लालू यादव का जलवा कायम है !

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लालू यादव का जलवा कायम है !

गणेश प्रसाद झा 
बिहार के तारापुर विधानसभा उपचुनाव में प्रचार आज गुरुवार की शाम को थम जाएगा. मतदान 30 अक्तूबर को होना है. इस बार कुल 11 उम्मीदवार यहां से भाग्य आजमा रहे हैं.  मुकाबला राजग (एनडीए) और राजद (आरजेडी) में ही होना है. बिल्कुल सीधी टक्कर है. कोई किंतु परंतु नहीं. बाकी का कोई वजूद नहीं. तारापुर विधानसभा सीट जदयू विधायक मेवालाल चौधरी के निधन से खाली हुई है. मेवालाल चौधरी कोरोना महामारी के शिकार हो गए थे. 
पिछले दो टर्म से यह सीट जेडीयू के पास है इसलिए पलड़ा फिलहाल उसका ही भारी है. पर जीत आरजेडी की भी हो सकती है क्योंकि इस बार राजद का उम्मीदवार कोई यादव जाति का न होकर व्यापारी समुदाय से है. खांटी बनिया और एक सफल बिजनेसमैन. पार्टी के पास कोई कुलीन और जिताऊ यादव उम्मीदवार उपलब्ध नहीं था इसलिए बनिया को आगे करने का रिस्की दांव खेला गया. पर पार्टी का यह दांव उसके लिए एक लाटरी साबित हो सकता है. इसके मजबूत आसार भी दिखाई दे रहे हैं. हमेशा बीजेपी का साथ देनेवाली बनिया कम्युनिटी को इस दफा अपना भविष्य आरजेडी के बनिया उम्मीदवार में ज्यादा सुनहरा दिखाई दे रहा है. यही बात एनडीए और खासकर बीजेपी के लिए चिंता का सबब है. बनिया समुदाय, खासकर उनके नौजवान मतदाता ऐसा कह रहे हैं कि आज तक किसी भी राजनैतिक दल ने कभी भी किसी बनिया को टिकट नहीं दिया था. आज जब राजद ने जिस किसी भी परिस्थिति में भी हो, एक व्यापारी पर भरोसा करके उसे टिकट दिया है तो पार्टी लाइन को भुलाकर भी उस उम्मीदवार को जिताना हम सभी बनियों-व्यापारियों का परम कर्तव्य बन जाता है. इससे अभी जो चुनावी समीकरण बनता दिखाई दे रहा है उसके मुताबिक बनिया-व्यापारी समुदाय का वोट जेडीयू (एनडीए) और आरजेडी में 50-50 या फिर 60-40 के अनुपात में बंट जाएगा. मतलब यह कि कम से कम 40 फीसदी बनिया वोट तो आरजेडी उम्मीदवार के खाते में गया ही समझिए. और यही पेंच आरजेडी के कमजोर पलड़े को एक झटके में भारी बना देता है. मैदान में तैनात तीसरी प्रमुख पार्टी कांग्रेस वोटकटवा साबित होगी जो जेडीयू यानी एनडीए के ब्राह्मण और राजपूत वोट काटकर आरजेडी को फायदा पहुंचाएगी. यानी आरजेडी को बिना किसी परिश्रम के बैठे बिठाए एक और तमगा. पर इसमें एक पेंच आरजेडी को नुकसान पहुंचाने का भी जुड़ा हुआ है. कांग्रेस मुसलमानों का अपना परंपरागत वोट भी तो लेगा. और इस तरह वह आरजेडी के भी कुछ मुस्लिम वोट काट सकता है. इससे राजद को भारी नुकसान होने का भी खतरा है. 
कहने को तो सीट शेयरिंग के मुद्दे को लेकर आरजेडी से अनबन होने की वजह से बिहार और केंद्र में भी कांग्रेस से महागठबंधन का रिश्ता टूट गया है. कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्तचरण दास आनन फानन में यह घोषणा भी कर चुके हैं कि 2024 का आमचुनाव कांग्रेस अकेले ही लड़ेगी, किसी गठबंधन में रहकर नहीं. पर यहां इस उपचुनाव में तो यह टूट आरजेडी को उतना फायदा दिला ही रहा है जितना उसे महागठबंधन के बरकरार रहते हासिल होता. 
इलाके का पढ़ा-लिखा, राष्ट्रवादी और शांति और अमनचैन की जिंदगी पसंद करनेवाला वर्ग आज भी एनडीए को पसंद करता है और वह नरेंद्रभाई मोदी को ही देखेगा और जदयू उम्मीदवार के पक्ष में ही मतदान करेगा. इसमें सारे ब्राह्मण भी शामिल होंगे और तमाम राजपूत समुदाय यानी ठाकुर साहब भी. एनडीए के ब्राह्मण और ठाकुर विधायकों और मंत्रियों ने इन दोनों महत्वपूर्ण समुदायों को अपने पाले में बनाए रखने के लिए खूब फिल्डिंग की है. घर-घर जाकर बिहार के मौजंदा नाजुक राजनैतिक हालात को समझाया-बुझाया है. इसलिए ये दोनों समुदाय तो इस बार एनडीए के पक्के समर्थक होंगे. 
