चंचल
ज़िंदगी की तरह सियासत मे भी पीछे हटा जाता है , प्रकृति का विलक्षण खेल है . कविता की दो सतर मे द्वन्द के खेल को आसान ज़ुबान मे कहा है-
नवन , नवन बहु अंतरा , नवन नवन बहु वान .
ये तीनो बहुतैय झुकें - चीता , चोर , कमान ॥
नवन (झुकना ) . अपने लक्ष के लिए ये तीन जितना झुकते हैं उतनी ही गति से लक्ष को प्राप्त करने मेन सफल होते हैं ये है - चीता , चोर और कमान . आप मे इन तीनो का इन तीनो का कोई गुण नही है . सियासत मे सियासी ज़ुबान मे इसे कहते हैं - “दो कदम पीछे “
ज़िंदगी और ज़िंदगी की बेहतरी के लिए बने निज़ाम मे लोच उन्ही के पास होती है जो अंदरूनी तौर पर निहायत मज़बूत और परमार्थवादी होते हैं . एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ - गांधी जी का . सिविल नाफ़रमानी शीर्ष पर थी . पूरा देश अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ सड़क पर था . “हमला चाहे जैसा होगा , हाथ हमारा नही उठेगा “ पूरा मुल्क इस मंत्र को अंगीकार कर चुका था . अचानक चौरी चौरा मे प्रतिरोध की सीमा हिंसा तक चलो गयी . बापू ने बे हिचक सत्यग्रह का आंदोलन वापस ले लिए .
आंदोलन टूटा , कांग्रेस पार्टी टूट गयी , तमाम आरोप लादे गये महात्मा गांधी पर . लेकिन गांधी जी अडिग खड़े रहे . यही आंदोलन , उसी सत्याग्रह के आंदोलन को उसी गांधी ने उससे सौ गुना तेज गति से चलाया . चौरी चौरा मे“ पराजित “
गांधी पराजय को परिमार्जित कर नयी ताक़त खोज रहा था , उसे हासिल भी किया और दुनिया के क्षितिज पर अहिंसा का परचम लहरा कर भंगी बस्ती मे बैठ कर चरखा कातने लगा .
उस समय ग्लोब दो हिस्से मे खड़ा था पूरब मे गांधी और पश्चिम मे हिटलर और मसोलनी . हश्र क्या हुआ ?
जनाबे आली ! ये जो अतीत से निकले हश्र होते हैं ये आज के लिए सबक़ होते हैं . हश्र की खूबी है यह न मिटताहै , न दबाया जा सकता है . आपने इससे भी सबक़ नही सीखा .
जनाब मोदी जी ! विवादित कृषि क़ानून वापस लेते समय आपको अन्दाज़ रहा होगा कि इसे सुनते ही किसान बाहँ फैला कर आपको ओकवार मे ले लेगा और आप अभिभूत हो जाँयगे .
आत्म्मुग्ध सोच है यह “ उपकार “ करने का भ्रम . किसान और गाँव दोनो उपकार को हेय निगाह से देखते हैं . उसके लिए सड़क पर कील गाड़ी गयी थी , वो कील सड़क से तो हट गयी लेकिन जो दिल पर चुभी रह गयी है ?
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