तालिबान, अफगानिस्तान और भारत

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तालिबान, अफगानिस्तान और भारत

जदीद मरकज़ 
वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने कई साल कब्ल कहा था कि अच्छे तालिबान और खराब तालिबान, अच्छे दहशतगर्द और खराब दहशतगर्दों की बात करना बेमाअनी है. तालिबान एक ही किस्म के होते हैं इसी तरह दहशतगर्द भी एक ही किस्म के होते हैं. दुनिया को यह तय करना है कि वह दहशतगर्दों के साथ रहना चाहती है या फिर इंसानियत के साथ. अब मामलात और हालात दोनों पूरी तरह तब्दील हो चुके हैं. अब अफगानिस्तान पर तालिबान का तकरीबन मुकम्मल कब्जा हो चुका है. बीस साल की नाकामी के बाद अमरीका अफगानिस्तान से भाग चुका है, चीन, रूस, पाकिस्तान और ईरान से जो वाजेह (स्पष्ट) इशारे मिले हैं उनसे साफ हो जाता है कि यह मुल्क तालिबान की सरकार को फौरन तस्लीम कर लेंगे. भारत की सूरतेहाल बिल्कुल मुख्तलिफ है. शायद इसीलिए वजीर-ए-आजम मोदी की सदारत में देर रात तक चली मीटिंग के बावजूद अभी तक भारत तालिबान के सिलसिले में यह नहीं तय कर सका है कि आखिर इस सिलसिले में हमरा स्टैण्ड क्या होगा? शायद भारत सरकार इंतजार करो और देखो के फार्मूले पर अमल कर रही है. लेकिन यह सूरतेहाल ज्यादा दिनों तक जारी नहीं रह सकती. हमें यह भी ख्याल रखना है कि हम पाकिस्तान को यह मौका न दें कि तालिबान के बहाने हमारे खिलाफ नए किस्म के दहशतगर्दों का इस्तेमाल कर सके और कश्मीर में दहशतगर्दों की घुसपैठ करा सके. 
भारत सरकार तो अभी तक अपना स्टैण्ड वाजेह (स्पष्ट) नहीं कर सकी है लेकिन उत्तर प्रदेश और असम की बीजेपी सरकारों ने उन लोगों के खिलाफ देशद्रोह के मुकदमे दर्ज करा दिए हैं जिन्होने यह कहा था कि तालिबान ने अमरीका जैसे दुनिया के बड़े शैतान से लड़कर अपने मुल्क को आजाद कराया है. उत्तर प्रदेश में लोक सभा मेम्बर शफीक उर्रहमान बर्क और मुनव्वर राना के खिलाफ देशद्रोह का ही मुकदमा दर्ज कराया असम में कांग्रेस से निकल कर नए बीजेपी बने चीफ मिनिस्टर हेमंता बिस्वा सरमा की सरकार ने तो उन पन्द्रह लोगों पर दहशतगर्दी की हिमायत करने का इल्जाम लगाते हुए अनलाफुल एक्टिविटीज प्रीवेंशन एक्ट (यूएपीए) ही लगवा दिया जिन्होने सोशल मीडिया पर तालिबान से मुताल्लिक पोस्ट को शेयर कर दिया था. मतलब साफ है कि भारत सरकार का स्टैण्ड अभी तक तालिबान पर क्लीयर नहीं है लेकिन असम सरकार ने तय कर दिया है कि तालिबान एक दहशतगर्द तंजीम है. असम के स्पेशल डीजी पुलिस लॉ एण्ड आर्डर जी पी सिंह ने कहा कि यूनाइटेड नेशन्स ने जिन तंजीमों पर पाबंदी लगाई है उनमें तालिबान भी शामिल है. इसलिए हम उन्हें दहशतगर्द ही मानेंगे. यानी भारत सरकार कुछ कहे या न कहे असम के स्पेशल डीजी यूनाइटेड नेशन्स के मुताबिक ही मुसलमानों पर कार्रवाई करेंगे. असम के चीफ मिनिस्टर भी मुसलमानों के मामले में इसी ख्याल के हैं. जिन दस जिलों से पन्द्रह मुसलमानों को देशद्रोह और यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया है उन सभी के पुलिस कप्तान भी अपने स्पेशल डीजी लॉ एण्ड आर्डर जी पी सिंह की ही जुबान बोल रहे हैं. 
उत्तर प्रदेश में अगर तालिबान के सिलसिले में कोई कुछ बोलेगा या सोशल मीडिया पर पोस्ट डालेगा तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी इस बात का वाजेह इशारा तो उसी दिन पुलिस और एडमिनिस्ट्रेशन को मिल गया था जब असम्बली में बगैर किसी रेफरेंस के वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ ने कह दिया था कि कुछ लोग बड़ी बेशर्मी के साथ तालिबान की हिमायत कर रहे हैं. दरअस्ल योगी आइंदा एलक्शन में हिन्दुओं को पोलराइज करने का एक भी मौका छोड़ना नहीं चाहते हैं उनका ख्याल है कि शायद तालिबान के जरिए भी हिन्दुओं को पोलराइज किया जा सकता है. उन्हीं की तरह देश के गुलाम मीडिया को भी मैसेज दिया गया है कि तालिबान का मसला हर हाल में गर्म रखना है. इसी लिए गुलाम टीवी चैनलों ने रेजाना