कांग्रेस का अभी भी बिहार में कोई नामलेवा नहीं नजर आ रहा. कांग्रेस यहां एक मूर्खतापूर्ण फार्मूला और सोच के साथ चुनाव मैदान में उतरी है. कांग्रेस का मानना है कि तारापुर सीट से इस बार आरजेडी ने पिछली बार की महिला उम्मीदवार पूर्व राज्यसभा सांसद जयप्रकाश यादव की हरियाणा में ब्याही बेटी दिव्या प्रकाश को टिकट नहीं दिया इसलिए जयप्रकाश यादव पार्टी के इस रवैये से बहुत नाराज हैं और वे अपने लाव-लश्कर के साथ मिलकर राजद उम्मीदवार को हराने का काम करेंगे. और चूंकि जयप्रकाश अपने समुदाय के बहुत प्रभावशाली नेता हैं इसलिए वे इस उपचुनाव में राजद को बहुत नुकसान भी पहुंचाएंगे. बेटी को टिकट नहीं मिलने से जयप्रकाश पार्टी से बहुत नाराज हैं इसलिए वे पार्टी के यादव कॉडर मतदाताओं को आरजेडी को वोट न देने के लिए आसानी से राजी कर लेंगे. और तब ऐसे में यादव मतदाता कहां जाएंगे? वे हारकर कांग्रेस उम्मीदवार राजेश कुमार मिश्र के पक्ष में ही मतदान करेंगे. इसी तरह मुस्लिम मतदाता भी अपनी कोई और राह न देखकर अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस को ही अपना समर्थन देने को विवश होंगे. 
कांग्रेस का यहां यह भी मानना है कि एनडीए की तरफ से जेडीयू के उम्मीदवार राजीव कुमार सिंह मजबूरी में चयन किए गए उम्मीदवार हैं जो पहले भी कई बार चुनाव हार चुके हैं और इस बार उनको लेकर पार्टी में काफी भितरघात भी है. इस तरह यहां जदयू नेताओं और कार्यकर्ताओं का एक बड़ा तबका जदयू उम्मीदवार राजीव कुमार सिंह को हराने के लिए सक्रिय है और यह लॉबी राजीव कुमार सिंह को हराने का ही काम करेगा. फिर ऐसे हालात में जेडीयू के समर्थक मतदाता कहां जाएंगे? वे हारकर कांग्रेस उम्मीदवार को ही चुनेंगे. बस फिर क्या, कांग्रेस उम्मीदवार की अपने आप जीत निश्चित हो जाएगी. 
दरअसल, यह मूर्खतापूर्ण सोच कांग्रेस पार्टी या उसके आला नेताओं की नहीं, कांग्रेस के ब्राह्मण उम्मीदवार राजेश कुमार मिश्रा की है जो उन्होंने प्रदेश और केंद्र के अपने नेतृत्व और पार्टी के अपने आला नेताओं को फीड कर रखा है. पिछली दफा राजेश कुमार मिश्र कांग्रेस का पार्टी टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर बागी बन गए थे और निर्दलीय उम्भीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतर गए थे. राजद के सीट न छोड़ने की जिद की वजह से बिहार में महागठबंधन से नाता टूटना उनके लिए फायदेमंद साबित हो गया और वे कांग्रेस का टिकट पाने में सफल हो गए. यह और बात है कि यहां कांग्रेस के टिकट का कोई दूसरा दावेदार भी नहीं था.  
इस विधानसभा में तकरीबन बीस हजार ब्राह्मण मतदाता हैं. पिछली बार इलाके के ब्राह्मण समुदाय और मुस्लिम कम्युनिटी में खूब फिल्डिंग करके निर्दलीय उम्मीदवार रहकर भी राजेश कुमार मिश्रा 10,466 वोट लाने में सफल रहे थे. इसमें मुसलमानों का भी अच्छा खासा वोट शामिल था. पर इस बार कम से कम ब्राह्मण समुदाय तो इन्हें शुरू से ही वोटकटवा मान बैठा है. ब्राह्मणों के जो थोड़े बहुत छुटभैये नेता पिछली दफा इनके साथ घूमते फिरते दिख रहे थे वे भी इसबार उनसे साफ कन्नी काट रहे हैं. मतलब सबने समझ लिया है कि मिश्रा जी सिर्फ वोटकटवा हैं और इनको मतदान करने का मतलब होगा राजद यानी लालू के जंगलराज को समर्थन देना. इस मामले में वे इस बार बहुत सतर्क दिख रहे हैं. 
जदयू के मेवालाल चौधरी पिछली बार 64,468 यानी 36.93% वोट लेकर चुनाव जीते थे. दूसरा स्थान राजद उम्मीदवार दिव्या प्रकाश का था जिनको 57,243 यानी 32.80% मत हासिल हुआ था. इस बार ऐसे संकेत हैं कि वोटों का यह आंकड़ा दोनों प्रमुख उम्मीदवारों मे से किसी के भी पक्ष या विपक्ष में हाइपरटेंशन या हाइपोटेंशन पैदा कर सकता है. हां, जीत की सुई दोनों में से चाहे जिस किसी उम्मीदवार की तरफ झुके, इतना तय है कि उसे झुकानेवाला बनिया समुदाय ही होगा. 
 

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