जदीद मरकज
जंग-ए-आजादी के बड़े सिपाही इंटरनेशनल सतह के लीडर हिन्दू-मुस्लिम इत्तेहाद के जबरदस्त अलमबरदार, जेहनी तौर पर पक्के सोशलिस्ट और समाज में फैली ऊंच-नीच को मिटाने की जिंदगी भर कोशिशें करते रहने वाले राजा महेन्द्र प्रताप सिंह को सिर्फ जाटों तक महदूद करके उनके नाम पर अलीगढ में एक स्टेट युनिवर्सिटी का संगे बुनियाद तो वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने रख दिया. यह भी एलान हो गया कि दो साल के अंदर यह युनिवर्सिटी बनकर तैयार हो जाएगी. सवाल यह है कि आखिर मोदी और योगी ने मिलकर एक अजीम शख्सियत को जाट राजा बताकर सिर्फ जाटों तक महदूद करने का गुनाह क्यों किया. खुद राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने तो खुद को कभी जाट राजा कहा नहीं, उन्होने तो खुद को खालिस हिन्दुस्तानी बनाए रखने के लिए अपना नाम ही ‘पीटर पीर प्रताप’ रख लिया था. इसी नाम से उन्होने एक किताब भी लिखी थी. उनकी शुरूआती तालीम सर सैयद अहमद खान के मोहम्डन एंगलो कालेज में हुई, जो बाद में अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी बनी. जब मोहम्डन एंगलो कालेज मुस्लिम युनिवर्सिटी में तब्दील हो रही थी तो राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने युनिवर्सिटी को नकदी के अलावा कई जमीनें भी दी थीं.
राजा महेन्द्र प्रताप सिंह किस जेहनियत के अजीम इंसान थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होने अंग्रेजों की मुखालिफत करते हुए अफगानिस्तान में अपनी आजाद इंटरिम सरकार बना ली थी, जिसके वह खुद सदर चुने गए थे. मौलाना बरकतुल्लाह वजीर-ए-आजम बने थे और तमिलनाडु के चेम्पक रामन पिल्लै उनके वजीर खारजा (विदेश मंत्री) थे. अंग्रेजों के अलावा तकरीबन पूरी दुनिया की हुकूमतें राजा महेन्द्र प्रताप सिंह का इंतेहा दर्जे तक एहतराम करती थीं. इसीलिए बगैर पासपोर्ट के उन्होंने जर्मनी, फ्रांस, जापान समेत पचास से ज्यादा मुल्कों का दौरा किया था. अफगानिस्तान में जब उन्होने अपनी आजाद सरकार बनाई थी उस वक्त भी अफगानिस्तान कोई हिन्दुओं का मुल्क नहीं था. लेकिन राजा महेन्द्र प्रताप सिंह हिन्दू-मुस्लिम और जात-पात से इतना ऊपर थे कि अफगानियों ने उन्हें न सिर्फ अपने मुल्क में जिलावतन हुकूमत बनाने दी बल्कि उनकी हुकूमत की हर मुमकिन मदद भी की.
भारत में राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने खुद को हमेशा एक पक्का सोशलिस्ट साबित किया जिसकी नजर में हिन्दू-मुस्लिम, जात-पात और ऊंच-नीच की कोई जगह नहीं थी. वह जहां भी जाते थे उनका एक मुस्लिम और एक दलित (वाल्मीकि) साथी उनके साथ रहता था. बताते हैं कि एक बार वह अपने दोनों साथियों के साथ अपनी सुसराल गए तो शाम को उनकी सास उन्हें मंदिर ले गईं. मंदिर के दरवाजे पर पहुंच कर उनकी सास ने उनसे कहा कि वह अपने दोनों साथियों को बाहर ही रोक दें. उस जमाने में हिन्दू समाज में मुसलमानों को मलेच्छ कहा जाता था और दलितों को मंदिर में जाने की इजाजत नहीं थी. जब राजा की सास ने उनके दोनों साथियों को बाहर रोकने के लिए कहा तो उन्होने बड़े अदब से अपनी सास को जवाब दिया कि जो भगवान इंसानों में ऊंच-नीच की बुनियाद पर उनकी पूजा कुबूल करते हो और आशीर्वाद देते हो, ऐसे भगवान के पास उन्हें नहीं जाना है. उनकी सास मंदिर के अंदर गई पूजा की और उनके बाहर आने तक महेन्द्र प्रताप सिंह उनका इंतजार करते रहे.
वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी और वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ महेन्द्र प्रताप सिंह युनिवर्सिटी का संगे बुनियाद रखने के बाद चले गए लेकिन पूरी भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस सोशल मीडिया पर यह मुहिम चलाने में लग गए कि राजा महेन्द्र प्रताप सिंह को मोहम्मद अली जिनाह के मुकाबले खड़ा किया जाएगा. उनकी इस हरकत से जाटों में और ज्यादा गुस्सा और नाराजगी फैल गई. सभी जानते हैं कि मोहम्मद अली जिनाह किसी जमाने में कांग्रेस लीडर की हैसियत से देश की आजादी के आंदोलन में शामिल रहे थे. लेकिन उनका कद हिन्दुस्तान में राजा महेन्द्र प्रताप सिंह के बराबर कभी नहीं रहा. फिर राजा का उनके साथ मुकाबला कराने का क्या जवाज (औचित्य).
पांच सितम्बर को मुजफ्फरनगर में किसानों की महापंचात हुई थी, जिसका अस्ल पैगाम हिन्दू-मुस्लिम इत्तेहाद का ही था. वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी और वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ ने शायद इस महापंचायत का असर कम करने के लिए ही अलीगढ में महाराजा महेन्द्र प्रताप सिंह के नाम पर युनिवर्सिटी का संगे बुनियाद रखने का प्रोग्राम रख लिया. इस प्रोग्राम के जरिए दरअस्ल उत्तर प्रदेश असम्बली के चुनाव की मुहिम शुरू करने का मकसद था लेकिन मोदी और योगी का यह मकसद इसलिए कामयाब होता नहीं दिखा कि इसमें भीड़ नहीं आई, खुसूसन जाट बिरादरी का तो एक भी शख्स इसमें शरीक नहीं हुआ. जाटों का कहना था कि हमने 2014, 2017 और 2019 में मोदी का साथ देकर देख लिया, अब हम उनके जाल में फंसने वाले नहीं हैं. जाटों में इस बात की भी नाराजगी दिखाई दी कि पहले तो मोदी और योगी ने अजीम शख्सियत राज महेन्द्र प्रताप सिंह को जाटों तक महदूद करने का काम किया फिर जिस दिन युनिवर्सिटी का जलसा किया उस दिन भी अलीगढ से चंद किलोमीटर के फासले पर मुर्सान के किले में लगी राजा की मूर्ति के इर्द-गिर्द सफाई तक नहीं कराई गई. मुर्सान अब हाथरस जिले में है.जदीद मरकज
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