तालिबान पर ही घंटों के प्रोग्राम दिखाने शुरू कर दिए हैं. रूबिका लियाकत जैसी ऐंकर अपने प्रोग्रामों में मुसलमानों से बार-बार यही सवाल करती दिखती है कि आप तालिबान को दहशतगर्द मानते हैं या नहीं मानते. सवाल यह है कि भारतीय मुसलमानों के तालिबान को दहशतगर्द मानने या न मानने से फर्क क्या पड़ता है. फर्क तो भारत सरकार के स्टैण्ड से पड़ेगा अगर सरकार तय कर दे कि हम तालिबान को दहशतगर्द मानते हैं तो फिर सारा देश हिन्दू मुसलमान सभी उन्हें दहशतगर्द ही कहेंगे, लेकिन भारत सरकार के किसी फैसले से पहले मुसलमानों से यह सवाल करने का क्या जवाज (औचित्य) है यह सवाल तो वजीर-ए-आजम मोदी, होम मिनिस्टर अमित शाह, फारेन मिनिस्टर एस जय शंकर और नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर अजित डोभाल से किया जाना चाहिए. 
तालिबान अगर अपना रवैय्या 1996 से 2001 वाला रखते हैं और उसी तरह की हरकतें करते हैं तो उन्हें सिर्फ और सिर्फ दहशतगर्द ही कहा जाना चाहिए. अभी तो वह कुछ ऐसी बातें करते दिखते हैं जिससे ऐसा लगता है कि वह खुद को पूरी तरह तब्दील करके दुनिया के सामने पेश करना चाहते हैं अफगानिस्तान पर बीस साल तक अमरीका के कब्जे के दौरान दो अहम काम हुए हैं पहला यह कि अमरीका ने तालिबान को अंग्रेजी बोलना सिखा दिया दूसरा यह कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने उन्हें उर्दू जुबान सिखा दी. इसलिए अब भारत समेत दुनिया के दीगर मुल्कों के साथ बातचीत करने में उन्हें कोई दिक्कत पेश नहीं आएगी अब रही बात शफीक उर्रहमान बर्क की जिसमें उन्होने कहा कि तालिबान ने भी लम्बी लड़ाई लड़कर अपने मुल्क को अमरीका और उससे पहले सोवियत यूनियन से आजाद कराया उन्होने अमरीका और सोवियत यूनियन के साथ उसी तरह अपनी आजादी की लड़ाई लड़ी जिस तरह हमने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी थी. इस पर देशद्रोह का मुकदमा कैसे बनता है. क्या तालिबान ने अमरीका और सोवियत यूनियन के खिलाफ लड़कर अपने मुल्क को आजाद नहीं कराया है. फिर अफगानिस्तान की सियासत के एतबार से तालिबान को क्या कहा जाना चाहिए यह भी तो तय होना चाहिए. 
आज जो लोग हमारे देश में तालिबान पर ज्यादा बातें कर रहे हैं उन्हें अपने भी गिरेबान में कभी झांक कर देखना चाहिए अब हिन्दुत्व के नाम पर जो ताकतें सरगर्म हैं अगर पूरे समाज ने मिलकर उन्हें रोकने का काम न किया तो कुछ सालों बाद ही यह ताकतें तालिबान से ज्यादा खतरनाक साबित होंगी. फिर इनके निशाने पर सिर्फ मुसलमान ही नहीं होंगे फिर तो समाज के किसी भी तबके के लिए खतरनाक साबित होंगे. दिल्ली के जंतर-मंतर पर हरियाणा के पटौदी की पंचायत में दिल्ली के द्वारिका में हज हाउस की मुखालिफत में दिल्ली में दो मजारों के खिलाफ, हरियाणा के कब्रस्तान को खत्म करने के नाम पर बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद के लोगों के हाथों कानपुर में बेगुनाह अफसार अहमद की पिटाई और इंदौर में चूड़ी बेचने वाले को जिस तरह सरेआम पीटा गया क्या यह तालीबानी हरकतें नहीं हैं? हम यहां हिन्दुत्ववाद के नाम पर दहशत फैलाने वाले गुण्डों और अफगानिस्तान के तालिबान का मुवाजना (तुलना) नहीं कर रहे हैं सीधा सवाल कर रहे हैं. खुद को डासना के एक मंदिर का शंकराचार्य बताने वाले यति नरसिंहानंद ने तो उस वक्त तालिबान से भी आगे बढकर हिन्दू ख्वातीन की तौहीन कर दी उसका एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें वह यह कहते हुए सुना जा सकता है कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बिहार से मद्रास तक के जो लोग नौकरी करने आते हैं वह काम पर चले जाते हैं तो प्लम्बर, बिजली मिस्त्री, एसी मैकेनिक वगैरह के नाम पर मुसलमान उनके घरों में आते हैं और उनकी बीवियों को फंसा लेते हैं. ऐसे लोगों को काबू न किया गया तो यह मुसलमानों के लिए कम हिन्दुओं के लिए ज्यादा खतरनाक साबित होंगे. 
 

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