीं आती तो इस समय तक पूरे उत्तर प्रदेश के 403 विधानसभाओं के शिविर हो चुके होते और अगली यात्राएं जो रथयात्राएं चलानी थीं वह मैं शुरू कर देता.  
कोरोना महामारी का क्या प्रभाव होगा?  जब बड़ी महामारी आती है तो बड़े परिवर्तन होते हैं. किसानों का आंदोलन लंबे समय से चल रहा है. सभी प्रमुख संस्थाओं की जासूसी चल रही है. इस दौरान विपक्ष की एकता बन रही है. इसमें आपकी क्या भूमिका बन रही है? 
किसान आंदोलन में समाजवादी पार्टी पूरी तरह से साथ रही है. समय समय पर समाजवादी पार्टी ने उनका समर्थन किया है. यहां तक कि जो भी आंदोलन दिल्ली में हुए चाहे वह ट्रैक्टर परेड रही हो या किसी और तरह के कार्यक्रम रहे हों तो समाजवादी पार्टीने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. उस आंदोलन को उत्तर प्रदेश में बढ़ाने का काम किया . अगर किसी नेता की इस आंदोलन के सिलसिले में गिरफ्तारी हुई है तो वह मेरी गिरफ्तारी हुई है और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की. उससे पहले किसी भी राजनीतिक पार्टी के नेता की गिरफ्तारी नहीं हुई. सरकार ने सबसे पहले मुझे रोका. क्योंकि मैं किसान आंदोलन में शामिल होने जा रहा था. दूसरे भारतीय जनता पार्टी ने जो माहौल बनाया है उससे लोग घबरा गए हैं. हर वर्ग का व्यक्ति भारतीय जनता पार्टी को हटाना चाहता है. चाहे वह बौद्धिक वर्ग हो, चाहे नौकरशाही हो, चाहे पत्रकार हो, चाहे बिजनेसमैन हों. जिस तरह के इन्होंने काम किए हैं जनता इनसे निराश हो गई है. एक समय था इन्हीं सबने भाजपा का समर्थन किया था. अब वो निराश हो गए हैं. जब निराशा हो गई है तब इन्हें लगा कि ताकत कहीं कमजोर न हो जाए तो इन्होंने फोन टैपिंग शुरू कर दी है. कानून इन्हें अनुमति नहीं देता है. जो हमारे कानून हैं जो नियम हैं उनमें आप किसी की फोन टैपिंग(सीधे) नहीं कर सकते. उसके लिए संसाधन जुटाना पड़ता है क्योंकि आज फोन टैपिंग की टेक्नालाजी बदल गई है. हर प्राइवेट कंपनी की अपनी अलग टेक्नालाजी है जो दूसरी कंपनी इस्तेमाल नहीं कर सकती. मान लीजिए आई फोन है तो आई फोन हमें अपना सामान इसलिए बेचता है कि उसकी कोई नकल नहीं कर सकता. अगर आप दिल्ली एअरपोर्ट से निकलें तो विज्ञापन पाएंगे कि हमारा आईफोन सबसे सुरक्षित है. इसी तरह और फोन हैं. ह्वाटसैप का मालिक कहता है कि हममें आप में क्या बात हुई है यह कोई जान ही नहीं सकता है. क्योंकि इसमें इन्सक्रिप्शन है. आईफोन कहता है कि हमारे जो मेसेज हैं कोई नहीं पढ़ सकता. जब इतनी बड़ी बड़ी कंपनियां इतना दावा करती हैं और उन्हीं का सब चोरी हो रहा है तो है तो यह बहुत हैरानी की बात. भारत सरकार ने जो पैसा खर्च किया है वह अपनी सरकार बचाने के लिए किया है. वो जानना चाहते हैं कि लोग आखिर क्यों नाराज हैं. जनता ने इन पर भरोसा किया लेकिन वे जनता की जासूसी कर रहे हैं. अपने लोगों की भी जासूसी कर रहे हैं. वे पत्रकारों और रक्षा वालों की भी जासूसी कर रहे हैं. इसका मतलब कितनी इन्सिक्य़ोरिटी है इनके भीतर.  
याद कीजिए अमेरिका में निक्सन ने इसी तरह की जासूसी की थी विपक्ष की. वाटरगेट कांड हुआ . उसके बाद आज तक अमेरिका में जासूसी नहीं हुई. उस राष्ट्रपति को जाना पड़ा. मुझे लगता है कि जिस समय यह जानकारी बाहर आएगी प्रधानमंत्री को, भारतीय जनता पार्टी को जाना चाहिए इस्तीफा देना चाहिए. ऐसे में हमारा प्राइवेट क्या बचा. निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है. हमारा यह अधिकार है कि हम किसी से क्या बात कर रहे हैं वह गोपनीय रखी जाए. सरकार डरी हुई है इसलिए जासूसी करा रही है. यह तो देशद्रोह का मामला है. यह सबसे बड़ा अपराध है. वो कंपनी भी सरकार के लिए काम करती है. सरकार ने फंड कैसे दिए होंगे. सुनने में तो आया है कि एक फोन काल निकालने के लिए करोड़ों में खर्च में होते हैं. 
आपने कांग्रेस और बसपा के बारे में बयान दिया था कि कांग्रेस और बसपा तय करे कि उन्हें सपा से लड़ना है कि भाजपा से. इसका एक मतलब यह भी निकाला जा रहा है कि आप चाहते हैं कि गैर भाजपा दलों के वोट न बंटे. क्या कोई गठबंधन की तैयारी है?  
अभी हाल में जिस तरह के बयान आए और बहुजन समाज पार्टी का जिस तरह का स्टेटमेंट आया उसमें कहा गया कि देखना है कि समाजवादी पार्टी न जीत जाए. चाहे हमें कुछ भी करना पड़े. यह बयान बहुजन समाज पार्टी के नेता का था. अभी पंचायत का चुनाव का था. बसपा ने अपना सारा वोट भाजपा को दे दिया. दूसरी कांग्रेस पार्टी है. समय समय पर समाजवादी पार्टी को बदनाम करने के लिए अखबारों में लेख लिखवाती है. चाहे आजम साहब का नाम हो चाहे मुस्लिम को लेकर हो. तो यह कांग्रेस लगातार कर रही है. इसलिए हमने कहा कि पहले तो यह तय कर लें कि यह दोनों दल किसको हराना चाहते हैं? जारी 

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