अंबरीश कुमार
लखनऊ . उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इस समय बुंदेलखंड यात्रा की तैयारी में जुटे हैं. यह यात्रा एक दिसंबर से तीन दिसंबर तक चलेगी . बांदा ,ललितपुर और फिर झांसी. इससे पहले अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश की यात्रा से समाजवादी पार्टी ने अपना चुनावी अभियान तेज कर दिया था. मऊ,अंबेडकरनगर ,गोरखपुर से लेकर कुशीनगर तक की बड़ी रैली के जरिए पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ चुका है. दरअसल छोटे छोटे दलों का बड़ा गठबंधन बनाने के साथ ही अखिलेश यादव अब प्रदेश के विभिन्न अंचल में रैली करने जा रहे हैं . बुंदेलखंड में एक दिसंबर से तीन दिसंबर की यात्रा से अखिलेश कई मोर्चों पर काम करेंगे . दरअसल आज की तारीख में बुंदेलखंड ही अखिलेश यादव के लिए बड़ी चुनौती भी बना हुआ है . यही वह इलाका है जहां भाजपा उत्तर प्रदेश में ज्यादा मजबूत है. भूख ,भुखमरी और पलायन से जूझते इस अंचल में धर्म का असर लोगों पर ज्यादा है . इसलिए चुनौती तो है पर बसपा की दरकती जमीन का ज्यादा फायदा भी समाजवादी पार्टी को यहां मिल सकता है.
इससे पहले हमें अखिलेश यादव की सोशल इंजीनियरिंग पर नजर डालनी चाहिए ताकि बुंदेलखंड की आज की स्थिति को समझ जा सके.अखिलेश यादव ने इसबार वही रणनीति अपनाई है जो भाजपा ने 2017 के विधान सभा चुनाव में अपनाई थी. उन्होंने पार्टी में भी इसे लागू किया और जो दल साथ आ रहे हैं उनके जरिए भी इस अभियान को तेज किया . जैसे मल्लाह जाति के राजपाल कश्यप को पूरे प्रदेश में पिछड़ा वर्ग सम्मेलन करने की जिम्मेदारी सौंपी .
पिछड़ों और अति पिछड़ों की इस गोलबंदी से पूर्वांचल में अखिलेश यादव को राजनीतिक फायदा भी मिल रहा है . पर बुंदेलखंड में फिलहाल ऐसा फायदा मिलता नह दिख रहा है . इसकी खास वजह यह है कि बुंदेलखंड में समाजवादी पार्टी के पास ऐसा कोई पिछड़ा चेहरा नहीं है जो अति पिछड़ों को अपनी तरफ आकर्षित कर सके . हालांकि बुंदेलखंड में श्रीराम पाल जैसे नेता भी हैं जिन्हे कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है . हालांकि इस बीच अखिलेश यादव ने संडीला, हरदोई में अर्कवंशी राजा साल्हिय सिंह को याद कर कुछ और जातियों को जोड़ने का प्रयास किया है . अर्कवंशी (आरख सूर्यवंशी, खंगार/परिहार) समाज भी अति पिछड़ा वर्ग से आता है. अर्कवंशी/अरख जाति की बांदा, हमीरपुर, महोबा, चित्रकूट, फतेहपुर, हरदोई, कन्नौज, सीतापुर, लखनऊ, कानपुर, उन्नाव, कौशांबी, इलाहाबाद, मेरठ, शाहजहाँपुर, पीलीभीत, इत्यादि जिलों में अच्छी-ख़ासी आबादी है और इस अंचल की कई विधान सभा सीट पर ये हार जीत भी तय कर सकते हैं . दरअसल बुंदेलखंड में बसपा अगर कमजोर पड़ी तो उसका फायदा एक तरफ सपा तो दूसरी तरफ कांग्रेस को होगा . ब्राह्मण और दलित बिरादरी का झुकाव कांग्रेस की तरफ हो सकता है तो अति पिछड़ी जातियों का झुकाव समाजवादी पार्टी की तरफ हो सकता है . यही वजह है कि एक दिसंबर से तीन दिसंबर तक अखिलेश यादव का विजय यात्रा रथ बुंदेलखंड में चलेगा . देखना होगा कि अखिलेश यादव की सभाओं में किस तरह की भीड़ जुटती है कि तने लोग आते हैं और उनकी क्या प्रतिक्रिया होती है . तभी पता चलेगा कि इस यात्रा से अखिलेश यादव को हासिल क्या हुआ .
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